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वैसे तो सुप्रीम कोर्ट के रिसेंटली आए
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लैंडमार्क जजमेंट्स को काफी लोगों ने
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प्रेज किया था इस जजमेंट के आते ही हर
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फील्ड से कई तरह के रिएक्शंस और डिस्कशंस
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देखने को मिले थे पॉलिटिकल लीडर्स और
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पार्टीज तो इस पर चर्चा कर ही रहे थे
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लेकिन इसी बीच लीगल फ्रेटरनिटी के लोगों
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की जो ओपिनियन सुनने को मिले हैं वह काफी
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ज्यादा दिलचस्प और डिबेटेबल थी आपको बता
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दूं कि इस डिबेट ने अब और ज्यादा आग इसलिए
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भी पकड़ ली है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के
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एक फीमेल जज ने सुप्रीम कोर्ट के इस
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लैंडमार्क जजमेंट और बुलडोजर जस्टिस जैसे
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प्रैक्टिस पर अपने विचार पेश किए हैं
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सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नाग
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रत्ना ने एक जबरदस्त और सोचने पर मजबूर कर
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देने वाली स्पीच दी है जो डेमोक्रेसी
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कानून और एग्जीक्यूटिव ओवर री जैसे
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टॉपिक्स को टच करती है यह स्पीच उन्होंने
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जस्टिस एस नाथ रजन सेंटेना मेमोरियल
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लेक्चर के दौरान चेन्नई में दी जिसमें
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उन्होंने बुलडोजर डिमोलिशंस पर सुप्रीम
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कोर्ट के एक रिसेंट जजमेंट की तारीफ की है
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और इसका नॉलेजेबल और क्रिटिकल एनालिसिस
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दिया आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि अपने
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स्पीच में उन्होंने एक बात क्लियर कर दी
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कि अगर किसी व्यक्ति की प्रॉपर्टी बिना
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किसी जुडिशियस प्रोसेस के तोड़ दी जाए तो
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यह एक इलीगल और अनकंस्टीट्यूशनल एक्ट है
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लेकिन यह बस एक पार्ट है उनकी स्पीच का इस
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वीडियो में हम डिटेल में समझेंगे कि
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उन्होंने क्या कहा सुप्रीम कोर्ट के
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बुलडोजर डिमोलिशंस पर क्या नए गाइडलाइंस
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आए हैं और कैसे यह सब कुछ लोकतंत्र और आम
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इंसान के फंडामेंटल राइट्स के लिए
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रिलेवेंट है साथ ही कुछ रिनाउंड
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पर्सनेलिटीज द्वारा दिए गए इंटरव्यूज भी
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देखेंगे जहां उन्होंने इस जजमेंट को
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क्रिटिकली एनालाइज किया है आपने कभी टीवी
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पर या न्यूज़पेपर में देखा होगा कि किसी
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का घर या दुकान बुलडोजर से तोड़ दिया गया
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और फिर बोला गया कि इलीगल लीगल
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कंस्ट्रक्शन थी या उस व्यक्ति का कोई
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क्रिमिनल रिकॉर्ड था लेकिन यह प्रैक्टिस
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एक बड़े सवाल को जन्म देती है क्या बिना
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किसी लीगल ट्रायल के किसी की प्रॉपर्टी
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तोड़ देना सही है यही सवाल सुप्रीम कोर्ट
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और जस्टिस बीवी नाग रत्ना के सामने आया जब
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बुलडोजर डिमोलिशंस का मुद्दा उनकी स्पीच
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का एक हिस्सा बना जस्टिस नाग रत्न ने कहा
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डेमोक्रेसी के बेसिक प्रिंसिपल में यह
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नहीं लिखा कि किसी को बिना जुडिशियस
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प्रोसेस के सजा दी जाए अगर आप बिना ट्रायल
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के प्रॉपर्टी डिमोलिश करते हैं तो आप
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कानून का मजाक उड़ाते हैं जहां एक तरफ
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जस्टिस नाग रत्ना ने सुप्रीम कोर्ट के इस
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जजमेंट को एक माइ स्टोन कहा जो रूल ऑफ लॉ
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को मजबूत बनाता है वहीं दूसरी तरफ
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इंडिपेंडेंट इन्वेस्टिगेटिंग जर्नलिस्ट
