इतना बदल जाओगे कि लोग पहचान नहीं पाएंगें || You will change tremendously, Just do this.

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https://www.youtube.com/watch?v=t3U4EoI3uvk

Zusammenfassung

TLDRThis discourse emphasizes the importance of surrendering (Sharanagati) to God, especially for individuals who feel unsupported or rejected in life. It suggests that true devotees, lacking worldly skills and support, can find solace and miraculous transformations through God’s grace. The speaker highlights that surrender leads to liberation from fears and anxieties, allowing devotees to place their trust in God's plans. Additionally, the association with saints is deemed crucial for understanding and achieving this surrender. The discourse reassures that once one has surrendered, the responsibility for personal improvement lies with God, emphasizing a shift in perspective for the devotee.

Mitbringsel

  • 🙏 Surrender to God brings peace and transformation.
  • 💪 True surrender requires trust beyond worldly support.
  • 👥 Associating with saints enhances spiritual growth.
  • 🕊️ Liberation from fears comes with genuine surrender.
  • ⚖️ Personal improvement is God's responsibility after surrender.
  • 🌈 Surrender can lead to miraculous changes in life.
  • 💖 The essence of devotion is heartfelt surrender.
  • 🌍 Those rejected by the world find solace in God.
  • ✨ Divine grace empowers the surrendered soul.
  • 🌟 Sharanagati is the ultimate path to spiritual freedom.

Zeitleiste

  • 00:00:00 - 00:05:00

    The speaker discusses the condition of individuals lacking knowledge, qualities, and support, emphasizing that such persons often face rejection from society. However, they highlight the importance of turning to God for help, as reliance on divine support can transform a person's status and provide a sense of belonging.

  • 00:05:00 - 00:10:00

    The concept of surrender to God is introduced, indicating that such surrender relieves individuals of their responsibilities for self-improvement. It is through this divine support that a person can experience dramatic personal transformation, illustrating how God's grace can yield unexpected positive shifts in one's life.

  • 00:10:00 - 00:15:00

    The text elaborates on the nature of true surrender, relating it to the selfless devotion similar to that of a devoted spouse who prioritizes their partner's happiness. It emphasizes that surrendering to God equates to dedicating every thought and action to divine service, promoting inner peace and stability.

  • 00:15:00 - 00:20:00

    The discussion continues on spiritual practices, suggesting that surrendering encompasses all forms of devotion, characterized by genuine love and commitment to God. The speaker draws parallels to the nurturing nature of a devoted partner, signifying that true surrender requires complete devotion to God, transcending worldly attachments.

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    The narrative conveys that once surrendered to God, individuals should not worry about their shortcomings or past flaws. They highlight that true surrender leads to a state of blissful peace and freedom from concern, where the responsibility for personal transformation rests entirely with the divine.

  • 00:25:00 - 00:31:24

    Lastly, the speaker emphasizes the significance of companionship with saintly figures and how true surrender is nurtured in their presence. They assert that without the guidance and support of enlightened beings, true surrender may remain elusive, stressing the necessity of divine grace in achieving a lasting state of surrender.

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Video-Fragen und Antworten

  • What is the main theme of the discourse?

    The main theme is the significance of surrendering to God for spiritual transformation and peace.

  • How does the speaker describe a true devotee?

    A true devotee is someone with no worldly skills or support, who completely relies on God's grace.

  • What happens when one surrenders to God?

    Surrendering to God can lead to miraculous changes and liberation from fears.

  • Why is the association with saints important?

    The association with saints helps deepen one's understanding and practice of surrender.

  • What does the term 'Sharanagati' mean?

    Sharanagati means complete surrender to God.

  • What does the speaker say about worldly rejection?

    Those who feel rejected by the world can find acceptance and support in God.

  • What is the relationship between surrender and personal responsibility?

    Once one surrenders to God, the responsibility for personal improvement shifts to God.

  • How does surrender affect one's mental state?

    Surrender generates peace, releasing the devotee from fear and anxiety.

  • What can lead to true surrender?

    True surrender can come from divine grace or through intense personal circumstances.

  • What does the speaker say about self-improvement?

    Self-improvement is not the devotee's responsibility after surrendering to God.

