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[संगीत]
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नमस्कार स्वागत है आपका संसद टीवी के इस
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खास कार्यक्रम स्पेशल रिपोर्ट में मैं हूं
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मोहम्मद फाते टीपू ऐसे कई लोग हैं
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जिन्होंने इतिहास में अमिट छाप छोड़ी है
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लेकिन ऐसे बहुत कम लोग हैं जिन्होंने
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इतिहास बनाया है उनमें से एक है युग पुरुष
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बाबा साहब भीमराव अंबेडकर डॉकर भीमराव
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अंबेडकर को भारतीय संविधान के निर्माता के
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तौर पर याद किया जाता है या फिर भेदभाव
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वाली जाति व्यवस्था के प्रखर आलोचक और
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सामाजिक गैर बराबरी के खिलाफ आवाज उठाने
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वाले योद्धा के तौर पर भी याद किया जाता
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है इन दोनों ही रूपों में डॉकर अंबेडकर की
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बेमिसाल भूमिका को कम करके नहीं आका जा
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सकता लेकिन डॉक्टर अंबेडकर ने एक दिग्गज
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अर्थशास्त्री के तौर पर भी देश और दुनिया
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के पैमाने पर बेहद अहम योगदान दिया है
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देखिए संसद टीवी पर यह खास पे
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[संगीत]
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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति और
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स्वीकार्यता पाने वाले देश के पहले
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अर्थशास्त्री थे डॉक्टर अंबेडकर जी हां
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डॉक्टर अंबेडकर ने अपने करियर की शुरुआत
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बतौर अर्थशास्त्री की थी मशहूर पुस्तक
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इनसाइड एशिया के लेखक जॉन गुथर लिखते हैं
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जब 1938 में मुंबई में डॉक्टर अंबेडकर से
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उनके आवाज पर मेरी मुलाकात हुई तब उनके
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पास 8000 किताबें
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थी और उनकी मृत्यु तक यह संख्या पढ़कर
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35000 हो चुकी थी किताबों के प्रति डॉक्टर
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अंबेडकर का जुनून करिश्माई था डॉक्टर
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अंबेडकर के लिए रिलैक्सेशन का मतलब था एक
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विषय को खत्म कर दूसरे विषय की किताब
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पढ़ना
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एक्चुअली बाबा साहब का सबसे बड़ा एक शौक
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था किताब में और उनकी जो पर्सनल लाइब्रेरी
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थे नॉर्मली वहां पर किसी को एंट्री नहीं
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मिलती थी उनकी इजाजत से ही कोई उसमें जा
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सकता था और उसकी उनकी इजाजत से ही कोई
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किताब लेकर वहां पढ़ सकता था वह किताब
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दूसरों को ऐसे देते नहीं थे क्योंकि उनके
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लिए वह सबसे बेश कीमती खजाना था और अगर हम
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देखें कि उनका यह जो शौक था किताबों का
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उसके बारे में जो कुछ राइटर्स हुए हैं जि
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ने उनके जीवन के बारे में लिखा है
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उन्होंने एक जमा मस्जिद के एरिया का भी
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बयान किया हुआ है अगर मैं गलत नहीं बोल
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रहा तो शायद सोनलाल शास्त्री जी ने अपनी
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किसी किताब में लिखा है कि वह किताबों
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लेने के लिए जमा मस्जिद एरिया में गए तो
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तब वहां खबर फैल गई कि बाबा साहब डॉक्टर
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अंबेडकर वहां किताबों को लेने के लिए आए
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हुए हैं तो एक बहुत बड़ी भीड़ जमा हो गई
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थी और जब भी वो घर पर वापस आते थे तो उनके
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हाथ में हमेशा कुछ किताबें और उसका बंडल
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बना होता था और जो उनका लाइफ स्टाइल था
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उसमें भी वो देर आधि रात तक किताबें ही
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पढ़ते थे दुनिया जब मार्टिन लूथर किंग की
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चर्चा करें तो बाबा साहब भीमराव अंबेडकर
