हास्य प्रसंग पशु पक्षी मनुष्य की शिकायत करने गए ब्रह्मा जी के पास श्री राजेश्वरानंद महाराज जी

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https://www.youtube.com/watch?v=K6WDB5BVOTY

Résumé

TLDRइस कहानी में ब्रह्मा जी के दरबार में पशुओं की शिकायतें सुनाई गई हैं, जहां वे मनुष्यों द्वारा किए गए अत्याचारों के बारे में बात करते हैं। पशु यह बताते हैं कि मनुष्य ने उनके साथ अन्याय किया है, जैसे घोड़े की पीठ पर बैठना और भेड़ के ऊन का उपयोग करना। ब्रह्मा जी पशुओं की शिकायतों को सुनते हैं और मनुष्यों की विशेषताओं की तुलना करते हैं। अंत में, वे बताते हैं कि मनुष्य का शरीर मोक्ष का साधन है और इसे पाकर साधना की जा सकती है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि मनुष्य को अपने जीवन का सही उपयोग करना चाहिए।

A retenir

  • 🐴 पशुओं की शिकायतें मनुष्यों के अत्याचारों के खिलाफ हैं।
  • 🗣️ मनुष्य की बोलने की क्षमता एक विशेषता है।
  • 🏠 मनुष्य अच्छे मकान बनाते हैं, लेकिन पशु भी अपने घर बनाते हैं।
  • 💪 मनुष्य की ताकत की तुलना शेर से की जाती है।
  • 🦚 मनुष्य की सुंदरता की तुलना कोयल से की जाती है।
  • 🧘‍♂️ मनुष्य का शरीर मोक्ष का साधन है।
  • 🔑 मोक्ष का दरवाजा मनुष्य के शरीर में है।
  • ⚖️ जीवन में संघ दोष और स्वभावज दोष होते हैं।
  • 🌱 मनुष्य को अपने जीवन का सही उपयोग करना चाहिए।
  • 🙏 भक्ति और साधना का महत्व।

Chronologie

  • 00:00:00 - 00:05:00

    ब्रह्मा जी के दरबार में एक पशु ने मनुष्यों के अत्याचारों की शिकायत की। उसने बताया कि मनुष्य ने पशुओं के साथ अन्याय किया है, जैसे घोड़े की पीठ पर बैठना और भेड़ के ऊन का उपयोग करना। पशुओं ने यह भी कहा कि मनुष्य की विशेषताएं पशुओं से उधार ली गई हैं, जैसे बोलने की क्षमता और कपड़े पहनना।

  • 00:05:00 - 00:10:00

    ब्रह्मा जी ने पशुओं की शिकायतों को सुना और मनुष्यों की विशेषताओं पर चर्चा की। मनुष्य ने अपनी चालाकी और बुद्धिमानी का दावा किया, लेकिन पशुओं ने यह साबित किया कि वे मनुष्य से बेहतर हैं। अंत में, ब्रह्मा जी ने कहा कि मनुष्य का शरीर एक विशेष अवसर है, जो साधना और मोक्ष की ओर ले जाता है।

  • 00:10:00 - 00:18:49

    मनुष्य शरीर को मोक्ष का दरवाजा बताया गया, जो साधना और भक्ति का माध्यम है। महात्मा जी ने एक दृष्टांत दिया कि कैसे एक अंधे व्यक्ति को दरवाजा खोजने में मदद की जा सकती है। उन्होंने बताया कि मनुष्य को अपनी वासना पर काबू पाकर मोक्ष की ओर बढ़ना चाहिए। अंत में, यह बताया गया कि मनुष्य का शरीर एक सीढ़ी की तरह है, जो परलोक की ओर ले जाती है।

Carte mentale

Vidéo Q&R

  • क्यों पशु ब्रह्मा जी के पास शिकायत करने गए?

    पशु मनुष्यों द्वारा किए गए अत्याचारों के खिलाफ अपनी शिकायत लेकर गए।

  • मनुष्य की विशेषता क्या है?

    मनुष्य बोलने की क्षमता, कपड़े पहनने की कला और मकान बनाने की क्षमता रखता है।

  • ब्रह्मा जी ने मनुष्यों को क्यों महत्व दिया?

