00:00:00
जिसके पास ना विद्या है ना कोई गुण है ना
00:00:04
धन है और ना कोई सहारा देने वाला है व
00:00:09
जिसकी तरफ देखता है सब ठोकर मार देते
00:00:13
हैं हर जगह धक्का कोई सहारा देने वाला
00:00:17
नहीं उसके पास कुछ नहीं कोई अगर उसकी तरफ
00:00:23
से निकलना चाहो तो हटकर दूर खड़ा हो जाएगा
00:00:26
कहीं कुछ मांग ना ले कहीं कुछ कह ना दे
00:00:29
ऐसा
00:00:30
बहुत ध्यान से सुनोगे तो आनंद आ
00:00:36
जाएगा अब तुम्हारा सुधार
00:00:40
होना प्रभु की जिम्मेवारी है तुम्हारा
00:00:43
कर्तव्य नहीं रह गया अपना सुधार करना तभी
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तो आश्चर्य होता है कि कल तक तो
00:00:50
य ऐसा आज ऐसा कैसे हो सकता है कल हमने
00:00:55
देखा ऐसा व आज कैसे ऐसा अरे एक क्षण में
00:01:00
यह बहुत बढ़िया बात
00:01:03
है भगवान कृपा
00:01:06
करें और हमें हर जगह से ठोकर
00:01:09
मिले यह बात विषय पुरुष के समझ में नहीं
00:01:13
आएगी
00:01:14
कोई
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हमें आदर ना दे कोई हमें अपना कहने वाला
00:01:21
ना हो तो हमारा मन भाग पड़ेगा गोविंद की
00:01:24
तरफ क्योंकि यह बिना सहारा लिए चल नहीं
00:01:28
सकता हृदय का एक विषय है वो किसी ना किसी
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का सहारा लेकर ही चलता है किसी व्यसन का
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किसी व्यक्ति का किसी भोग का किसी ना किसी
00:01:40
देख लो आप हृदय से बस इसके यही सहारे
00:01:44
काटने हैं काटने हैं और पूर्ण यह सब सहारे
00:01:50
एक जगह पूर्ण हो जाए भगवान का सहारा लाडली
00:01:54
जू का
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सहारा जिसके पास ना विद्या है ना कोई गुण
00:02:00
है ना धन है और ना कोई सहारा देने वाला है
00:02:05
वह जिसकी तरफ देखता है सब ठोकर मार देते
00:02:11
हैं सबने जिसको त्याग दिया
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है अगर वह कहीं संत कृपा से भगवान की शरण
00:02:20
में आ जाए
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ऐसा प्रभु की शरण ले
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ले प्रसिद्ध गुण मास
00:02:31
सुजना भगवान उसमें जो सुजन महात्मा जन है
00:02:36
उनमें जो गुण होते हैं वह सब भर देते हैं
00:02:38
उस शरणागत
00:02:40
में दिव्यता आ जाती
00:02:44
है और विश्व
00:02:47
विख्यात उसे कर देते हैं य भगवान
00:02:54
का शरणम यम तेप प्रसत गुणमा सित सुजना
00:02:59
मुक्ता
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स्तम जो बिल्कुल गुण हीन था धनहीन था
00:03:04
विद्या हीन था सब ठोकर मारते थे कोई सहारा
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देने वाला नहीं
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था ये
00:03:13
सब इस मानो ये हमारे ही जीवन की बात कही
00:03:17
जा रही है हम सब अगर आप भ्रम से मान रहे
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हैं कि आपने कुछ अपने तो इस जीवन जो लिखा
00:03:24
है वही जीवन
00:03:26
था कुछ नहीं किसी योग्य नहीं
00:03:31
तो क्या कह रहे जब भगवान की व शरण में आया
00:03:35
तो सारे वह गुण भर दिए भगवान ने जो एक
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दिव्य महात्मा में होते हैं और क्या किया
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उसे विश्व विख्यात कर दिया और क्या किया
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बोले
00:03:55
विमुक्ताए मात्र शरणागति से ऐसे हैं हमारे
00:04:01
भगवान श्री कृष्ण मैं प्रणाम करता हूं
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वंदे यदुपति मोहम कृष्ण
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ममल निर्मल बना कर के जीवन मुक्त परम
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हंसों की स्थिति प्रदान कर भगवान को देने
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में कोई दुर्लभ बात है
00:04:20
क्या शरणागति
00:04:23
हे मत भटको इधर उधर शरणागति बहुत जोर का
00:04:28
विषय है ये
00:04:30
समझना है भगवान कहते हैं क्या करना है
00:04:36
क्या नहीं करना है अब तुम्हारे ऊपर यह भार
00:04:40
नहीं रहा बहुत ध्यान से सुनोगे तो आनंद आ
00:04:47
जाएगा तुम्हें यह