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    जिसके पास ना विद्या है ना कोई गुण है ना
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    धन है और ना कोई सहारा देने वाला है व
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    जिसकी तरफ देखता है सब ठोकर मार देते
  • 00:00:13
    हैं हर जगह धक्का कोई सहारा देने वाला
  • 00:00:17
    नहीं उसके पास कुछ नहीं कोई अगर उसकी तरफ
  • 00:00:23
    से निकलना चाहो तो हटकर दूर खड़ा हो जाएगा
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    कहीं कुछ मांग ना ले कहीं कुछ कह ना दे
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    ऐसा
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    बहुत ध्यान से सुनोगे तो आनंद आ
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    जाएगा अब तुम्हारा सुधार
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    होना प्रभु की जिम्मेवारी है तुम्हारा
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    कर्तव्य नहीं रह गया अपना सुधार करना तभी
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    तो आश्चर्य होता है कि कल तक तो
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    य ऐसा आज ऐसा कैसे हो सकता है कल हमने
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    देखा ऐसा व आज कैसे ऐसा अरे एक क्षण में
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    यह बहुत बढ़िया बात
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    है भगवान कृपा
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    करें और हमें हर जगह से ठोकर
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    मिले यह बात विषय पुरुष के समझ में नहीं
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    आएगी
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    कोई
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    हमें आदर ना दे कोई हमें अपना कहने वाला
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    ना हो तो हमारा मन भाग पड़ेगा गोविंद की
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    तरफ क्योंकि यह बिना सहारा लिए चल नहीं
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    सकता हृदय का एक विषय है वो किसी ना किसी
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    का सहारा लेकर ही चलता है किसी व्यसन का
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    किसी व्यक्ति का किसी भोग का किसी ना किसी
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    देख लो आप हृदय से बस इसके यही सहारे
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    काटने हैं काटने हैं और पूर्ण यह सब सहारे
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    एक जगह पूर्ण हो जाए भगवान का सहारा लाडली
  • 00:01:54
    जू का
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    सहारा जिसके पास ना विद्या है ना कोई गुण
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    है ना धन है और ना कोई सहारा देने वाला है
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    वह जिसकी तरफ देखता है सब ठोकर मार देते
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    हैं सबने जिसको त्याग दिया
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    है अगर वह कहीं संत कृपा से भगवान की शरण
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    में आ जाए
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    ऐसा प्रभु की शरण ले
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    ले प्रसिद्ध गुण मास
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    सुजना भगवान उसमें जो सुजन महात्मा जन है
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    उनमें जो गुण होते हैं वह सब भर देते हैं
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    उस शरणागत
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    में दिव्यता आ जाती
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    है और विश्व
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    विख्यात उसे कर देते हैं य भगवान
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    का शरणम यम तेप प्रसत गुणमा सित सुजना
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    मुक्ता
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    स्तम जो बिल्कुल गुण हीन था धनहीन था
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    विद्या हीन था सब ठोकर मारते थे कोई सहारा
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    देने वाला नहीं
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    था ये
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    सब इस मानो ये हमारे ही जीवन की बात कही
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    जा रही है हम सब अगर आप भ्रम से मान रहे
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    हैं कि आपने कुछ अपने तो इस जीवन जो लिखा