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सौरव दास ने एक इंटरव्यू दिया देखिए उसमें
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उन्होंने क्या कहा है आप देखेंगे कि 2 साल
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चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रहे लेकिन जो
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बुलडोजर इंजस्टिस होते रहा देश में अब
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जाके चलिए एक अच्छे बेंच के पास वो गया वो
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बेंच ने बहुत ही मतलब एक स्टे भी लगा दिया
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पूरा पैन इंडिया स्टे लगा दिया लेकिन वो
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बहुत ही बाद में हुआ इतने सालों तक वो
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बुलडोजर इंजस्टिस चलते रहा चीफ जस्टिस
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चंद्रचूड़ जो लिबर्टी के बारे में
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उन्होंने बोला था कि एक दिन भी अगर जेल
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में कोई रहा इलीगली वो दिन के बराबर है
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ऐसा मतलब एक्ट ऐसा स्टेटमेंट नहीं था
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लेकिन उनका सेंटीमेंट वही था ऐसे चीफ
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जस्टिस के अंडर अगर सुप्रीम कोर्ट को इतना
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टाइम लग गया बुलडोजर इंजस्टिस को देखने
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में तो आप फिर कैसे वो लेसी आप डिसाइड
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करेंगे उनका लेगे क्या है आप देखेंगे आपकी
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लेसी के बारे में इनका चीफ जस्टिस चंद्र
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चूट का इतना
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डिस्परेयूनिया इस्तेमाल कई बार पॉलिटिकल
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टूल के रूप में होता है जो अक्सर
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माइनॉरिटी या पॉलिटिकली मार्जिनलाइज्ड
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कम्युनिटीज को टारगेट करता है इसलिए यह
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सिर्फ एक लीगल मुद्दा नहीं बल्कि एक सोशल
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और पॉलिटिकल चैलेंज भी है हालांकि सुप्रीम
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कोर्ट ने रीसेंट जजमेंट में बुलडोजर
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डिमोलिशंस पर स्ट्रिक्ट गाइडलाइंस भी दी
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है जस्टिसेज बीआर गवई और केवी विश्वनाथन
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की बेंच ने जब ये जजमेंट दिया जिसमें कहा
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गया कि नो डिमोलिशन शुड बी कैरिड आउट
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विदाउट प्रॉपर लीगल नोटिस सिर्फ यही नहीं
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बेंच ने और भी कई रिमार्क्स पास किए
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स्टेटिंग अ फेयर ट्रायल इज द राइट ऑफ एवरी
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इंडिविजुअल नो मैटर द एलिगेशंस बेंच ने
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क्लियर किया कि एग्जीक्यूटिव ऑफिसर्स जो
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बिना जुडिशियस अप्रूवल के डिमोलिशन
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ऑर्डर्स देते हैं उनके अगेंस्ट स्ट्रिक्ट
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अकाउंटेबिलिटी होनी चाहिए इन जजमेंट्स के
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बाद सुप्रीम कोर्ट ने क्लियर किया कि
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डिमोलिशन से पहले एक 15 दिन का नोटिस दिया
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जाना जरूरी है और प्रॉपर्टी ओनर को एक
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पर्सनल हियरिंग का मौका मिलना चाहिए अगर
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यह प्रोसेस फॉलो नहीं किया गया तो ऑफिशल्स
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के अगेंस्ट कंटेम प्रोसीडिंग्स हो सकती है
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आगे आपको बता दूं कि जस्टिस नाग रत्ना की
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स्पीच भी एक रिफ्लेक्शन थी जुडिशरी और
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एग्जीक्यूटिव के रोल्स पर उन्होंने
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बुलडोजर डिमोलिशंस के टेक्स्ट में कहा दिस
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इज वन स्टार्क एग्जांपल ऑफ एग्जीक्यूटिव
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एक्सेसेस इन रिसेंट इयर्स उन्होंने यह भी
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हाईलाइट किया कि जुडिशरी का रोल सिर्फ
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कानून बनाने तक सीमित नहीं है जुडिशरी का
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असली रोल है कानून का फेयर इंप्लीमेंटेशन
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इंश्योर करना अगर जुडिशरी अपनी
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रिस्पांसिबिलिटी नहीं निभाएगी तो
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डेमोक्रेसी एक मोबोक्रेसी बन जाएगी
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उन्होंने एक और क्रिटिकल पॉइंट उठाया और
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कहा ऑफिशल्स हु कैरी आउट डिमोलिशंस
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आर्बिटर शुड बी मेड टू आंसर फॉर देर