00:04:49
बात कोई समझाएगा भी तो नहीं समझ में आएगी
00:04:52
कि अब तुम्हारा कल्याण नहीं होने
00:04:55
वाला अरे ऐसा ऐसा करे तब जीवन मुक्त होता
00:04:58
है आपको विश्वास नहीं मानना यहां बात सुनो
00:05:02
उसको बैठा लो क्या करना है क्या नहीं करना
00:05:07
है यह तुम्हारी जिम्मेवारी
00:05:10
खत्म अब वह क्या कराना है कहां पहुंचाना
00:05:15
है यह जिम्मेवारी प्रभु की हो गई क्योंकि
00:05:19
आप शरणागत है बिल्कुल बैठा लेना हृदय में
00:05:23
कभी डरना नहीं स कभी संशय मत करना बहुत
00:05:27
सुंदर मनन की हुई बात कह रहे हैं
00:05:31
स्वयं भगवान के शरणागत हो जाना संपूर्ण
00:05:36
साधनों का फल है सार है बस शरणागति को
00:05:41
समझना आगे पूरे विवरण में आएगा विस्तृत
00:05:44
रूप से है कि क्या शरणागति का स्वरूप है
00:05:48
शरणागत हो जाना प्रभु के संपूर्ण साधनों
00:05:52
का फल है सार है जैसे भक्ति के नौ विशेष
00:06:00
स्वरूप है श्रवण कीर्तनम स्मरणम विष्णु
00:06:05
पाद सेवन अर्चन वंदनम दास सख्य पर यह जो
00:06:10
नवा है ये अष्ट भक्ति का फल है आत्म
00:06:17
समर्पण आत्म निवेदन आत्म
00:06:21
समर्पण अपने आप को प्रभु के हवाले कर देना
00:06:25
अंदर से हृदय से
00:06:29
आप
00:06:30
देखो ऐसा वो परिस्थिति पैदा कर देते हैं
00:06:34
या ऐसा ज्ञान दे देते हैं दोनों बातें
00:06:38
पूर्ण समर्पण तभी होता
00:06:40
है जब अशरण हो जाता है हर जगह धक् का कोई
00:06:45
सहारा देने वाला नहीं उसके पास कुछ नहीं
00:06:49
कोई अगर उसकी तरफ से निकलना चाहो तो हटकर
00:06:53
दूर खड़ा हो जाएगा कहीं कुछ मांग ना ले
00:06:56
कहीं कुछ कह ना दे ऐसा
00:07:00
तिरस्कृत
00:07:03
उसे विश्व वंदनी बना देते भगवान
00:07:09
पक्का केवल शरणागति बहुत बड़ा स्वरूप है
00:07:13
शरणागति
00:07:16
का यह संपूर्ण साधनों का सार
00:07:20
है शरणागत भक्त
00:07:24
को अपने कल्याण के लिए कुछ भी करना शेष
00:07:30
नहीं रहता सुनते
00:07:34
जाना जैसे
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पतिव्रता शरीर श्रृंगार करती है पति के
00:07:41
लिए पूरे ग्रह की टहल करती है पति सुख के
00:07:46
लिए उसकी एक एक चेष्टा केवल अपने पति के
00:07:50
लिए होती
00:07:54
है यहां तक कि वो पूरे कुटुंब का पुत्र
00:07:58
पुत्री सब का पालन
00:08:00
पोषण केवल पति प्रसन्नता के लिए करती है
00:08:05
ठीक बस ऐसे ही शरणागत का स्वभाव बन जाता
00:08:09
है उसकी शरीर की सारी चेष्टा एं प्रभु को
00:08:15
समर्पित सारी इंद्रियों की चेष्टा प्रभु
00:08:18
को व शरणागत
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है तभी सेवक जी महाराज कह रहे हैं हरिवंश
00:08:26
पतिव्रत है जिनके सुख संपति दंपति जतिन
00:08:31
के वृंदावन में विराजमान सहचर के मध्य में
00:08:35
प्रिया प्रीतम के प्रति जिसका ऐसा अनन्य
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भाव बोले उसको निश्चित प्रिया प्रीतम
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प्राप्त होते हैं उनकी सेवा उसको प्राप्त
00:08:46
यह बहुत बड़ी बात है ज्ञान निधि वैराग्य
00:08:50
निधि बड़े-बड़े महापुरुष जब थोड़ा सा रस
00:08:54
का श्रवण हुआ तो आकांक्षाएं जागृत हो जाती
00:08:58
हैं हरि राम व्यास जी जिसे पद में कह रहे
00:09:01
हैं किशोरी तेरे चरणन की रज पाऊ बैठ रहो
00:09:06
कुंजन के कोने श्याम राध का गाव जो रज शिव
00:09:11
सनकादिक
00:09:14
याचक जिस रस की किनका को श्रवण
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करके याचना करते हैं कि अगर रज मिल गई तो
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प्रेम मिल जाएगा प्रेम मिल गया तो प्रिया
00:09:26
प्रीतम मिल
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जाएंगे ज्ञान समुद्र है भगवान शिव ब्रह्मा
00:09:32
जी परम ज्ञान समुद्र है संपूर्ण सृष्टि का
00:09:36
सजन ज्ञान विज्ञान उन्हीं की तो देन
00:09:42
है शरणागत भक्त शरीर
00:09:46
को सुख पूर्वक रखता है नहाना ना
00:09:51
कपड़ा कैसे जैसे एक पतिव्रता अपने शरीर को
00:09:56
सजाती है उसका उद्देश्य क्या होता है पति
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को सुख देना पति देखेगा प्रसन्न
00:10:02
होगा यह हमारे परम पति का दासत
00:10:06
[संगीत]
00:10:07
है गर्व से जैसे वो मांग भरती है मंगल
00:10:12
सूत्र धारण करती ऐसे ये तुलसी जी ये हमारा