    क्योंकि मनुष्य का शरीर साधना और मोक्ष का साधन है।

  • कहानी में मोक्ष का दरवाजा क्या है?

    मनुष्य का शरीर मोक्ष का दरवाजा है।

  • किस प्रकार के दोष जीवन में आते हैं?

    जीवन में संघ दोष और स्वभावज दोष आते हैं।

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    एक
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    बार ब्रह्मा जी के दरबार
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    में एक पशु ने जाकर शिकायत
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    की ब्रह्मा जी आप जब देखो तो मनुष्य को ही
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    महत्व देते रहते हो क्या विशेषता है इस
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    मनुष्य
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    ने और इस मनुष्य ने हम पशुओं के साथ जितने
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    अत्याचार किए किसी ने नहीं
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    किए
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    कैसे उन्होंने कहा कि देखो
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    तो आपने घोड़े की पीठ पर एक आदमी की सीट
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    बनाई। ब्रह्मा जी की बनाई हुई है। एक आदमी
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    घोड़े पर बैठे और जाए और इस बेईमान आदमी
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    ने ताना
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    बनाया। बनाया कि नहीं बताओ। 12
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    बिठाए छ सात तो यही बिठा लिए। पांच छ बजे
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    उनसे कहा पुलिस चौकी को उधर चलो उधर
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    बिठाएंगे।
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    एक आदमी की सीट और इतने बिठाए
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    दूसरा भेड़ के शरीर पर जो बाल उगाए गए वो
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    इसलिए ताकि ये सर्दी से बचे सुरक्षित रहे
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    और आदमी ने भेड़ को मोड़
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    दिया अपने स्वेटर मफलर कोट बनाए बेचारी
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    भेड़ सर्दी भर ठिठुरती
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    रही ये अत्याचार
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    और देखो बकरी बोली
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    बहन तेरे तो बाल ही मूढे ये आदमी मुझको ही
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    मूड के खा
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    गया क्या हो गया है हम लोगों को जरा
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    मांसाहारी पशु कभी घास नहीं खा सकता उसके
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    दांतों की बनावट शेर कितने दिन का भूखा हो
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    घास नहीं खा सकता और घास खाने वाला पशु
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    कभी मांस नहीं खा सकता उसके उसके दांतों
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    की बनावट उस तरह एक आदमी ऐसा है चाहे जो
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    खिला घास मांस
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    चाहे तब ब्रह्मा जी से ये शिकायत की गई
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    इसके बाद भी आप कहते बड़े भाग मानुष तन
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    पावा हाथी का तन क्यों
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    नहीं और कोई शरीर क्यों नहीं ब्रह्मा जी
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    ने कहा कि देखो ऐसा है तुम लोगों की
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    शिकायत तो जायज है पर हम आदमी को भी बुला
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    लेते है तो हम मनुष्यों की ओर से एक
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    प्रतिनिधि गया ब्रह्मा जी के यहां और उधर
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    सब पशु पक्षी तो ब्रह्मा जी ने
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    कहा के भाई आदमी आ तो गया है इसकी विशेषता
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    इसलिए है कि और लोग ट भ चे भ बोलते हैं
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    लेकिन आदमी बोलता है तो बोली बड़ी अच्छी
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    है स्वर बड़ा अच्छा है कोयल सामने आ गई जब
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    कोई आदमी सुर में बोलता है तो कहता है आ
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    क्या कोयल की तरह रहा
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    है? तो ये विशेषता पशुओं से उधार ली कि
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    नहीं बताओ। सुंदर बोले तो कोयल की तरह ये
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    बात तुम्हारी नहीं चलेगी। तो मनुष्य बोला
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    कि हम कपड़े अच्छे पहनते हैं। तो हिरण ने
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    कहा तुम्हारे कपड़ों का रंग उड़ जाता है।
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    हमारे कपड़े देखो, शरीर का चर्म
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    [प्रशंसा]
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    देखो। इसको उतार-उत कर तुम अपने कपड़े
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    बनाते हो। अच्छा ये भी बात नहीं चलेगी,
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    नहीं चलेगी। हम मकान अच्छे बनाते हैं तो
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    बया पक्षी बोला कि तुमसे बढ़िया मकान तो
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    हम बना लेते
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    हैं। तो मनुष्य ने कहा कि हम