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एक्शंस अकाउंटेबिलिटी इज नॉन नेगोशिएबल इन
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अ डेमोक्रेसी बुलडोजर डिमोलिशंस के अलावा
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जस्टिस नागर ने ट्राइब ल्स पर भी बात की
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ट्रिब्युनल्स का असली मकसद हाई कोर्ट्स का
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बर्डन कम करना है लेकिन आज यह सिस्टम
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एग्जीक्यूटिव कंट्रोल का शिकार है
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उन्होंने कहा ट्रिब्युलस हैव इंक्रीजिंगली
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बिकम टूल्स फॉर द एग्जीक्यूटिव टू
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इंटरफेयर इन जुडिशियस फंक्शंस दिस
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थ्रेटेंस द सेपरेशन ऑफ़ पावर्स इं शंड इन
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अ कांस्टिट्यूशन जस्टिस नाग रतना के
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वर्ड्स में ट्रिब्युलस शुड नॉट बिकम अ
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रिहैबिलिटेशन मैकेनिज्म फॉर रिटायर्ड जजेस
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दे शुड सर्व द पर्पस दे वर ओरिजनली
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इंटेंडेड फॉर यह बात एक बड़ी डिबेट को
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जन्म देती है कि क्या ट्रिब्युनल्स अपने
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असली ऑब्जेक्टिव्स का अचीव कर पा रहे हैं
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या नहीं जस्टिस नाग रत्ना ने ऑर्डिनेंस
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मेकिंग पावर्स के मिसयूज पर भी अपनी चिंता
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व्यक्त की कई सरकारें ऑर्डिनेंसस का
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इस्तेमाल एक शॉर्टकट के रूप में करते हैं
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जिसमें लेजिस्लेटिव अप्रूवल की जरूरत नहीं
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होती उन्होंने कहा इन रिसेंट इयर्स
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ऑर्डिनेंस मेकिंग हैज बिकम अ कन्वीनियंस
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टूल फॉर बायपासिंग लेजिस्लेटिव स्क्रूटनी
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दिस इज डीप प्रॉब्लमैटिक फॉर अ डेमोक्रेसी
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यह बात उन्होंने डीसी वा दवा वर्सेस स्टेट
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ऑफ बिहार केस के रेफरेंस के साथ रखी
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जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने ऑर्डिनेंसस को
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बार-बार रिप्रोमल्गेशन करने की प्रैक्टिस
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को अनकंस्टीट्यूशनल डिक्लेयर किया था
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जस्टिस नाग रतना ने अपनी स्पीच के एक और
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क्रिटिकल हिस्से में प्रेसिडेंट और
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गवर्नर्स के
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डिस्क्रेसियस प्रिंसिपल्स के मुताबिक होना
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चाहिए ना कि किसी पर्सनल या पॉलिटिकल
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इंटरेस्ट के लिए उन्होंने एमफसा इज किया द
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सेटिस्फैक्ट्रिली
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दे मस्ट एक्ट इन अकॉर्डेंस विद द रूल ऑफ
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लॉ नॉट आर्बिट्रेरी विम्स उनका यह
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स्टेटमेंट एक इंपॉर्टेंट रिमाइंडर है कि
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पॉलिटिकल प्रेशर्स जुडिशरी या
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एग्जीक्यूटिव की इंपार्शियल्टी को इंपैक्ट
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नहीं करना चाहिए सभी जा जानते हैं कि
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बुलडोजर डिमोलिशंस का इंपैक्ट सिर्फ एक
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व्यक्ति तक सीमित नहीं है यह पूरे सोसाइटी
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के लिए एक प्रेसिडेंट सेट करता है अगर
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बिना जुडिशियस प्रोसेस की डिमोलिशन होती
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रहेगी तो आम नागरिक का कानून पर भरोसा कम
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होगा सुप्रीम कोर्ट ने ऑब्जर्व किया द रूल
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ऑफ लॉ कैन नॉट एजिस्ट इफ एक्शंस आर टेकन
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विदाउट फॉलोइंग ड्यू प्रोसेस आर्बिट्रेरी
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डिमोलिशंस अंडर माइन पब्लिक फेथ इन द
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जुडिशरी जस्टिस नाग रत्ना का यह कहना था
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कि डेमोक्रेसी का असली एसेंस तभी सफल होता
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है जब अकाउंटेबिलिटी और ट्रांसपेरेंसी
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दोनों हो जस्टिस नाग रत्ना ने डेमोक्रेसी
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का असली मकसद डिफाइन करते हुए कहा
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डेमोक्रेसी इज नॉट मरली अबाउट मेजॉरिटी
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रूल इट इज अबाउट एलिवेटर पब्लिक ओपिनियन