00:10:17
मंगल सूत्र है हमारे प्रीतम परम पति के
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लिए ये जैसे ये हमारा सुहाग
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है किसी के एक प्रीतम होते हैं तो ठसक में
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घूमती है हमारे तो दोदो प्रीतम प्रिया और
00:10:34
प्रीतम दोनों बिहर दोऊ प्रीतम कुंज ये
00:10:39
हमारे
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दो उस शरीर को लेकर के कि
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जैसे कोई बाहरी
00:10:50
देखे पोशाक धारण किए
00:10:54
हुए खुशबू आ रही है उसके शरीर से इत्र लगा
00:10:57
हुआ है स्वामिनी के प्रसादी और पान पाए
00:11:01
हुए स्वामिनी का पान
00:11:04
प्रसाद जैसे हम पात्र मार्जन करके श्री जी
00:11:08
की सेवा में लगाते हैं अब यह शरीर श्री जी
00:11:11
की सेवा का पात्र
00:11:13
है मैं करके भोगों में उतारना निंदनीय है
00:11:17
त्याज्य है लेकिन श्री जी को समर्पित शरीर
00:11:21
चाहे गृहस्थ हो चाहे
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विरक्त अब वो उसी तरह से प्यार दुलार लायक
00:11:26
है जैसे हम ताम पा को मार्जन करके पवित्र
00:11:31
स्थान में ऊचे पर रखते हैं क्यों क्योंकि
00:11:35
श्री जी की सेवा में आएगा तो ये य श्री जी
00:11:39
की सेवा पात्र हो गया शरणागत का चिंतन
00:11:42
कैसा होता है इसीलिए तुम बाहरी त्याग तो
00:11:46
देख सकते हो लेकिन आंतरिक समर्पण नहीं देख
00:11:48
सकते
00:11:50
हो जो प्रभु के शरणागत हो जाता उसकी कोई
00:11:54
जाति नहीं होती उसका कोई गोत्र नहीं होता
00:11:57
कुल नहीं होता उसका कोई
00:12:00
उसका वही कुल होता है वही जाति होती है
00:12:02
गोत्र होता है जहा समर्पित हो जाता
00:12:07
है लोक में देखो थोड़ा सा
00:12:10
समर्पण अन्य गोत्र कुल की कन्या जब अपने
00:12:14
पति को स्वीकार करती है तो पति का गोत्र
00:12:18
कुल उसका हो जाता है फिर उसका अलग से नहीं
00:12:21
बना अलग तो वो समझ नहीं पा रहा इसलिए नहीं
00:12:25
एक
00:12:26
ही वो कोई और रहे कुल में उसका गोत्र अलग
00:12:31
है उसके और वो जब पति को स्वीकार हुई तो
00:12:34
पति के गोत्र में गोत्र मिल गया पति के
00:12:36
कुल में कुल मिल गया अब उसका अलग से कुल
00:12:39
गोत्र नहीं जैसे नदियां जब अलग रहती है तो
00:12:43
नाम अलग होता है जब समुद्र में मिल जाती
00:12:46
तो एक ही शब्द हो जाता समुद्र ना नदी का
00:12:49
नाम रह गया ना रूप रह गया ऐसे ही प्रेम
00:12:53
समुद्र प्रियालाल के शरणागत का गोत्र
00:12:56
प्रियालाल है कुल प्रियालाल
00:13:00
जाति प्रियालाल है इसीलिए हमारे प्रियालाल
00:13:04
की शरणागति में कभी किसी से नहीं पूछा
00:13:07
जाता आपका गोत्र क्या है कुल क्या है कौन
00:13:11
सी
00:13:12
हमें आप हमारे प्रभु के अंश हो प्रभु की
00:13:16
शरणागत होना शरण होइए बिल्कुल समान
00:13:20
व्यवहार आपके साथ होगा उसमें थोड़ी भी
00:13:24
व्यवहार में कि आप इस जात के हैं तो आप इस
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सेवा में नहीं आ सकते नहीं देखो ना किसी
00:13:32
का परिचय नहीं कि आप किस जाति के हो किसी
00:13:35
का परिचय नहीं दश वर्ष से आप सेवा में हो
00:13:39
किसी का परिचय नहीं ये यहां मात्र नहीं
00:13:41
मात्र है आप प्रभु के हो बस प्रभु के होके
00:13:45
अपने जीवन को प्रभु में बना
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दो सेवक जी महाराज कहते श्री हरिवंश सुगो
00:13:52
कुल देव जाति हरिवंश हरिवंश का तात्पर्य
00:13:56
वृंदावन में विराजमान सहचर के मध्य में
00:13:59
प्रिया प्रीतम यही हमारे गोत्र है यही
00:14:02
हमारे कुल है यही हमारी जात यही हमारी
00:14:05
साधन यही हमारी सिद्धि श्री हरिवंश सुगत
00:14:09
कुल देव जाति हरिवंश श्री हरिवंश स्वरूप
00:14:13
हित रिद्ध सिद्धि हरिवंश सब कुछ प्रिया
00:14:19
प्रीतम ऐसे ही प्रभु के चरणों में
00:14:23
समर्पित जो हो जाता
00:14:25
है वो निश्चिंत हो जाता है निर्भय हो जाता
00:14:30
है निशोक हो जाता है निशंक हो जाता
00:14:35
है उसके हृदय में किसी भी तरह की कोई
00:14:40
चिंता भय शोक यह नहीं रह जाता है पर यह
00:14:46
होता वही उसी को है जो संपूर्ण आश्र हों
00:14:50
का त्याग करके एक मात्र भरोसा ले लेता है
00:14:54
प्रियालाल का प्रभु