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    बलवान तो शेर गाड़ मार के सामने आया तो
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    हमसे ज्यादा बलवान नहीं हो सकते। मनुष्यों
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    में जब कोई बलवान होता है तो कहते क्या
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    शेर की तरह चला आ रहा है शेर की तरह कभी
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    किसी शेर से किसी ने कहा क्या आदमी की तरह
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    चला आ रहा
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    है आप सोचो तो ताकत भी शेर की तरह बोली
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    कोयल की
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    तरह अच्छा जितनी विशेषताएं सब पशुओं की
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    नाक तोते की
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    तरह आंख हिरण की तरह
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    सब
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    उदार हमें लगता है इस आदमी में आदमी का है
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    क्या? तो आदमी परेशान हो गया। कहने लगा
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    मैं सबसे ज्यादा चालाक हूं। तो कौवा सामने
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    आ गया कि हमसे ज्यादा चालाक नहीं हो सकते।
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    तो आदमी हैरान हो गया। आदमी ने कहा हम
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    सबसे ज्यादा मूर्ख हैं। अब ठीक है। तो गधा
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    सामने आ गया कि हमसे ज्यादा मूर्ख नहीं हो
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    सकते। जब कोई मूर्ख होता है तो कह दे आदमी
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    नहीं गधा है। चालाकी हो तो कह दे आदमी
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    नहीं कौवा है। सारही तो कह दे आदमी नहीं
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    हंस है। बलवान हो तो शेर है। सुंदर बोले
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    तो कोयल की तरह नाक तोते की तरह नेत्र
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    हिरण की
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    तरह। ब्रह्मा जी ने कहा इनमें तुम्हारी
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    पशुओं से कोई जीत
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    नहीं। फिर ब्रह्मा जी यह क्यों कहा गया
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    बड़े भाग मान तन पावा। ब्रह्मा जी ने कहा
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    इसलिए
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    क्योंकि इसे जो शरीर मिला है साधन
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    धाम मोक्ष कर
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    द्वारा साधन
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    धाम मोक्ष करारा
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    [प्रशंसा]
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    भाई नई
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    परलोक समावारा
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    भाई नई
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    परलोक
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    समाई परलोक
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    साधन
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    धाम मोक्ष कर द्वारा साधन
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    धाम मोक्ष
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    पराई नई
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    परलोक संवारा
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    भाई नई
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    परलोक
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    सवारा परलोक संवारा परलोक संवारा
  • 00:05:58
    [प्रशंसा]
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    [संगीत]
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    यह मनुष्य
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    शरीर जो इसे मिला है यह इसके सचमुच
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    सौभाग्य का सूचक है क्योंकि ये साधन का
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    धाम
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    है इस शरीर को पाकर साधना की जा सकती है
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    आराधना की जा सकती है भजन किया जा सकता है
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    और मोक्ष का दरवाजा है
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    अच्छा मोक्ष कर द्वारा का अर्थ आप ऐसे
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    सोचे एक सूरदास नेत्रों से उसे बिचारे को
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    दिखाई नहीं
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    देता एक घेरे के बीच में फस
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    गया उसमें दरवाजा था सिर्फ एक चारों तरफ
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    बाउंड सुंदा
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    घूमे के दरवाजा मिल जाए चक्कर लगावे तो
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    दरवाजे से भी निकल जाए मिले ही से दरवाजा
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    एक महात्मा को दया लगी महात्मा ने कहा कि
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    भाई दरवाजा तो इसमें है पर तुम्हें दिखता
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    ही नहीं है तो क्या हम निकल नहीं सकते कोई
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    उपाय नहीं है
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    उपाय एक ही उपाय है
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    क्या तुम दीवाल पर हाथ लगाना शुरू