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    है वही जीवन
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    था कुछ नहीं किसी योग्य नहीं
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    तो क्या कह रहे जब भगवान की व शरण में आया
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    तो सारे वह गुण भर दिए भगवान ने जो एक
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    दिव्य महात्मा में होते हैं और क्या किया
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    उसे विश्व विख्यात कर दिया और क्या किया
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    बोले
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    विमुक्ताए मात्र शरणागति से ऐसे हैं हमारे
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    भगवान श्री कृष्ण मैं प्रणाम करता हूं
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    वंदे यदुपति मोहम कृष्ण
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    ममल निर्मल बना कर के जीवन मुक्त परम
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    हंसों की स्थिति प्रदान कर भगवान को देने
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    में कोई दुर्लभ बात है
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    क्या शरणागति
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    हे मत भटको इधर उधर शरणागति बहुत जोर का
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    विषय है ये
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    समझना है भगवान कहते हैं क्या करना है
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    क्या नहीं करना है अब तुम्हारे ऊपर यह भार
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    नहीं रहा बहुत ध्यान से सुनोगे तो आनंद आ
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    जाएगा तुम्हें यह
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    बात कोई समझाएगा भी तो नहीं समझ में आएगी
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    कि अब तुम्हारा कल्याण नहीं होने
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    वाला अरे ऐसा ऐसा करे तब जीवन मुक्त होता
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    है आपको विश्वास नहीं मानना यहां बात सुनो
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    उसको बैठा लो क्या करना है क्या नहीं करना
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    है यह तुम्हारी जिम्मेवारी
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    खत्म अब वह क्या कराना है कहां पहुंचाना
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    है यह जिम्मेवारी प्रभु की हो गई क्योंकि
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    आप शरणागत है बिल्कुल बैठा लेना हृदय में
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    कभी डरना नहीं स कभी संशय मत करना बहुत
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    सुंदर मनन की हुई बात कह रहे हैं
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    स्वयं भगवान के शरणागत हो जाना संपूर्ण
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    साधनों का फल है सार है बस शरणागति को
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    समझना आगे पूरे विवरण में आएगा विस्तृत
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    रूप से है कि क्या शरणागति का स्वरूप है
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    शरणागत हो जाना प्रभु के संपूर्ण साधनों
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    का फल है सार है जैसे भक्ति के नौ विशेष
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    स्वरूप है श्रवण कीर्तनम स्मरणम विष्णु
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    पाद सेवन अर्चन वंदनम दास सख्य पर यह जो
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    नवा है ये अष्ट भक्ति का फल है आत्म
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    समर्पण आत्म निवेदन आत्म
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    समर्पण अपने आप को प्रभु के हवाले कर देना
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    अंदर से हृदय से
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    आप
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    देखो ऐसा वो परिस्थिति पैदा कर देते हैं
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    या ऐसा ज्ञान दे देते हैं दोनों बातें
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    पूर्ण समर्पण तभी होता
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    है जब अशरण हो जाता है हर जगह धक् का कोई
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    सहारा देने वाला नहीं उसके पास कुछ नहीं
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    कोई अगर उसकी तरफ से निकलना चाहो तो हटकर