00:14:56
का अब ध्यान से
00:15:00
सुनना जब प्रभु के आप आश्रित हो गए तोब
00:15:04
तुम्हारे अंदर यह चिंता ये शोक नहीं होना
00:15:07
चाहिए कि अभी मेरे अंदर तो भाव सुधरे नहीं
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बहुत सुंदर विषय
00:15:14
है हमें कोई उन्नति तो दिखाई दे नहीं रही
00:15:17
है हमारा शरीर
00:15:20
भी समर्पण किसको कहते हैं शरणागत किसके
00:15:24
हुए हो किस बात के शरणागत हुए हो यह देख
00:15:29
शरणागत का प्रधान
00:15:34
साधन भगवत प्रेमी महात्माओं के संग से
00:15:38
होती
00:15:39
शरणागति हनुमान जी नाम
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जपते भगवत
00:15:45
आश्रित ऐसे नाम जापक भगवत आश्रित विभीषण
00:15:49
जी ने जब हनुमान जी को
00:15:50
देखा उसी समय निश्चित हो गया कि प्रभु ने
00:15:53
मुझे स्वीकार किया और उसी समय से नू पड़
00:15:57
गई कि अब प्रगट में प्रभु की णा गति हो
00:15:59
जाएगी नहीं तो साधन तो चल ही रहा था भी
00:16:01
विषण जी का लेकिन
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शरणागति की बात नहीं थी परम नाम जापक परम
00:16:09
आश्रित हनुमान जी के दर्शन संभाषण से हृदय
00:16:13
प्रफुल्लित हो गया कि प्रभु मुझको भी
00:16:15
स्वीकार कर लेंगे अंततोगत्वा
00:16:18
विभीषण की शरणागति पुष्ट हुई भगवान स्वयं
00:16:22
स्वीकार किए शरणागति होती ही संत कृपा से
00:16:26
है अगर महापुरुषों का संगन मिले तो यहां
00:16:29
तक पहुंच ही नहीं हो पाएगी विविध साधनों
00:16:33
के जाल में फसे
00:16:36
रहोगे बहुत ध्यान देने की हम लोग यही
00:16:38
परेशान होते रहते हैं हमारे भाव नहीं
00:16:43
बढ़े हमारी वृत्तियां नहीं
00:16:46
सुधरी भगवत आश्रित हो नाम जब चल रहा है यह
00:16:51
पकड़ना तुमहे यही शरणागति का स्वरूप है
00:16:54
आश्रित है और नाम जो अब हमारे भाव बढ़े ना
00:16:58
बढ़े ति ठीक हो ना ठीक हो यह हमारा विषय
00:17:00
नहीं है बहुत महापुरुषों के वचन और यह
00:17:04
हृदय की बात कह रहा
00:17:07
हूं जब साधना के विषय में कहते तो हम यही
00:17:10
कहते कि हम तो अब अपने हृदय की बताए बस हम
00:17:13
इतना ही साधन जानते हैं जब हित दम में
00:17:16
छोटी
00:17:17
कुटिया महाराज जी इसका मतलब मैं नहीं समझ
00:17:20
पा रहा करते तो हम लोग भी ऐसे हैं पर मतलब
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कुछ फर्क तो मतलब इसका मतलब क्या हम देखो
00:17:27
मतलब तो नहीं समझा सकते पर इतना कह सकते
00:17:30
हैं कि जबान से अगर कुछ निकला तो श्री जी
00:17:35
शरीर से कुछ हुआ तो श्री जी की इच्छा अब
00:17:40
ना इच्छा रह गई है और ना मैं रह गया है वो
00:17:44
सब समर्पित हो गया है अब कैसे कब कहां हुआ
00:17:48
पता नहीं चला जैसे तुम्हारे किशोर अवस्था
00:17:52
में मुछ किस तारीख को निकली पता चला
00:17:55
मछ भैया 9 बज 10 मिनट में मछ निकली थी
00:17:59
अमुक तिथि तारीख आप की तो निकली क्यों
00:18:02
नहीं पता ऐसे आप की तो शरणागति कब और कैसे
00:18:05
हो गई पता नहीं चल निहाल हो गए सच कहते जो
00:18:11
दलते हैं ना ये शरणागति है शरणागति सिर्फ
00:18:15
शरणागति मेरी लाडली की
00:18:20
शरणागति कभी कभी ज आसन पर बैठे होते कभी
00:18:25
कभी आते महीने दो
00:18:27
महीने सुनो सुनो बहुत हम तुम्हें सार की
00:18:31
बात मुरारी बता रहे हैं बस बस शरणागति
00:18:34
आश्रित हो जाओ लाखों बार केवले के यही सब
00:18:37
आश्रित हो जाओ भगवत आश्रित हो जाओ सब
00:18:40
संभाल लेंगे सब वो ठीक कर द
00:18:45
यसे
00:18:47
ऐसा संग का रंग चढ़ता है सब छोड़ के
00:18:53
शरणागति शरणागति अंदर से है
00:18:57
उसके कठोर व्यवहार करके भी
00:19:02
देखा कोई फर्क नहीं शरणागति पर कोई फर्क
00:19:06
जब
00:19:07
जैसे अब तो महाराज जी आपके ऊ परर नाराज
00:19:11
है इससे हमें ब्रम में नहीं डाल सकते मरे
00:19:16
जो कहेंगे जैसे कहेंगे सब छोड़न या नहीं
00:19:20
प्रश ऐसे नहीं वैसे वैसे वैसे शरणागति को
00:19:25
समझ जाए तो फिर कोई भय नहीं रहता अब हम
00:19:28
हमारी जिम्मेवारी कि हमारा मन कहां जा रहा
00:19:30
है हमारी चित्त वृत्ति कहां जा रही हमारी
00:19:33
स्थिति क्या है आप देखो आप देखो प्रभु आप
00:19:36
देखो आपका सब मस्ती ना आ जाए उसी क्षण उसी
00:19:41
क्षण मस्ती आ जाएगी
00:19:45
आप ध्यान से
00:19:48
देखना यदि तुमने संपूर्ण आश्र का त्याग
00:19:53
करके तो ये संपूर्ण आश का त्याग होता ही