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    करो ऐसे देखते जाओ दीवाल पर हाथ लगा के
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    देखते जाओ जैसे ही दरवाजा आएगा तुम्हारे
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    हाथ आप ही बता देंगे कि दरवाजा आ गया पार
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    हो
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    जाना। ये ठीक है। अब महात्मा जी ने अंधे
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    को दीवार पकड़ा दिए। चलने लगे। महात्मा जी
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    भी चले गए और शाम को लौट कर आए तो सूरदास
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    उसी के भीतर निकल ही नहीं
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    पाए। बोला अरे महाराज इसमें दरवाजा नहीं
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    है। महात्मा बोले दरवाजा तो
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    है। तो पता नहीं लग रहा हमें तू हमारे
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    सामने चल कर दिखा। उसके साथ यह होता कि
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    दीवार पर तो हाथ लगा के चलता रहता चलता
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    रहता चलता जैसे ही दरवाजा आता उसे बड़ी
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    जोर की खुजली
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    लगती तो दोनों हाथ से अपने सिर खुजलाने
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    लगता चलता भी रहता तब तो दरवाजा निकल जाता
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    फिर दीवार पे हाथ
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    लगाया महात्मा ने कहा कि जब तुम्हें खुजली
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    लगती है वही दरवाजा
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    है या तो खुजलाना बंद कर दे या चलना बंद
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    कर दे चलना बंद हो नहीं सकता। खुजलाना बंद
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    करके निकल गया। वही एक अजी देखो ये दो
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    नीत्र है ज्ञान और ये कहानी ये कहती है और
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    इन दोनों नीति में
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    मोतियाबिंद ज्ञान की आंख में अहमता का
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    मोतियाबिंद और वैराग्य की आंख में ममता का
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    मोतियाबिंद मे नियरे हुए सूझत नहीं लानत
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    ऐसी जिंद तुलसी या संसार को भयो
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    मोतियाबिन अब हमें दिखाई नहीं
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    देता। तो महापुरुष कहते हैं कि तुम हाथ
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    लगाते जाओ, दरवाजा आएगा तुम्हारे हाथ बता
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    देंगे। तो ये जितने पशु पक्षियों की
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    योनिया है ये सब दीवार है। इनमें तो हम
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    हाथ लगाते आते हैं। लेकिन जैसे ही मोक्ष
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    का दरवाजा यह मनुष्य शरीर मिलता है। उसके
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    मिलते ही बड़े जोर की खुजली मचती है।
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    वासना की पूर्ति वासना पूरी हो जाए।
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    वासना इस वासना की पूर्ति में ये मोक्ष का
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    दरवाजा भी निकल जाता है। फिर दीवार हाथ
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    लगती है। या तो खुजलाना बंद कर दे या चलना
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    बंद कर
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    दे। मनुष्य शरीर मोक्ष का दरवाजा है। ये
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    सीढ़ी की तरह है। अच्छा देखो आपने नशे
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    नहीं सीढ़ी देखी होगी। सीढ़ी अगर दीवार के
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    किनारे लगा दो तो आदमी
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    ऊपर चढ़ जाता है। सीढ़ी अगर दीवार के किनारे
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    लगा दो तो आदमी ऊपर पत हो जाता है और सीढ़ी
  • 00:10:05
    कुएं में लगा दो तो नीचे उतर जाता है। ये
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    मनुष्य शरीर ऐसी ही सीढ़ी
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    है। पाई न परलोक सवारा।
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    इसको पाकर जिसने अपना परलोक नहीं बनाया सो
  • 00:10:27
    परत्र दुख
  • 00:10:29
    पाव सिर
  • 00:10:32
    धुन
  • 00:10:34
    धुन
  • 00:10:40
    पछताई कालहि करम
  • 00:10:46
    ईश्वरहि मिथ्या दोष
  • 00:10:50
    [प्रशंसा]
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    लगा ये भाई फिर दोष लगाएंगे काल को कर्म
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    को ईश्वर
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    को क्या बताएं हमारा तो प्रारब्ध ही ऐसा
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    था समय इतना
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    खराब और ईश्वर ने भी कोई सहायता नहीं
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    की काल ही कर्म ईश्वर मिथ्या दोष लगाए ये
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    तब लगाते हैं दोष जब भजन नहीं करते हरी
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    हरि भजले, हरि भजले, हरि भजने का मौका है।
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    अभी भजले, अभी भजले, अभी भजने का मौका
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    है। भगवान आगे बड़ी सुंदर बात कहते हैं। ये
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    जीव माया के द्वारा प्रेरित है।