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    दूर खड़ा हो जाएगा कहीं कुछ मांग ना ले
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    कहीं कुछ कह ना दे ऐसा
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    तिरस्कृत
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    उसे विश्व वंदनी बना देते भगवान
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    पक्का केवल शरणागति बहुत बड़ा स्वरूप है
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    शरणागति
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    का यह संपूर्ण साधनों का सार
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    है शरणागत भक्त
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    को अपने कल्याण के लिए कुछ भी करना शेष
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    नहीं रहता सुनते
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    जाना जैसे
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    पतिव्रता शरीर श्रृंगार करती है पति के
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    लिए पूरे ग्रह की टहल करती है पति सुख के
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    लिए उसकी एक एक चेष्टा केवल अपने पति के
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    लिए होती
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    है यहां तक कि वो पूरे कुटुंब का पुत्र
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    पुत्री सब का पालन
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    पोषण केवल पति प्रसन्नता के लिए करती है
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    ठीक बस ऐसे ही शरणागत का स्वभाव बन जाता
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    है उसकी शरीर की सारी चेष्टा एं प्रभु को
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    समर्पित सारी इंद्रियों की चेष्टा प्रभु
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    को व शरणागत
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    है तभी सेवक जी महाराज कह रहे हैं हरिवंश
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    पतिव्रत है जिनके सुख संपति दंपति जतिन
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    के वृंदावन में विराजमान सहचर के मध्य में
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    प्रिया प्रीतम के प्रति जिसका ऐसा अनन्य
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    भाव बोले उसको निश्चित प्रिया प्रीतम
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    प्राप्त होते हैं उनकी सेवा उसको प्राप्त
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    यह बहुत बड़ी बात है ज्ञान निधि वैराग्य
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    निधि बड़े-बड़े महापुरुष जब थोड़ा सा रस
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    का श्रवण हुआ तो आकांक्षाएं जागृत हो जाती
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    हैं हरि राम व्यास जी जिसे पद में कह रहे
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    हैं किशोरी तेरे चरणन की रज पाऊ बैठ रहो
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    कुंजन के कोने श्याम राध का गाव जो रज शिव
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    सनकादिक
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    याचक जिस रस की किनका को श्रवण
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    करके याचना करते हैं कि अगर रज मिल गई तो
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    प्रेम मिल जाएगा प्रेम मिल गया तो प्रिया
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    प्रीतम मिल
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    जाएंगे ज्ञान समुद्र है भगवान शिव ब्रह्मा
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    जी परम ज्ञान समुद्र है संपूर्ण सृष्टि का
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    सजन ज्ञान विज्ञान उन्हीं की तो देन
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    है शरणागत भक्त शरीर
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    को सुख पूर्वक रखता है नहाना ना
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    कपड़ा कैसे जैसे एक पतिव्रता अपने शरीर को
  • 00:09:56
    सजाती है उसका उद्देश्य क्या होता है पति
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    को सुख देना पति देखेगा प्रसन्न
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    होगा यह हमारे परम पति का दासत
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    [संगीत]
  • 00:10:07
    है गर्व से जैसे वो मांग भरती है मंगल
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    सूत्र धारण करती ऐसे ये तुलसी जी ये हमारा
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    मंगल सूत्र है हमारे प्रीतम परम पति के