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की चर्चा करने पर मजबूर हो जाए सामाजिक
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विकारों से ऊपर उठकर बाबा साहब कोलंबिया
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और लंदन विश्वविद्यालयों से शिक्षा पाने
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वाले पहले भारतीय बनने के साथ-साथ एक
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ओजस्वी लेखक और यशस्वी वक्ता थे उनका
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मानना था एक आदर्श समाज की रचना के लिए हर
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वर्ग के लोगों को सामाजिक न्याय के
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साथ-साथ आर्थिक न्याय भी मिलना जरूरी
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है डॉ अंबेडकर ने 1915 में अमेरिका की
00:03:40
प्रतिष्ठित कोलंबिया यूनिवर्सिटी से
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इकोनॉमिक्स में एमए की डिग्री हासिल की थी
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इसी विश्वविद्यालय से 1917 में
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अर्थशास्त्र में पीएचडी करने वाले वह पहले
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भारतीय
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बने इसके कुछ बरस बाद इन्होंने लंदन स्कूल
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ऑफ इकोनॉमिक्स से भी अर्थशास्त्र में
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मास्टर्स और डॉक्टर ऑफ साइंस की डिग्रियां
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हासिल की अर्थशास्त्र यानी इकोनॉमिक्स
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जैसे जटिल विषय पर इनकी विश्लेषण क्षमता
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अद्वितीय मानी जाती
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है डॉक्टर अंबेडकर ने 1915 में एमए की
00:04:12
डिग्री के लिए कोलंबिया यूनिवर्सिटी में
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42 पेज का एक टेशन सबमिट किया
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था जानकारों के मुताबिक बाबा साहेब के
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जीवन और विचारों पर तीन किताबों का प्रभाव
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साफ झलकता है लाइफ ऑफ टॉलस्टॉय
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[संगीत]
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ट युगों की लेस मिरेबल
00:04:32
और थॉमस हार्डी की फार फ्रॉम द मैनिंग
00:04:37
क्राउड बाबा साहेब
00:04:41
अंबेडकर
00:04:43
के बारे में जब हम बात करते हैं तो सबसे
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पहले संविधान के निर्माता के रूप में उनका
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नाम आता है और यह आम जानकारी यही है कि वो
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ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन थे और
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उन्होंने कास्ट इन इक्वालिटीज को लेकर
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बहुत सार
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मूवमेंट कि बहुत सारे संगठन बनाए जो
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अनटचेबिलिटी थी जो दलितों के मुद्दे थे
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लेकिन जब हम उनकी जीवनी पढ़े और उनके बारे
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में हम अगर ठीक से गहराई से जांच करें तो
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पता चलता है उनकी शुरुआत ही एक
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अर्थशास्त्री के रूप में उनके जीवन की
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शुरुआत हुई थी इनफैक्ट भारत के पहले ऐसे
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इकोनॉमिक्स के वह ग्रेजुएट थे जिन्होंने
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और पीएचडी थे जिन्होंने बाहर से पीएचडी की
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थी और तब अर्थशास्त्री उसके बाद वोह बने
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सिर्फ एक पीएचडी नहीं उन्होंने दो पीएचडी
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की थी एक अमेरिका से कोलंबिया यूनिवर्सिटी
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से और एक लंडन स्कूल ऑफ
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इकोनॉमिक्स कोलंबिया यूनिवर्सिटी में लिखे
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रिसर्च पेपर में इन्होंने भारत में ईस्ट
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इंडिया कंपनी की लूट का खुलासा किया था
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एडमिनिस्ट्रेशन एंड फाइनेंस ऑफ द ईस्ट
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इंडिया कंपनी के नाम से लिखे गए रिसर्च
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पेपर में शिवा डॉक्टर अंबेडकर ने ब्रिटिश
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राज की आर्थिक नीतियों की जोरदार आलोचना
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करते हुए तथ्यों और आंकड़ों की मदद से
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साबित किया था कि उसकी नीतियों ने भारतीय
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जनता को बर्बाद करने का काम
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किया उन्होंने यह भी बताया कि अंग्रेजी
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राज ट्रिब्यूट और ट्रांसफर के नाम पर किस
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तरह भारतीय संपदा की लूट करता रहा है