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    सदा माया कर
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    फरा काल एक आदमी अपने रास्ते से चला जा
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    रहा था बगल में बगीचा था आम के बड़े सुंदर
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    वृक्ष लगे थे फल लगे
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    थे अब देखना उस आदमी ने फल
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    देखे मन हुआ कोई है नहीं चुपचाप फल तोड़
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    कर खा ले तो फल देखा किसने आंख ने अच्छा
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    आंख वृक्ष के पास चल चल कर जा नहीं सकते
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    तो वृक्ष के पास चल कर गया कौन पाव अच्छा
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    पाव फल तोड़ नहीं
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    सकते तो तोड़ा किसने हाथ ने अच्छा हाथ फल
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    तोड़ ले तो उसे स्वाद मिल नहीं सकता कि फल
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    खट्टा है की
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    मीठा चखा रसना ने और अद्भुत बात जिसने
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    देखा वो गया नहीं जो गया उसने फल तोड़ा
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    नहीं जिसने फल तोड़ा उसने चखा नहीं और
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    जिसने चखा रखा आश्चर्य उसने रखा
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    नहीं फल देखा आंख ने गए पांव फल तोड़ा हाथ
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    ने चखा रसना ने और रखा पेट
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    ने इतने में बगीचे का माली आया और उसने
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    चोरी से फल खाते हुए देखा पांव धीरे धीरे
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    आया और डंडा लिए हुए था और उसने दो चार
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    डंडे पीठ में जमा
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    दिए अब आप सोचो पीठ बिचारी पीठ ना लेने
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    में ना देने में आंख ने देखा पांव गए हाथ
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    ने तोड़ा रसना ने चखा पेट ने रखा पिटे पीट
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    और करे अपराध तो और पाव फल भोग अति
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    विचित्र भगवंत गति को जग जाने जो एक आदमी
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    कह रहा था राम स्वरूप ने चोरी की अखबार
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    में खबर राम स्वरूप ने चोरी की फल स्वरूप
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    पकड़े गए तो दूसरा आदमी अखबार की भाषा ना
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    समझकर बोला कि ये लोग भी कैसे विचित्र है
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    जब राम स्वरूप ने चोरी की तो फल स्वरूप को
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    क्यों पकड़ा | वो फल स्वरूप नाम समझ रहा
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    था किसी
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    तो इसी तरह कर्म की भाषा जब हमें समझ में
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    नहीं आती तो हम सोचते हैं कि ये इसे सजा
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    क्यों लेकिन एक महात्मा से जब किसी ने यह
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    प्रश्न किया महात्मा ने कहा तुम्हारे
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    प्रश्न में ही इसका उत्तर है पीठ में डंडे
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    की चोट लगी दर्द हुआ तो आदमी रोया आंसू
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    कहां से निकले आंख से और सबसे पहले फल
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    देखा किसने था आंख ने ही तो चाहे जितने
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    चक्कर से मिले फल उसी को मिलेगा जिसने
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    कर्म किया है। जो जस करे सो तस फल चाखा।
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    तो कर्म का प्रभाव जीव पर समय का काल का
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    प्रभाव जीव
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    पर जब स्वभाव देखो दो तरह से दोष आते हैं
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    जीवन में संघ
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    दोष और स्वभावज दोष गीता में कहा जित संघ
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    दोष संघ के दोष से
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    बचें अच्छा संघ का दोष सत्संग से दूर हो
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    जाएगा पर स्वभाव से जो दोष आया है मिट ना
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    मलिन स्वभाव
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    अभंग इसीलिए शंकर जी ने कभी रावण को नहीं
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    समझाया सबने समझाया पर गुरु जी ने नहीं
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    समझाया जानते थे इसके स्वभाव में ये दोष
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    है ये सत्संग से नहीं सुधरेगा तो ऐसे लोग
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    सुधर कैसे सकते हैं कबीरा यह मन मलिन है
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    धोए ना छूटे रंग के छूटे हरि नाम से के
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    संतन के
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    संग राम एक ताप्ती तारी नाम कोटि खल कुमति
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    सुधारी भगवन नाम से ही मिट सकता है और कोई
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    उपाय नहीं स्वभाव भगवन नाम के बिना नहीं