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    लिए ये जैसे ये हमारा सुहाग
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    है किसी के एक प्रीतम होते हैं तो ठसक में
  • 00:10:31
    घूमती है हमारे तो दोदो प्रीतम प्रिया और
  • 00:10:34
    प्रीतम दोनों बिहर दोऊ प्रीतम कुंज ये
  • 00:10:39
    हमारे
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    दो उस शरीर को लेकर के कि
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    जैसे कोई बाहरी
  • 00:10:50
    देखे पोशाक धारण किए
  • 00:10:54
    हुए खुशबू आ रही है उसके शरीर से इत्र लगा
  • 00:10:57
    हुआ है स्वामिनी के प्रसादी और पान पाए
  • 00:11:01
    हुए स्वामिनी का पान
  • 00:11:04
    प्रसाद जैसे हम पात्र मार्जन करके श्री जी
  • 00:11:08
    की सेवा में लगाते हैं अब यह शरीर श्री जी
  • 00:11:11
    की सेवा का पात्र
  • 00:11:13
    है मैं करके भोगों में उतारना निंदनीय है
  • 00:11:17
    त्याज्य है लेकिन श्री जी को समर्पित शरीर
  • 00:11:21
    चाहे गृहस्थ हो चाहे
  • 00:11:22
    विरक्त अब वो उसी तरह से प्यार दुलार लायक
  • 00:11:26
    है जैसे हम ताम पा को मार्जन करके पवित्र
  • 00:11:31
    स्थान में ऊचे पर रखते हैं क्यों क्योंकि
  • 00:11:35
    श्री जी की सेवा में आएगा तो ये य श्री जी
  • 00:11:39
    की सेवा पात्र हो गया शरणागत का चिंतन
  • 00:11:42
    कैसा होता है इसीलिए तुम बाहरी त्याग तो
  • 00:11:46
    देख सकते हो लेकिन आंतरिक समर्पण नहीं देख
  • 00:11:48
    सकते
  • 00:11:50
    हो जो प्रभु के शरणागत हो जाता उसकी कोई
  • 00:11:54
    जाति नहीं होती उसका कोई गोत्र नहीं होता
  • 00:11:57
    कुल नहीं होता उसका कोई
  • 00:12:00
    उसका वही कुल होता है वही जाति होती है
  • 00:12:02
    गोत्र होता है जहा समर्पित हो जाता
  • 00:12:07
    है लोक में देखो थोड़ा सा
  • 00:12:10
    समर्पण अन्य गोत्र कुल की कन्या जब अपने
  • 00:12:14
    पति को स्वीकार करती है तो पति का गोत्र
  • 00:12:18
    कुल उसका हो जाता है फिर उसका अलग से नहीं
  • 00:12:21
    बना अलग तो वो समझ नहीं पा रहा इसलिए नहीं
  • 00:12:25
    एक
  • 00:12:26
    ही वो कोई और रहे कुल में उसका गोत्र अलग
  • 00:12:31
    है उसके और वो जब पति को स्वीकार हुई तो
  • 00:12:34
    पति के गोत्र में गोत्र मिल गया पति के
  • 00:12:36
    कुल में कुल मिल गया अब उसका अलग से कुल
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    गोत्र नहीं जैसे नदियां जब अलग रहती है तो
  • 00:12:43
    नाम अलग होता है जब समुद्र में मिल जाती
  • 00:12:46
    तो एक ही शब्द हो जाता समुद्र ना नदी का
  • 00:12:49
    नाम रह गया ना रूप रह गया ऐसे ही प्रेम
  • 00:12:53
    समुद्र प्रियालाल के शरणागत का गोत्र
  • 00:12:56
    प्रियालाल है कुल प्रियालाल
  • 00:13:00
    जाति प्रियालाल है इसीलिए हमारे प्रियालाल
  • 00:13:04
    की शरणागति में कभी किसी से नहीं पूछा
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    जाता आपका गोत्र क्या है कुल क्या है कौन
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    सी
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    हमें आप हमारे प्रभु के अंश हो प्रभु की
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    शरणागत होना शरण होइए बिल्कुल समान
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    व्यवहार आपके साथ होगा उसमें थोड़ी भी
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    व्यवहार में कि आप इस जात के हैं तो आप इस
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    सेवा में नहीं आ सकते नहीं देखो ना किसी
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    का परिचय नहीं कि आप किस जाति के हो किसी
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    का परिचय नहीं दश वर्ष से आप सेवा में हो
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    किसी का परिचय नहीं ये यहां मात्र नहीं
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    मात्र है आप प्रभु के हो बस प्रभु के होके
  • 00:13:45
    अपने जीवन को प्रभु में बना
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    दो सेवक जी महाराज कहते श्री हरिवंश सुगो
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    कुल देव जाति हरिवंश हरिवंश का तात्पर्य
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    वृंदावन में विराजमान सहचर के मध्य में
  • 00:13:59
    प्रिया प्रीतम यही हमारे गोत्र है यही
  • 00:14:02
    हमारे कुल है यही हमारी जात यही हमारी
  • 00:14:05
    साधन यही हमारी सिद्धि श्री हरिवंश सुगत
  • 00:14:09
    कुल देव जाति हरिवंश श्री हरिवंश स्वरूप
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    हित रिद्ध सिद्धि हरिवंश सब कुछ प्रिया
  • 00:14:19
    प्रीतम ऐसे ही प्रभु के चरणों में
  • 00:14:23
    समर्पित जो हो जाता
  • 00:14:25
    है वो निश्चिंत हो जाता है निर्भय हो जाता
  • 00:14:30
    है निशोक हो जाता है निशंक हो जाता
  • 00:14:35
    है उसके हृदय में किसी भी तरह की कोई
  • 00:14:40