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विद्वानों के मुताबिक यह रिसर्च पेपर युवा
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डॉक्टर अंबेडकर की बेजोड़ तार्किक क्षमता
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का जीवंत प्रमाण है अगर हम सबसे पहले वाले
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जो 1915 और 16 वाले जो उनके रिसर्च उसमें
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उन्होंने साबित किया जो
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ईस्ट इंडिया कंपनी का इकोनॉमिक सिस्टम और
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एडमिनिस्ट्रेशन है इसकी नेचर क्या है
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उसमें उन्होंने हिस्टोरिकल एनालिसिस किया
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था जिससे यह पता लगा कि यह जो वेल्थ की
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ड्रेन हो रही है यह पूरी कॉलोनियलिज्म के
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एक बहुत बड़ी पॉलिसी के अंडर हो रही है और
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इसी की वजह से जो इंडिया है वह यहां की
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बर्बादी और गरीबी का यह एडमिनिस्ट्रेशन एक
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वाहक बन गया यह बहुत बड़ा कमेंट था उस
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वक्त जब अंग्रेजों का राज था और उनके राज
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में यह बात कहनी एक बहुत बड़ा मैने और
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बहुत बड़ा दिल और बहुत बड़ा जिगरा रखने की
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बात थी उसके अलावा उन्होंने यह भी देखा कि
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जो इंडिया उस वक्त एक उनकी कॉलोनी थी वो
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कॉलोनी में भी डिस्क्रिमिनेशन था जो
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इनके इंटरनल टैक्सेस एंड एक्सटर्नल
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टैक्सेस लगते थे उससे इंडिया को विदन
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कॉलोनियल सिस्टम में भी डिस्क्रिमिनेशन
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फेस करना पड़
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र डॉक्टर अंबेडकर का यह काम इनकी गहरी
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देशभक्ति की मिसाल है कई इतिहासकार इनके
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इस रिसर्च पेपर की तुलना दादा भाई नौरोजी
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की किताब पॉवर्टी एंड अन ब्रिटिश रूल इन
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इंडिया से भी करते हैं दोनों ही स्कॉलर
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बाबा साहब और दादा भाई नौरोजी दोनों की जो
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स्कॉलरशिप थी वह एक दूसरे की कंटक्ट नहीं
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थी यह कंप्लीमेंट्री है क्योंकि जो
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हिस्टोरिकल फैक्ट्स है सेम है बाबा साहब
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की जो रिसर्च थी वह हिस्टोरिकल फैक्ट्स पर
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बेस्ड थी ऐसे ही दादा भाई नारो जीी की भी
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फैक्ट अगर एक ही मुद्दे पर के दो स्कॉलर
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सेम कंक्लूजन में पहुंचते हैं तो इट मींस
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कि जो वो कह रहे हैं वह बिल्कुल सच है और
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उसमें कोई भी आपसी कंट्रक्शन नहीं है तो
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इसलिए यह अलग बात है कि किसने पहले किया
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या किसने बाद में किया बट फैक्ट ऑफ द मैटर
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इज दैट कि उन्होंने यह साबित किया दादा
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भाई नौरोजी ने और डॉक्टर अंबेडकर ने अपनी
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अलग-अलग रिसर्च में जो उन्होंने बाबा साहब
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ने न्यूयॉर्क में बैठ के की थी कि जो
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ब्रिटिश एडमिनिस्ट्रेशन है हां पर वो
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इंडिया की गरीबी और इंडिया की जो बर्बादी
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है उसका वाहक बन चुका है डॉक्टर अंबेडकर
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की कोलंबिया यूनिवर्सिटी की थीसिस 1925
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में एक किताब की शक्ल में सामने आई
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प्रोविंशियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया के
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नाम से छपी इस पुस्तक को पब्लिक फाइनेंस
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के क्षेत्र में देश दुनिया में काफी
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ख्याति मिली इस किताब में इन्होंने
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1833 से 1921 के बीच ब्रिटिश इंडिया में
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केंद्र और राज्य सरकारों के वित्तीय
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संबंधों की शानदार समीक्षा की थी कोलंबिया
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यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल इकॉनमी के