00:19:56
है केवल संत से
00:19:59
पढ़ने लिखने से नहीं होता अपने आप जो
00:20:03
शरणागति का स्वरूप आएगा वो संत संग सर्व
00:20:06
संगो पहो हिमाम समस्त संगो के त्याग कराने
00:20:10
के सामर्थ्य सिर्फ सत्संग में है सिर्फ
00:20:13
सत्संग में बिना संत महापुरुषों के ये
00:20:17
शरणागति नहीं होती पर ऐसे संत भगवान की
00:20:20
कृपा से मिलते हैं जिनका एक भरोसा एक बल
00:20:24
एक आत्मविश्वास केवल प्रभु से है बहुत
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मुश्किल को एक पाव भगत जी में मोरी ऐसी
00:20:32
शरणागति किसी किसी के हृदय में प्रकाशित
00:20:35
होती
00:20:37
है जिसने संपूर्ण आश्रय सहार का त्याग
00:20:42
करके केवल प्रभु का आश्रय ले लिया अब उसको
00:20:46
यह चिंता नहीं करनी कि हमारे भाव हमारी
00:20:50
वृत्तियां हमारे आचरण में तो कोई फर्क
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पड़ा नहीं सुधार हुआ नहीं भगवत प्रेम भगवत
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दर्शन यह सब कुछ तो हो ही नहीं
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रहा हमें लगता है कि भगवान ने स्वीकार
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नहीं किया
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क्या मेरी अयोग्यता नहीं गई मेरा अनाधिकार
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निर्बलता यह सब वैसे की वैसे ही
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है तो यदि तुम्हारे अंदर इनकी चिंता है और
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भय है तो वास्तविक तुम शरणागत नहीं
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हुए तुम्हें कोई चिंता इनकी नहीं करनी कोई
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भय नहीं करना कारण तुम प्रभु के अनन्य
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शरणागत हो गए हो बड़ी मस्ती का
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विषय कमी है तो वह प्रभु की है तुम्हारी
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नहीं
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है यही तो ठसक होती है
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यही अब सुधार करना तुम्हारा काम नहीं और
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सुधार भी नहीं सकते पक्का बात
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है करोड़ों कल्प तक हम सुधारते
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सच्ची बात है बहुत प्रबल भगवान की माया एक
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क्षण में कहां से कहां चित्तवृत्ति कहां
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से कहां पहुंच जाता है मन लेकिन यह जब
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सुधारते हैं तो तुमसे सच कहते हैं ऐसी
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स्थिति प्रदान करते हैं रुचि शब्द का ही
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लय हो जाता है कहीं कोई रुचि नहीं कहीं
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कोई यहां से लेकर ब्रह्म लोक कोई रुचि
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नहीं वो अपनी सामर्थ्य नहीं होती इनकी
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सामर्थ्य य देते हैं स्थिति देते
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हैं तभी तो आश्चर्य होता कि कल तक तो
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य ऐसा आज ऐसा कैसे हो सकता है कल हमने
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देखा ऐसा व आज कैसे ऐसा अरे एक क्षण
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में बस यही शरणागति का तभी समाज को
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व्यवहारी लोगों को विश्वास नहीं होता ऐसा
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भी हो सकता है क्या बड़े-बड़े महापुरुष
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जसे नरस मेहता इन सब सबको ऐसा कैसे हो
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सकता है ऐसा कैसे हो सकता है यह पता नहीं