    चिंता भय शोक यह नहीं रह जाता है पर यह
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    होता वही उसी को है जो संपूर्ण आश्र हों
  • 00:14:50
    का त्याग करके एक मात्र भरोसा ले लेता है
  • 00:14:54
    प्रियालाल का प्रभु
  • 00:14:56
    का अब ध्यान से
  • 00:15:00
    सुनना जब प्रभु के आप आश्रित हो गए तोब
  • 00:15:04
    तुम्हारे अंदर यह चिंता ये शोक नहीं होना
  • 00:15:07
    चाहिए कि अभी मेरे अंदर तो भाव सुधरे नहीं
  • 00:15:12
    बहुत सुंदर विषय
  • 00:15:14
    है हमें कोई उन्नति तो दिखाई दे नहीं रही
  • 00:15:17
    है हमारा शरीर
  • 00:15:20
    भी समर्पण किसको कहते हैं शरणागत किसके
  • 00:15:24
    हुए हो किस बात के शरणागत हुए हो यह देख
  • 00:15:29
    शरणागत का प्रधान
  • 00:15:34
    साधन भगवत प्रेमी महात्माओं के संग से
  • 00:15:38
    होती
  • 00:15:39
    शरणागति हनुमान जी नाम
  • 00:15:42
    जपते भगवत
  • 00:15:45
    आश्रित ऐसे नाम जापक भगवत आश्रित विभीषण
  • 00:15:49
    जी ने जब हनुमान जी को
  • 00:15:50
    देखा उसी समय निश्चित हो गया कि प्रभु ने
  • 00:15:53
    मुझे स्वीकार किया और उसी समय से नू पड़
  • 00:15:57
    गई कि अब प्रगट में प्रभु की णा गति हो
  • 00:15:59
    जाएगी नहीं तो साधन तो चल ही रहा था भी
  • 00:16:01
    विषण जी का लेकिन
  • 00:16:03
    शरणागति की बात नहीं थी परम नाम जापक परम
  • 00:16:09
    आश्रित हनुमान जी के दर्शन संभाषण से हृदय
  • 00:16:13
    प्रफुल्लित हो गया कि प्रभु मुझको भी
  • 00:16:15
    स्वीकार कर लेंगे अंततोगत्वा
  • 00:16:18
    विभीषण की शरणागति पुष्ट हुई भगवान स्वयं
  • 00:16:22
    स्वीकार किए शरणागति होती ही संत कृपा से
  • 00:16:26
    है अगर महापुरुषों का संगन मिले तो यहां
  • 00:16:29
    तक पहुंच ही नहीं हो पाएगी विविध साधनों
  • 00:16:33
    के जाल में फसे
  • 00:16:36
    रहोगे बहुत ध्यान देने की हम लोग यही
  • 00:16:38
    परेशान होते रहते हैं हमारे भाव नहीं
  • 00:16:43
    बढ़े हमारी वृत्तियां नहीं
  • 00:16:46
    सुधरी भगवत आश्रित हो नाम जब चल रहा है यह
  • 00:16:51
    पकड़ना तुमहे यही शरणागति का स्वरूप है
  • 00:16:54
    आश्रित है और नाम जो अब हमारे भाव बढ़े ना
  • 00:16:58
    बढ़े ति ठीक हो ना ठीक हो यह हमारा विषय
  • 00:17:00
    नहीं है बहुत महापुरुषों के वचन और यह
  • 00:17:04
    हृदय की बात कह रहा
  • 00:17:07
    हूं जब साधना के विषय में कहते तो हम यही
  • 00:17:10
    कहते कि हम तो अब अपने हृदय की बताए बस हम
  • 00:17:13
    इतना ही साधन जानते हैं जब हित दम में
  • 00:17:16
    छोटी
  • 00:17:17
    कुटिया महाराज जी इसका मतलब मैं नहीं समझ
  • 00:17:20
    पा रहा करते तो हम लोग भी ऐसे हैं पर मतलब
  • 00:17:23
    कुछ फर्क तो मतलब इसका मतलब क्या हम देखो
  • 00:17:27
    मतलब तो नहीं समझा सकते पर इतना कह सकते
  • 00:17:30
    हैं कि जबान से अगर कुछ निकला तो श्री जी
  • 00:17:35
    शरीर से कुछ हुआ तो श्री जी की इच्छा अब
  • 00:17:40
    ना इच्छा रह गई है और ना मैं रह गया है वो
  • 00:17:44
    सब समर्पित हो गया है अब कैसे कब कहां हुआ
  • 00:17:48
    पता नहीं चला जैसे तुम्हारे किशोर अवस्था
  • 00:17:52
    में मुछ किस तारीख को निकली पता चला
  • 00:17:55
    मछ भैया 9 बज 10 मिनट में मछ निकली थी
  • 00:17:59
    अमुक तिथि तारीख आप की तो निकली क्यों
  • 00:18:02
    नहीं पता ऐसे आप की तो शरणागति कब और कैसे
  • 00:18:05
    हो गई पता नहीं चल निहाल हो गए सच कहते जो
  • 00:18:11
    दलते हैं ना ये शरणागति है शरणागति सिर्फ
  • 00:18:15
    शरणागति मेरी लाडली की
  • 00:18:20
    शरणागति कभी कभी ज आसन पर बैठे होते कभी
  • 00:18:25
    कभी आते महीने दो
  • 00:18:27
    महीने सुनो सुनो बहुत हम तुम्हें सार की
  • 00:18:31
    बात मुरारी बता रहे हैं बस बस शरणागति
  • 00:18:34
    आश्रित हो जाओ लाखों बार केवले के यही सब
  • 00:18:37
    आश्रित हो जाओ भगवत आश्रित हो जाओ सब
  • 00:18:40
    संभाल लेंगे सब वो ठीक कर द
  • 00:18:45
    यसे
  • 00:18:47
    ऐसा संग का रंग चढ़ता है सब छोड़ के
  • 00:18:53
    शरणागति शरणागति अंदर से है
  • 00:18:57
    उसके कठोर व्यवहार करके भी
  • 00:19:02
    देखा कोई फर्क नहीं शरणागति पर कोई फर्क
  • 00:19:06
    जब
  • 00:19:07
    जैसे अब तो महाराज जी आपके ऊ परर नाराज
  • 00:19:11
    है इससे हमें ब्रम में नहीं डाल सकते मरे
  • 00:19:16
    जो कहेंगे जैसे कहेंगे सब छोड़न या नहीं
  • 00:19:20
    प्रश ऐसे नहीं वैसे वैसे वैसे शरणागति को
  • 00:19:25
    समझ जाए तो फिर कोई भय नहीं रहता अब हम
  • 00:19:28
    हमारी जिम्मेवारी कि हमारा मन कहां जा रहा
  • 00:19:30
    है हमारी चित्त वृत्ति कहां जा रही हमारी
  • 00:19:33
    स्थिति क्या है आप देखो आप देखो प्रभु आप
  • 00:19:36
    देखो आपका सब मस्ती ना आ जाए उसी क्षण उसी
  • 00:19:41
    क्षण मस्ती आ जाएगी
  • 00:19:45
    आप ध्यान से
  • 00:19:48
    देखना यदि तुमने संपूर्ण आश्र का त्याग
  • 00:19:53
    करके तो ये संपूर्ण आश का त्याग होता ही
  • 00:19:56
    है केवल संत से
  • 00:19:59