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प्रोफेसर और जानेमाने विद्वान एडविन
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रॉबर्ट सेलिंग मैन ने इनकी थीसिस की तारीफ
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करते हुए कहा था उन्होंने इस विषय पर इससे
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ज्यादा गहरा और व्यापक अध्ययन दुनिया में
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कहीं और नहीं देखा है फेडरल फाइनेंस के
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क्षेत्र में इस पुस्तक का अहम योगदान माना
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जाता है जो प्रोफेसर सेलिंग मैन थे ये
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इनके मेंटर थे और इनके ये पीएचडी थीसिस जो
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था उसके गाइड भी से सुपरवाइजर भी थे तो तो
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हमें यह देखना पड़ेगा कि जो प्रोफेसर
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सेलिंग मैन थे वो क्या हस्ती थी उनकी क्या
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पर्सनालिटी थी वो उस वक्त के टैक्सेशन एंड
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ग्लोबल पब्लिक फाइनेंस के बहुत बड़े एक
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वर्ल्ड लेवल के एक्सपर्ट थे और उनका जो
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टैक्सेशन का जो प्रिंसिपल्स है और
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टैक्सेशन की जो उन्होंने एक्सप्लेनेशन दी
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हैं थ्योरी दी हैं उसका बहुत बड़ा रोल रहा
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था वर्ल्ड वॉर टू के खत्म होने के बाद
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टैक्स रिफॉर्म में डिफरेंट कंट्रीज में
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पर्टिकुलर अमेरिका में
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भी फिलहाल आजाद भारत में केंद्र और
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राज्यों के आर्थिक संबंधों का खाका तैयार
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करने के लिहाज से भी डॉक्टर अंबेडकर की इस
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पहल को बेहद प्रासंगिक माना जाता है कई
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विद्वान वित्त आयोग के गठन के बीच भी
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डॉक्टर अंबेडकर की इसी थीसिस में निहित
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देखते हैं जो उनके फाइनेंशियल एनालिसिस थे
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इंडिया की जो मॉनेटरी पॉलिसी थी और जो
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स्टेबिलिटी ऑफ रुपी की बात की थी उन्होंने
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यह जो उनका रिसर्च थीस था प्रॉब्लम ऑफ
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रुपी और यह एवोल्यूशन ऑफ प्रोविंशियल
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फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया यह जो फाइनेंस
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कमीशन की जो बात है इसका रूट भी इसी
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रिसर्च पेपर या 1925 की इस बुक में ही है
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क्योंकि टाइम टू टाइम यह कांस्टिट्यूशन
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होता है अंडर दी प्रोविजन ऑफ द इंडियन
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कांस्टिट्यूशन
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कि स्टेट और सेंटर में जो फिजिकल
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रिसोर्सेस हैं उसकी प्रोपोर्शन किस तरीके
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डिस्ट्रीब्यूशन हो तो यह आज भी उतना ही
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प्रासंगिक है जब उन्होंने आईडिया दिया था
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आज से लगभग लगभग 100 साल
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पहले 1918 में बाबा साहेब ने खेती और
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फार्म होल्डिंग्स के मुद्दे पर एक अहम लेख
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लिखा था जो इंडियन इकोनॉमिक सोसाइटी के
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जर्नल में प्रकाशित हुआ इस लेख में
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इन्होंने भारत में कृषि क्षेत्र में पसरी
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छोटी जत से पनपी समस्या पर रोशनी डालते
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हुए कहा था कि कृषि भूमि पर आबादी की
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निर्भरता घटाने का उपाय औद्योगिकीकरण ही
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हो सकता है खास बात यह है कि डॉक्टर
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अंबेडकर ने इस लेख में छिपी हुई बेरोजगारी
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यानी डिसगाइज अनइंप्लॉयमेंट की समस्या की
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तरफ तब ध्यान खींचा था जब यह अवधारणा
00:11:47
अर्थशास्त्र की दुनिया में चर्चित भी नहीं
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हुई थी इतना ही नहीं इन्होंने दिग्गज
00:11:52
अर्थशास्त्री आर्थर लुईस से करीब तीन दशक
00:11:55
पहले इस लेख में अर्थव्यवस्था के टू
00:11:58
सेक्टर मॉडल का का खींचा था अब आगे देखि
00:12:01
तो उन्होंने कृषि से
00:12:03
रिलेटेड आर्टिकल लिखा था कि कृषि की
00:12:06
समस्याएं भारत में कैसी-कैसी थी बहुत पहले
00:12:10
उस समय की बात है जब कृषि पर लोग ध्यान भी
00:12:13