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थ्रू इंक्लूजन ऑफ डायवर्जेंट एंड
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कांट्रेरियन आइडियाज उन्होंने यह भी कहा
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कि अगर जुडिशरी और मीडिया डिसेंट वॉइसे को
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सप्रे करते हैं तो डेमोक्रेसी का असली
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मतलब खत्म हो जाता है खैर कब तक डिसेंडिंग
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वॉइसे स्रेस होने से फ्री रहती है इसका तो
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पता नहीं लेकिन सुप्रीम कोर्ट के
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डायरेक्शंस पर एसपी चीफ अखिलेश यादव के
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व्यूज हम आपको सुना सकते हैं आज सुप्रीम
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कोर्ट का बड़ा फैसला आया है 1 अक्टूबर तक
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हालाकि रोक लगा दी उसके बाद एक और भी
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उसमें फैसला आ देखिए
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बुलडोजर न्याय नहीं हो सकता है बुलडोजर
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अनकंस्टीट्यूशनल था बुलडोजर लोगों को
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डराने के लिए था बुलडोजर जानबूझ करके
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विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए था मैं
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धन्यवाद और बधाई दूंगा सुप्रीम कोर्ट के
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फैसले को जिसने बुलडोजर को रोकने का काम
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किया है मुख्यमंत्री जी और खासकर उत्तर
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प्रदेश की सरकार और बीजेपी के लोग इस
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बुलडोजर को इतना महिमा मंडल कर रहे थे कि
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ब र ही न्याय हो गया है और इनके तमाम
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कार्यक्रमों में इनकी रैलियों में इस बात
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को यह इतना बढ़ा चढ़ा कर के लेकर के आते
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थे जिससे लोगों के अंदर भय पैदा कर सके अब
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जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है मैं
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समझता हूं बुलडोजर रुकेगा और न्यायालय से
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न्याय मिलेगा ग्लोरिफिकेशन के ऊपर भी इसको
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ग्लोरिफाई जिस तरह से किया जाता था यह
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तरीका था भारतीय जनता पार्टी का लोगों को
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डराने के लिए उन्होंने न्याय के लिए
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बुलडोजर बना दिया था
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बोजन अन्याय का प्रतीक हो सकता है न्याय
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का प्रतीक नहीं हो सकता को ले भी आपवा ऐसे
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ही कांग्रेस लीडर और सुप्रीम कोर्ट लॉयर
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विवेक तनखा ने भी देखिए सुप्रीम कोर्ट के
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बुलडोजर जस्टिस वर्डिक्ट पर क्या कहा है
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हिस्टोरिक डे फॉर इंडिया ए हिस्टोरिक
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जजमेंट फ सिविल लिबर्टी आ कंसर्न एंड
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इंडिविजुअल पर्सनल लाइफ एंड लिबर्टी
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कंसर्न सुप्रीम कोर्ट है थ द स्टेट थ द
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स्टेट फॉर दिस बुलडोजर राज और बुलडोजर
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द वे स्टेट गवर्नमेंट्स वेर बिहेविंग विद
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अट मोस्ट एरोगेंस एंड इट लुक्ड वेरी
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अनएजुकेटेड इट लुक्ड एज इफ दे वुड दे वुड
00:08:38
यूज इट एज अ पॉलिटिकल टूल नाउ दिस ऑल दिस
00:08:41
हैज स्टॉप्ड देर कैन बी नो बुलडोजर राज
00:08:44
नाउ इफ यू वांट टू डिमोलिश सम बडी ज हाउस
00:08:47
यू हैव टू गिव हिम अ नोटिस इन मिनिमम 15
00:08:49
डेज टाइम देर विल बी अ हियरिंग देर विल बी
00:08:52
एन ऑर्डर दैट इज चैलेंजेबल इन लॉ एनीबडी
00:08:55
डूइंग इट टुडे विल बी फेसिंग कंटेम एंड आई
00:08:58
फील दैट पीपल हु डन इट इन द पास्ट कैन
00:09:01
आल्सो बी प्रोसेक फॉर व्हाट दे डिड बिकॉज
00:09:04
अकॉर्डिंग टू सुप्रीम कोर्ट इट वाज बैड इन
00:09:07
लॉ सो दे हैव नाउ द सुप्रीम कोर्ट जज
00:09:10
आल्सो ओपन द गेट्स फॉर प्रोसेक ऑफ ऑल दोज
00:09:12
पीपल हु कमिटेड सच इलीगलिटी इन द पास्ट
00:09:16
बीट एनी स्टेट इन इंडिया सुप्रीम कोर्ट के
00:09:18
नए गाइडलाइंस और उनके क्रिटिकल एनालिसिस
00:09:20
ने जुडिशरी के रोल को एक नया पर्सपेक्टिव
00:09:22
में रखा है लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब
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जुडिशरी एग्जीक्यूटिव और लेजिस्लेटर अपने
00:09:27
डिफाइंड रोल्स को निभाए और अकाउंट लिटी को
00:09:29
प्रायोरिटी देंगे आज जरूरत है कि हर
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सिटीजन इन स्पीस और जजमेंट्स को समझे और
00:09:34
अपने राइट्स के लिए अवेयर रहे क्योंकि
00:09:35
डेमोक्रेसी के असली रक्षक आखिर आम लोग ही
00:09:38
है इस केस में अपने व्यूज हमारे साथ जरूर
00:09:40
शेयर करें अनटिल देन कीप फॉलिंग लॉ चक्र
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[संगीत]