    पढ़ने लिखने से नहीं होता अपने आप जो
  • 00:20:03
    शरणागति का स्वरूप आएगा वो संत संग सर्व
  • 00:20:06
    संगो पहो हिमाम समस्त संगो के त्याग कराने
  • 00:20:10
    के सामर्थ्य सिर्फ सत्संग में है सिर्फ
  • 00:20:13
    सत्संग में बिना संत महापुरुषों के ये
  • 00:20:17
    शरणागति नहीं होती पर ऐसे संत भगवान की
  • 00:20:20
    कृपा से मिलते हैं जिनका एक भरोसा एक बल
  • 00:20:24
    एक आत्मविश्वास केवल प्रभु से है बहुत
  • 00:20:27
    मुश्किल को एक पाव भगत जी में मोरी ऐसी
  • 00:20:32
    शरणागति किसी किसी के हृदय में प्रकाशित
  • 00:20:35
    होती
  • 00:20:37
    है जिसने संपूर्ण आश्रय सहार का त्याग
  • 00:20:42
    करके केवल प्रभु का आश्रय ले लिया अब उसको
  • 00:20:46
    यह चिंता नहीं करनी कि हमारे भाव हमारी
  • 00:20:50
    वृत्तियां हमारे आचरण में तो कोई फर्क
  • 00:20:52
    पड़ा नहीं सुधार हुआ नहीं भगवत प्रेम भगवत
  • 00:20:57
    दर्शन यह सब कुछ तो हो ही नहीं
  • 00:21:01
    रहा हमें लगता है कि भगवान ने स्वीकार
  • 00:21:04
    नहीं किया
  • 00:21:06
    क्या मेरी अयोग्यता नहीं गई मेरा अनाधिकार
  • 00:21:10
    निर्बलता यह सब वैसे की वैसे ही
  • 00:21:14
    है तो यदि तुम्हारे अंदर इनकी चिंता है और
  • 00:21:18
    भय है तो वास्तविक तुम शरणागत नहीं
  • 00:21:21
    हुए तुम्हें कोई चिंता इनकी नहीं करनी कोई
  • 00:21:25
    भय नहीं करना कारण तुम प्रभु के अनन्य
  • 00:21:30
    शरणागत हो गए हो बड़ी मस्ती का
  • 00:21:36
    विषय कमी है तो वह प्रभु की है तुम्हारी
  • 00:21:39
    नहीं
  • 00:21:42
    है यही तो ठसक होती है
  • 00:21:46
    यही अब सुधार करना तुम्हारा काम नहीं और
  • 00:21:51
    सुधार भी नहीं सकते पक्का बात
  • 00:21:55
    है करोड़ों कल्प तक हम सुधारते
  • 00:22:01
    सच्ची बात है बहुत प्रबल भगवान की माया एक
  • 00:22:05
    क्षण में कहां से कहां चित्तवृत्ति कहां
  • 00:22:07
    से कहां पहुंच जाता है मन लेकिन यह जब
  • 00:22:11
    सुधारते हैं तो तुमसे सच कहते हैं ऐसी
  • 00:22:15
    स्थिति प्रदान करते हैं रुचि शब्द का ही
  • 00:22:19
    लय हो जाता है कहीं कोई रुचि नहीं कहीं
  • 00:22:24
    कोई यहां से लेकर ब्रह्म लोक कोई रुचि
  • 00:22:27
    नहीं वो अपनी सामर्थ्य नहीं होती इनकी
  • 00:22:30
    सामर्थ्य य देते हैं स्थिति देते
  • 00:22:34
    हैं तभी तो आश्चर्य होता कि कल तक तो
  • 00:22:38
    य ऐसा आज ऐसा कैसे हो सकता है कल हमने
  • 00:22:43
    देखा ऐसा व आज कैसे ऐसा अरे एक क्षण
  • 00:22:48
    में बस यही शरणागति का तभी समाज को
  • 00:22:53
    व्यवहारी लोगों को विश्वास नहीं होता ऐसा
  • 00:22:56
    भी हो सकता है क्या बड़े-बड़े महापुरुष
  • 00:22:59
    जसे नरस मेहता इन सब सबको ऐसा कैसे हो
  • 00:23:01
    सकता है ऐसा कैसे हो सकता है यह पता नहीं
  • 00:23:05
    कि वो शरण में किसकी हुए कर तुम जो हो
  • 00:23:08
    सकता है व भी हो ही जाएगा अक तुम जो नहीं
  • 00:23:13
    हो सकता वो भी हो जाएगा जो बिल्कुल नहीं
  • 00:23:15
    हो सकता वो भी हो जाएगा जैसे सुई के जहां
  • 00:23:19
    धागा डाला जाता है छेद में बड़ी मुश्किल
  • 00:23:22
    से धागा जाता है वहां से अनंत ब्रह्मांड
  • 00:23:24
    पार कर दे उनको कहते हैं भगवान कर तुम अक
  • 00:23:28
    तुम अन्यथा कर तुम सर्व समर्था सा ईश्वरा
  • 00:23:32
    विश्वास करो जिनकी तुम शरण में
  • 00:23:37
    हो अब तुम्हारा सुधार
  • 00:23:41
    होना प्रभु की जिम्मेवारी है तुम्हारा
  • 00:23:45
    कर्तव्य नहीं रह गया अपना सुधार करना यह
  • 00:23:48
    बहुत एकांतिक विषय है इसीलिए अर्जुन से
  • 00:23:52
    कहा था कि बहुत ही गुत बात मैं कह रहा हूं
  • 00:23:55
    क्योंकि तुम मेरे प्रिय हो
  • 00:23:59
    सर्व
  • 00:24:01
    धर्मानना एकम शरणम ब्रज अहम तवाम सर्व पाप
  • 00:24:07
    मोक्ष श्याम मा सुचा बहुत प्रिय बात और
  • 00:24:10
    कहती बहुत ग्रह तम है और बताया कि जो सठ
  • 00:24:14
    स्वभाव वाले दुष्ट स्वभाव वाले अ श्रद्धा
  • 00:24:18
    ऐसे लोगों कभी सुनाना नहीं बात य बड़ा गुण
  • 00:24:23
    विषय बड़ा गुण
  • 00:24:27
    विषय री कमी अब मेरी कमी
  • 00:24:32
    है अब ये हृदय बहिर्मुखी आपको समझ में
  • 00:24:37
    नहीं आ रहा कितनी बड़ी बात है अब शरणागत
  • 00:24:41
    की कमी शरणागत की नहीं है कह तेरी कमी
  • 00:24:47
    मेरी कमी
  • 00:24:49
    है अब उस कमी
  • 00:24:53
    को दूर करना सुधार करना मेरा काम है मैं
  • 00:24:58
    अपना काम अगर ना भी करूं तो जो तुम्हारा
  • 00:25:01
    काम होना वो हो जाएगा समझ रहे हो तुम्हारा
  • 00:25:04
    काम क्या भगवत साक्षात काल वो करा
  • 00:25:08
    देंगे जन अवगुण प्रभु मान न काऊ दीन बंधु
  • 00:25:13
    अति मृदुल
  • 00:25:17
    स्वभाव इसी स्वभाव के बल पर तो जीते हैं
  • 00:25:21
    अपने
  • 00:25:23
    लोग स्वभाव का परिचय गुरु कृपा से जब हो
  • 00:25:26
    जाता है निश्चित
  • 00:25:29
    हमारे स्वामी तो क्या शरणागत गलत आचरण
  • 00:25:33
    करता है
  • 00:25:34
    क्या जब हम अहम की धरा में होते हैं तब