नहीं दे रहे थे और कृषि एक बहुत ही
00:12:15
नेगलेक्टेड फीड था हम जानते हैं भारत कृषि
00:12:18
प्रधान देश है लेकिन किस तरह से विखंडित
00:12:22
लैंड है लैंड का प्रॉपर यूटिलाइजेशन नहीं
00:12:25
हो रहा था और वह सारी समस्याएं जो कृ से
00:12:29
रिलेटेड थी कैसे कृषि और शिक्षा और
00:12:33
औद्योगीकरण एक साथ जाना चाहिए यह सब बातें
00:12:36
उन्होंने बहुत पहले मतलब एक तरह का विजनरी
00:12:38
उनका अप्रोच जो था वो था जो बाद में भी
00:12:41
काम आया तो स्वतंत्रता के बाद मैं तो
00:12:43
कहूंगी कि उनकी जो यह जितनी एक
00:12:46
अर्थशास्त्री के रूप में जो उनका
00:12:49
कंट्रीब्यूशन था वह स्वतंत्रता के बाद
00:12:51
बहुत लागू हुआ और बहुत ज्यादा उसका काम
00:12:54
आया जो कम ही लोगों को पता है मजबूत
00:12:57
आर्थिक नीतियों में डॉक्टर अंबेडकर के
00:12:59
आधारभूत योगदान की वजह से भारत आजादी के
00:13:02
बाद आर्थिक विकास में बड़ी प्रगति कर सका
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चाहे रिजर्व बैंक के दिशा निर्देश हो या
00:13:08
फिर अर्थव्यवस्था के किसी पहलू को
00:13:10
नियंत्रित करने वाले सिद्धांत बाबा साहब
00:13:13
ने भारत को जो भी सर्वश्रेष्ट था वह सब
00:13:16
कुछ
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दिया बतौर अर्थशास्त्री डॉक्टर अंबेडकर की
00:13:20
सबसे चर्चित किताब है द प्रॉब्लम ऑफ द
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रूपी इट्स ओरिजिन एंड इट्स सलूशन 1923 में
00:13:28
प्रकाशित हुई इस किताब में अंबेडकर ने जिस
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शानदार तरीके से अर्थशास्त्र के बड़े
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पुरोधा जॉन मैनर्ड किंस के विचारों की
00:13:36
आलोचना पेश की वह इकोनॉमिक पॉलिसी और
00:13:39
मौद्रिक अर्थशास्त्र पर उनकी मौलिक
00:13:41
दूरदृष्टि का प्रमाण
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है किंस ने डॉलर की वकालत करते हुए गोल्ड
00:13:48
एक्सचेंज स्टैंडर्ड का विरोध किया था जबकि
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डॉक्टर अंबेडकर ने अपनी किताब में गोल्ड
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स्टैंडर्ड की जबरदस्त पैरवी करते हुए उसे
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कीमतों की स्थिरता और गरीबों के हित बताया
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था इस किताब में यह जो प्रॉब्लम ऑफ रुपी
00:14:04
इसमें उन्होंने एक बहुत लंबा चौड़ा
00:14:05
हिस्टोरिकल एनालिसिस किया था ब्रिटिश टाइम
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का सन 1800 से लेकर 1893 तक का जो मॉनेटरी
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पॉलिसी का था और उसमें सबसे बड़ी समस्या
00:14:16
थी स्टेबिलिटी ऑफ रुपी उसमें उन्होंने बात
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की थी कि जो गोल्ड स्टैंडर्ड एंड गोल्ड
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एक्सचेंज स्टैंडर्ड उनका मानना था कि ये
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रुपी की जो वैल्यू है व स्टेबलाइज नहीं हो
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सकती जब तक उसकी
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जो जनरल परचेसिंग पावर है उसको हम
00:14:33
स्टेबलाइज नहीं कर पाते तो उसमें उन्होंने
00:14:35
कहा था
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कि एक्चुअली उन्होंने इसी बात के साथ
00:14:40
जोड़ा था एक राइडर के तौर पर कि रुपी शुड
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नॉट बी इनकन्वर्टिबल एंड इट शुड हैव
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लिमिटेड पावर ऑफ इशू मतलब कहने का कि
00:14:51
गवर्नमेंट किसी भी कीमत पर ज्यादा नोट ना
00:14:54
छपे द प्रॉब्लम ऑफ द रूपी इट्स ओरिजिन एंड
00:14:57
इट्स सलूशन किताब में में अंबेडकर ने ना
00:15:00
सिर्फ यह समझाया है कि सन 1800 से 1920 के
00:15:04
दरमियान भारतीय करेंसी को किन समस्याओं से
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जूझना पड़ा बल्कि इसमें उन्होंने भारत के
00:15:09
लिए एक उचित करेंसी सिस्टम का खाका भी पेश
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किया था इन्होंने 1925 में रॉयल कमीशन ऑन
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इंडियन करेंसी एंड फाइनेंस के सामने भी
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अपने विचारों को रखा था अंग्रेज सरकार ने
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डॉ अंबेडकर के आर्थिक सुझावों पर भले ही
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अमल नहीं किया लेकिन जानकारों के मुताबिक
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आजाद भारत में इनके इन विचारों का रिजर्व
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बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना में बड़ा
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योगदान
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रहा प्रोविंशियल फाइनेंस इन इंडिया इन
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ब्रिटिश इंडिया यह किताब में भी उन्होंने
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बहुत सारे आर्थिक पहलुओं पर प्रकाश डाला
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जिसमें कि राज्यों और केंद्र के बीच में
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मतलब अंग्रेजों की जो सेंट्रल गवर्नमेंट
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थी और राज्यों प्रिंसली स्टेट्स या जो
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राज्य थे उनके बीच में क्या संबंधित थे और
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किस तरह
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से गलत तरह की पॉलिसीज चल रही थी यह भी
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इस वाले आयाम का बहुत इंपॉर्टेंट