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    बदल सकता और रावण कभी नाम लेता नहीं शंकर
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    जी कहते इसने तो दीक्षा बेकार कर
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    [संगीत]
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    दी राम जी का नाम लेने की बात भी आए तो
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    कहे लुह तापत कर विलासा कहो तब के बात
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    बहोरी तपसियों का क्या हाल है छोटे तपस्वी
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    का क्या हाल है अंगद जी से कहता था तो
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    प्रभु नारी बिर बल हीना तुम्हारे स्वामी
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    तो वैसे ही बल ही है पर राम नाम नहीं लिया
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    इसने कभी नहीं लिया कई बार लोग कहते हैं
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    हम तो अपने स्वभाव से बहुत परेशान है और
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    स्वभाव के साथ गुण और ये गुण तीन है
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    सतोगुण रजोगुण
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    तमोगुण ये गुण है तो बहुत बढ़िया लेकिन सही
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    समय पे नहीं
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    आते मंदिर में गए अब दुकान याद आ गई कि वो
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    ग्राहक
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    जल्दी जल्दी चले यहां मन रजोगुण से भर गया
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    और दुकान में पहुंचे तो सतोगुण आ गया सब
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    ऐसे ही है एक दिन सब पड़ा रह जाएगा ले जाओ
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    भैया जिस भाव में जाना हो
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    [संगीत]
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    जैसे और कथा में आए तो भगवान की कृपा है
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    जागते रहे तो ठीक नहीं तो तमोगुण आ गया
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    हां करके अपना सो
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    गए तो ये गुण समय से नहीं आते मंदिर में
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    सतोगुण आना चाहिए तो रजोगुण आ जाता है।
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    दुकान में रजोगुण आना चाहिए तो सतोगुण आ
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    जाता है। कथा में सतोगुण आना चाहिए तमोगुण
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    आ जाता
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    है। अच्छा उन गुणों से हम सब परेशान है कि
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    नहीं? काल कर्म स्वभाव गुण घेरा। अच्छा
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    मजे की बात तो ये है कि कथा में कोई सो
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    जाए तो पाप नहीं है। प्रकृति अब आ गई नींद
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    तो आ गई क्या करे? लेकिन विडमना ये है कि
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    कोई आदमी ये स्वीकार नहीं करता कि हम सो
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    रहे हैं। एक बार एक सत्संग में एक सज्जन
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    सामने बैठे हो बार-बार ऐसे खड़े हैं तो
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    महात्मा जी ने कहा क्यों बोले नहीं सो रहे
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    हो? तो आप इतना
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    ही फिर आंख बंद करो सो रहे हो नहीं। तो
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    आंख बंद काहे करते हो? हम बड़े ध्यान से
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    सुन रहे
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    हैं। और लोग ध्यान से सुन ही नहीं रहे।
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    यही ध्यान से सुन रहे हैं। पर चौथी बार
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    जैसे ही उनकी आंख बंद हुई तो महात्मा जी
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    ने कहा कि भगत जी सो रहे हो
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    ना। जैसे ही आंख बंद की तो महात्मा जी
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    बोले क्यों भगत जी जिंदा हो? तो क्यों?
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    बोले नहीं। तो ये नहीं सिद्ध कर दिया सो
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    तो रहे हैं। देखो
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    आदमी कितना ही कोशिश करे लेकिन पूरी तरह
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    स्वतंत्र नहीं। माया उसे नचाती है काल
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    कर्म स्वभाव गुणों के द्वारा।
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    जगत में किन्हें तारते राम अधमों ने ही रख
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    दिया अधम उधारण
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    नाम अपने भगवान से सुंदरता देखि तो भगवान
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    की बातचीत
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    झगड़ा भगवान से और मैं तो कहता हूं लोभ से
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    भी एक सज्जन
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    थे बड़े लोभी
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    महाराज इतने लोभी
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    कि कभी कुछ खर्च ना हो जाए।
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    लेकिन
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    उन्होंने तो उन्होंने एक संत से कहा
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