  • 00:25:39
    गलत आचरण होते हैं जब शरणागत होते हैं तो
  • 00:25:43
    चूक हो सकती है गलत आचरण की चूक कुसंग हो
  • 00:25:49
    गया कुछ ऐसा कुछ ऐसी गलती हो गई अब उसके
  • 00:25:54
    हृदय में भारी पश्चाताप ऐसा कैसे हो गया
  • 00:25:58
    राहते ना प्रभु चित चूक कि की वह संकल्प
  • 00:26:03
    करके उत्साहित होकर गलती नहीं अचानक फिसल
  • 00:26:06
    गया पैर
  • 00:26:07
    उसका राहत ना प्रभु चित चूक कि की करत
  • 00:26:12
    सुरत स बार की यह मेरा शरणागत है यह भगवान
  • 00:26:17
    100 बार चिंतन करते हैं उससे जो चूक हुई
  • 00:26:20
    उसकी तरफ देखा ही नहीं कितना महा महिम
  • 00:26:25
    शरणागत महामहिम शरणागति
  • 00:26:30
    तुम्हारा तो बस एक काम
  • 00:26:33
    है मेरा नाम मेरा आश्रय शरणागति के दो
  • 00:26:38
    प्रधान सोपान है
  • 00:26:41
    आश्रय और जिनका आश्रय लिया राधा राधा राधा
  • 00:26:45
    राधा
  • 00:26:46
    राधा मैं तुम्हें निश्चिंत कर
  • 00:26:50
    दूंगा यह दो तुम्हारे पक्ष की बात है हृदय
  • 00:26:55
    से आश्रित हो गए और नाम जप चल रहा
  • 00:26:59
    बस वृतिया सुधरी की नहीं सुधरी भाव बड़ा
  • 00:27:02
    कि नहीं बड़ा क्या स्थिति क्या कुछ मतलब
  • 00:27:05
    हमसे नहीं है तुम्हारे नाम कर दिया
  • 00:27:09
    जीवन भगवान क्या कह रहे हैं मैं उसे
  • 00:27:12
    निश्चिंत कर देता हूं निशोक कर देता हूं
  • 00:27:17
    निर्भय कर देता हूं निशंक कर देता हूं बस
  • 00:27:21
    वो तो बेपरवाह होकर मेरे चरणों का आश्रय
  • 00:27:25
    लेकर पड़ा है मेरे चरणों में वही काह के
  • 00:27:30
    बल भजन को काह के आचार और व्यास भरोसे
  • 00:27:34
    कुवर के सोवत पाव पसार अब तो आपके गले पड़
  • 00:27:38
    गए आपके चरण आश्रित हो
  • 00:27:45
    गए तात्पर्य कि अब उसके अंदर यह वृत्ति आ
  • 00:27:48
    गई कि मेरा तो शरीर है नहीं मेरा अंतःकरण
  • 00:27:52
    नहीं मेरी इंद्रिया ये तो हमने अपने प्रभु
  • 00:27:55
    के नाम कर दिया अभ जो कुछ करें प्रभु
  • 00:27:58
    हिसाब किताब जाने मैं भी प्रभु का और मेरा
  • 00:28:01
    भी प्रभु का जो मैं मेरा था वो प्रभु अरे
  • 00:28:05
    शुरू तो करो आप स्थिति हृदय में आ जाएगी
  • 00:28:08
    नहीं फिर परिस्थिति आ जाएगी जिसमें अपने
  • 00:28:11
    आप शरणागत हो
  • 00:28:13
    जाओगे परिस्थिति ने बहुत बड़ी कृपा
  • 00:28:18
    की कभी-कभी आती थी तरंग ज वृंदावन में आए
  • 00:28:24
    शरणागति
  • 00:28:26
    जैसे तुरंत काट कर देता ब्रह्म ज्ञान काशी
  • 00:28:30
    का जो ज्ञान था तुरंत काट नहीं सत्य विषय
  • 00:28:34
    तो एक ही
  • 00:28:35
    है और
  • 00:28:37
    व मैं हूं सबके हृदय में आत्म तत्व कौन
  • 00:28:42
    किसकी
  • 00:28:44
    शरणागति ठिकाना ही नहीं मिलता इतनी प्रवीण
  • 00:28:48
    बुद्धि थी तत्काल ऐसे काट देती शरणागति
  • 00:28:53
    को बहुत बड़े खिलाड़ी प्रभु अच्छा अब देख
  • 00:28:57
    ये अंदर क विषय कई बार ऐसा हुआ कि कोई
  • 00:29:01
    महात्मा मिले जिससे हम अपनी बात रख सके
  • 00:29:04
    किस बात कि मेरा ज्ञान जो है अंदर से ऐसा
  • 00:29:08
    होता है और हृदय कहता है शरण में हो जाओ
  • 00:29:11
    अब दोनों का कैसे मतलब या सत्य की वह सत्य
  • 00:29:15
    फिर तो मतलब बड़ी विचित्र स्थिति होती है
  • 00:29:18
    ना जब दूषित कब परितोष न
  • 00:29:23
    लई बड़ा मतलब
  • 00:29:28
    गई रिपोर्ट किडनी फेल अब वो जो काट करने
  • 00:29:32
    वाला था ना अब घबरा गया अब तो मेरी बस का
  • 00:29:36
    कुछ नहीं रह
  • 00:29:38
    गया बस फिर जो शुरू हुआ यह परिस्थिति को
  • 00:29:44
    प्रणाम है जिसने बिना प्रश्न के उत्तर दे
  • 00:29:47
    दिया और प्रभु की हृदय की जो प्रेम मूर्ति
  • 00:29:52
    लाड़ लीज इनकी शरणागत तो मैं सच्ची कहता
  • 00:29:55
    हूं यह शरणागति परिस्थिति स्थिति ने करवाई
  • 00:29:59
    नहीं तो काशी का जो बनारस का जो ज्ञान था
  • 00:30:03
    विश्वनाथ जी का वो ऐसा बचपन से तो वह
  • 00:30:09
    कभी द्वत है नहीं तो शरणा ये सेवक
  • 00:30:13
    किसका अब क्या उत्तर दे जहां भी तो बस
  • 00:30:19
    एकांत होते तो वही योग वा शेष वही
  • 00:30:25
    अष्टावक्र विराजमान वो तू ही है है
  • 00:30:30
    महात्मा अह ब्रह्मा य किसकी शरणागति
  • 00:30:35
    वो ऐसी परिस्थिति पर त्राहिमाम मच गया
  • 00:30:39
    क्या वहां का तो ठीक है काशी लेकिन यहां
  • 00:30:43
    भी हमारा जो आकर्षण हुआ उसका साक्षात्कार
  • 00:30:46
    नहीं हुआ और जीवन
  • 00:30:49
    की अंतिम स्थिति आने वाली अब क्या होगा अब
  • 00:30:54
    क्या होगा मैं तो किसी योग्य ल तो पुकार
  • 00:30:57
    उठ
  • 00:30:59
    स्वामिनी
  • 00:31:00
    लाड़ली
  • 00:31:02
    बस यही यही बात बन गई यही बन
  • 00:31:06
    गई या तो भगवान ऐसा संग दे दे विवेक दे दे
  • 00:31:11
    कि शरणागति हो जाए और या परिस्थिति दे दे
  • 00:31:15
    नहीं तो यह अहंकारी जीव बातें शरणागति की
  • 00:31:19
    करता है और वास्तविक शरणागत नहीं हो पाता
  • 00:31:22
    है
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