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कि वो शरण में किसकी हुए कर तुम जो हो
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सकता है व भी हो ही जाएगा अक तुम जो नहीं
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हो सकता वो भी हो जाएगा जो बिल्कुल नहीं
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हो सकता वो भी हो जाएगा जैसे सुई के जहां
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धागा डाला जाता है छेद में बड़ी मुश्किल
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से धागा जाता है वहां से अनंत ब्रह्मांड
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पार कर दे उनको कहते हैं भगवान कर तुम अक
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तुम अन्यथा कर तुम सर्व समर्था सा ईश्वरा
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विश्वास करो जिनकी तुम शरण में
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हो अब तुम्हारा सुधार
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होना प्रभु की जिम्मेवारी है तुम्हारा
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कर्तव्य नहीं रह गया अपना सुधार करना यह
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बहुत एकांतिक विषय है इसीलिए अर्जुन से
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कहा था कि बहुत ही गुत बात मैं कह रहा हूं
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क्योंकि तुम मेरे प्रिय हो
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सर्व
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धर्मानना एकम शरणम ब्रज अहम तवाम सर्व पाप
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मोक्ष श्याम मा सुचा बहुत प्रिय बात और
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कहती बहुत ग्रह तम है और बताया कि जो सठ
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स्वभाव वाले दुष्ट स्वभाव वाले अ श्रद्धा
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ऐसे लोगों कभी सुनाना नहीं बात य बड़ा गुण
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विषय बड़ा गुण
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विषय री कमी अब मेरी कमी
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है अब ये हृदय बहिर्मुखी आपको समझ में
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नहीं आ रहा कितनी बड़ी बात है अब शरणागत
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की कमी शरणागत की नहीं है कह तेरी कमी
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मेरी कमी
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है अब उस कमी
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को दूर करना सुधार करना मेरा काम है मैं
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अपना काम अगर ना भी करूं तो जो तुम्हारा
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काम होना वो हो जाएगा समझ रहे हो तुम्हारा
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काम क्या भगवत साक्षात काल वो करा
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देंगे जन अवगुण प्रभु मान न काऊ दीन बंधु
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अति मृदुल
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स्वभाव इसी स्वभाव के बल पर तो जीते हैं
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अपने
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लोग स्वभाव का परिचय गुरु कृपा से जब हो
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जाता है निश्चित
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हमारे स्वामी तो क्या शरणागत गलत आचरण
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करता है
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क्या जब हम अहम की धरा में होते हैं तब
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गलत आचरण होते हैं जब शरणागत होते हैं तो
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चूक हो सकती है गलत आचरण की चूक कुसंग हो
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गया कुछ ऐसा कुछ ऐसी गलती हो गई अब उसके