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कंट्रीब्यूशन है क्योंकि इस समय 1925 में
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जहां तक मुझे याद है एक फाइनेंस रॉयल
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फाइनेंस कमीशन भी एस्टेब्लिश किया गया था
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जिसमें इन्होंने अपने अपना वक्तव्य दिया
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अपने तर्क दिए माना नहीं गया नेचुरली
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अंग्रेज उस समय सब मानते नहीं थे लेकिन
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यही उनकी जो पॉलिसी थी उस समय जो उन्होंने
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बताई थी य हमारे लिए काम आई आफ्टर
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इंडिपेंडेंस और
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उसके तहत रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को
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स्थापित करने में भी बहुत बड़ा उससे उस
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पॉलिसी जो बनी उसका योगदान था डॉक्टर
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अंबेडकर ने आजादी के बाद सरकार का हिस्सा
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बनकर भी कई अहम काम किए थे जिनसे इनकी
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गहरी आर्थिक सूझबूझ का लाभ देश को मिला
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श्रम कानूनों से लेकर रिवर वैली
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प्रोजेक्ट्स और देश के तमाम हिस्सों ततक
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बिजली पहुंचाने के लिए जरूरी बुनियादी
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ढांचे के विकास जैसे काम डॉक्टर अंबेडकर
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के मार्गदर्शन में ही शुरू हुए थे यहां तक
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कि इलेक्ट्रिफिकेशन है ना यह सब गरीबी
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उन्मूलन इलेक्ट्रिफिकेशन रिवर वैली
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प्रोजेक्ट्स यह सारे
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उनके बीइंग अ विजनरी उन्होंने ऑलरेडी
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एस्टेब्लिश कर दिए थे और बताए थे तो बने
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तो इंडिपेंडेंस के बाद तो बने लॉ मिनिस्टर
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लेकिन विभिन्न संगठनों में और विभिन्न
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कमीशंस में उनका बहुत बड़ा इनपुट था जिस
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जो जो उस समय उनकी अर्थशास्त्री के रूप
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में इमेज पहले नहीं बनी वह बाद में हम
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देखते हैं जिसको आज हमें हाईलाइट कर की
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बहुत जरूरत
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है डॉक्टर अंबेडकर की आर्थिक दूरदृष्टि का
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अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि
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एमएस स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों से
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कहीं पहले इन्होंने सुझाव दिया था कि कृषि
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उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी
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लागत से कम से कम 50 फीसद ज्यादा होना
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चाहिए कृषि क्षेत्र के विकास में
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वैज्ञानिक उपलब्धियों के साथ-साथ लैंड
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रिफॉर्म्स की अहमियत पर भी बाबा साहेब का
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काफी जोर था
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देश में सेंट्रल वाटर कमीशन और सेंट्रल
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इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी जैसी अहम संस्थाओं
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की शुरुआत भी इन्हीं के नेतृत्व में हुई
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थी देश में बिजली क्षेत्र के विकास का
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खाका 1940 के दशक में उस वक्त तैयार किया
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गया था जब डॉ अंबेडकर पॉलिसी कमिटी ऑन
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पब्लिक वर्क्स एंड इलेक्ट्रिक पावर के
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चेयरमैन हुआ करते
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थे इनका मानना था कि देश के औद्योगिक
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विकास के लिए तमाम इलाकों में पर्याप्त और
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सस्ती बिजली मुहैया कराना जरूरी है और
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इसके लिए एक सेंट्रलाइज सिस्टम होना
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चाहिए जो इंडिया का इंडस्ट्रियल स्ट्रक्चर
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है और जो मल्टी
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पर्पस योजनाएं थी
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जिसमें आप कह सकते हैं दामोदर वैली
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प्रोजेक्ट
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था महानदी पे हीराकुंड डैम बनाने का