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हृदय में भारी पश्चाताप ऐसा कैसे हो गया
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राहते ना प्रभु चित चूक कि की वह संकल्प
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करके उत्साहित होकर गलती नहीं अचानक फिसल
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गया पैर
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उसका राहत ना प्रभु चित चूक कि की करत
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सुरत स बार की यह मेरा शरणागत है यह भगवान
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100 बार चिंतन करते हैं उससे जो चूक हुई
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उसकी तरफ देखा ही नहीं कितना महा महिम
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शरणागत महामहिम शरणागति
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तुम्हारा तो बस एक काम
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है मेरा नाम मेरा आश्रय शरणागति के दो
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प्रधान सोपान है
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आश्रय और जिनका आश्रय लिया राधा राधा राधा
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राधा
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राधा मैं तुम्हें निश्चिंत कर
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दूंगा यह दो तुम्हारे पक्ष की बात है हृदय
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से आश्रित हो गए और नाम जप चल रहा
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बस वृतिया सुधरी की नहीं सुधरी भाव बड़ा
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कि नहीं बड़ा क्या स्थिति क्या कुछ मतलब
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हमसे नहीं है तुम्हारे नाम कर दिया
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जीवन भगवान क्या कह रहे हैं मैं उसे
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निश्चिंत कर देता हूं निशोक कर देता हूं
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निर्भय कर देता हूं निशंक कर देता हूं बस
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वो तो बेपरवाह होकर मेरे चरणों का आश्रय
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लेकर पड़ा है मेरे चरणों में वही काह के
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बल भजन को काह के आचार और व्यास भरोसे
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कुवर के सोवत पाव पसार अब तो आपके गले पड़
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गए आपके चरण आश्रित हो
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गए तात्पर्य कि अब उसके अंदर यह वृत्ति आ
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गई कि मेरा तो शरीर है नहीं मेरा अंतःकरण
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नहीं मेरी इंद्रिया ये तो हमने अपने प्रभु
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के नाम कर दिया अभ जो कुछ करें प्रभु
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हिसाब किताब जाने मैं भी प्रभु का और मेरा
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भी प्रभु का जो मैं मेरा था वो प्रभु अरे
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शुरू तो करो आप स्थिति हृदय में आ जाएगी
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नहीं फिर परिस्थिति आ जाएगी जिसमें अपने
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आप शरणागत हो
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जाओगे परिस्थिति ने बहुत बड़ी कृपा
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की कभी-कभी आती थी तरंग ज वृंदावन में आए
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शरणागति
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जैसे तुरंत काट कर देता ब्रह्म ज्ञान काशी
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का जो ज्ञान था तुरंत काट नहीं सत्य विषय
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तो एक ही
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है और
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व मैं हूं सबके हृदय में आत्म तत्व कौन
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किसकी
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शरणागति ठिकाना ही नहीं मिलता इतनी प्रवीण
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बुद्धि थी तत्काल ऐसे काट देती शरणागति
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को बहुत बड़े खिलाड़ी प्रभु अच्छा अब देख
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ये अंदर क विषय कई बार ऐसा हुआ कि कोई
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महात्मा मिले जिससे हम अपनी बात रख सके
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किस बात कि मेरा ज्ञान जो है अंदर से ऐसा
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होता है और हृदय कहता है शरण में हो जाओ
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अब दोनों का कैसे मतलब या सत्य की वह सत्य
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फिर तो मतलब बड़ी विचित्र स्थिति होती है
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ना जब दूषित कब परितोष न
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लई बड़ा मतलब
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गई रिपोर्ट किडनी फेल अब वो जो काट करने
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वाला था ना अब घबरा गया अब तो मेरी बस का
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कुछ नहीं रह
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गया बस फिर जो शुरू हुआ यह परिस्थिति को
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प्रणाम है जिसने बिना प्रश्न के उत्तर दे
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दिया और प्रभु की हृदय की जो प्रेम मूर्ति
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लाड़ लीज इनकी शरणागत तो मैं सच्ची कहता
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हूं यह शरणागति परिस्थिति स्थिति ने करवाई
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नहीं तो काशी का जो बनारस का जो ज्ञान था
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विश्वनाथ जी का वो ऐसा बचपन से तो वह
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कभी द्वत है नहीं तो शरणा ये सेवक
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किसका अब क्या उत्तर दे जहां भी तो बस
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एकांत होते तो वही योग वा शेष वही
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अष्टावक्र विराजमान वो तू ही है है
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महात्मा अह ब्रह्मा य किसकी शरणागति
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वो ऐसी परिस्थिति पर त्राहिमाम मच गया
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क्या वहां का तो ठीक है काशी लेकिन यहां
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भी हमारा जो आकर्षण हुआ उसका साक्षात्कार
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नहीं हुआ और जीवन
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की अंतिम स्थिति आने वाली अब क्या होगा अब
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क्या होगा मैं तो किसी योग्य ल तो पुकार
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उठ
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स्वामिनी
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लाड़ली
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बस यही यही बात बन गई यही बन
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गई या तो भगवान ऐसा संग दे दे विवेक दे दे
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कि शरणागति हो जाए और या परिस्थिति दे दे
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नहीं तो यह अहंकारी जीव बातें शरणागति की
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करता है और वास्तविक शरणागत नहीं हो पाता
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है