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प्रोजेक्ट था सोन रिवर वैली प्रोजेक्ट था
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यह बड़े मस प्रोजेक्ट थे जब वाइस राय की
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एट कांसिल में 1942 के जुलाई महीने में
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में बने और यह जून 1946 तक मेंबर रहे थे
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लेबर मेंबर उस वक्त उन्होंने इंडिया की जो
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एनर्जी प्रॉब्लम थी उसमें आप हैरान हो
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जाते हैं जब व लिटरेचर पढ़ते हैं कि उस
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वक्त हाइड्रो इलेक्ट्रिकल पावर का जनरेशन
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कैसे होगा विंड एनर्जी का जनरेशन कैसे
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होगा थर्मल एनर्जी का जनरेशन कैसे होगा जो
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प्रॉब्लम आएगी इलेक्ट्रिकल प्रोडक्शन में
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उनको कैसे हम रेजोल्यूशन करेंगे और इसके
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साथ उन्होंने एक विशेष ध्यान दिया था कि
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हमारे जैसे वास स्प्रेड कंट्री में अगर
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हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट हमने किसी
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एरिया में लगाया वो हर जगह तो लग नहीं
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सकते तो वहां से बिजली हम दूसरे एरिया में
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कैसे ले जाएंगे तो उन्होंने एक बड़ा ही
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नयाब कांसेप्ट दिया था ग्रिड पावर ग्रिड
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का आज भी आप देखो तो उसी की वजह से पूरे
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कंट्री में कहीं भी बिजली की सप्लाई आपने
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भेजनी है वो जो नेशनल पावर ग्रिड बना हुआ
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है उसी के थ्रू आप इंडिया के किसी भी कोने
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में चैनेलाइज कर कर सकते हैं सप्लाई तो यह
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उनकी एक विजन था एक फंडामेंटल स्ट्रक्चर
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इकॉनमी के तैयार करने का जो आज भी उतने ही
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रेलीवेंट एंड उतना ही इंपॉर्टेंट रोल प्ले
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करते हैं जब अंग्रेज के जमाने में
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उन्होंने सोचा था देश के आर्थिक विकास में
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महिलाओं की भागीदारी और योगदान की महता को
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डॉक्टर अंबेडकर ने उस दौर में इंगित किया
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था जब इस विषय पर ज्यादा तवज्जो नहीं दी
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जाती थी महिलाओं को इकोनॉमिक वर्कफोर्स का
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हिस्सा बनाने के लिए और अवकाश जैसे जरूरी
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मुद्दे को भी डॉक्टर अंबेडकर ने ही कानूनी
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जामा पहनाया था श्रमिकों को सरकार की तरफ
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से बीमा दिए जाने और उससे जुड़े आंकड़ों
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के संकलन और प्रकाशन का विचार भी डॉक्टर
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अंबेडकर ने दिया
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था इसके अलावा गरीबी उन्मूलन शिक्षा
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औद्योगिकीकरण और बुनियादी सुविधाओं जैसे
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मसलों पर देश को अर्थशास्त्री डॉक्टर
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अंबेडकर का लाभ
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मिला जब भी विश्व मंच पर मानवीय अधिकारों
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और मानता की बात होगी वहां पर बाबा साहब
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को एक महान लिबरे र के तौर पर याद किया
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जाएगा वह शोषित वर्गों की आवाज थे जिस पर
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उन्होंने सारी उम्र पहरा दिया सदियों की
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गुलामी की जंजीरों को जिस लासानी और
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बौद्धिक सूझबूझ से उन्होंने काटा है इस
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तरह के संघर्ष की मिसाल मिलना मुश्किल है
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इसलिए वह शोषित और वंचितों के लिए महान
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क्रांतिकारी और मुक्तिदाता बनकर विश्व पटल
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पर उभरे हैं ऐसे युग पुरुष भारत रत्न को
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युगों तक याद किया जाएगा फिलहाल इस
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कार्यक्रम में इतना ही मुझे दीजिए मेरी
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पूरी टीम के साथ इजाजत देखते रहिए संसद
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टीवी
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[संगीत]