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एक
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बार ब्रह्मा जी के दरबार
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में एक पशु ने जाकर शिकायत
00:00:10
की ब्रह्मा जी आप जब देखो तो मनुष्य को ही
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महत्व देते रहते हो क्या विशेषता है इस
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मनुष्य
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ने और इस मनुष्य ने हम पशुओं के साथ जितने
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अत्याचार किए किसी ने नहीं
00:00:24
किए
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कैसे उन्होंने कहा कि देखो
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तो आपने घोड़े की पीठ पर एक आदमी की सीट
00:00:37
बनाई। ब्रह्मा जी की बनाई हुई है। एक आदमी
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घोड़े पर बैठे और जाए और इस बेईमान आदमी
00:00:44
ने ताना
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बनाया। बनाया कि नहीं बताओ। 12
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बिठाए छ सात तो यही बिठा लिए। पांच छ बजे
00:00:54
उनसे कहा पुलिस चौकी को उधर चलो उधर
00:00:56
बिठाएंगे।
00:01:00
एक आदमी की सीट और इतने बिठाए
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दूसरा भेड़ के शरीर पर जो बाल उगाए गए वो
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इसलिए ताकि ये सर्दी से बचे सुरक्षित रहे
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और आदमी ने भेड़ को मोड़
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दिया अपने स्वेटर मफलर कोट बनाए बेचारी
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भेड़ सर्दी भर ठिठुरती
00:01:24
रही ये अत्याचार
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और देखो बकरी बोली
00:01:30
बहन तेरे तो बाल ही मूढे ये आदमी मुझको ही
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मूड के खा
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गया क्या हो गया है हम लोगों को जरा
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मांसाहारी पशु कभी घास नहीं खा सकता उसके
00:01:48
दांतों की बनावट शेर कितने दिन का भूखा हो
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घास नहीं खा सकता और घास खाने वाला पशु
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कभी मांस नहीं खा सकता उसके उसके दांतों
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की बनावट उस तरह एक आदमी ऐसा है चाहे जो
00:02:00
खिला घास मांस
00:02:04
चाहे तब ब्रह्मा जी से ये शिकायत की गई
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इसके बाद भी आप कहते बड़े भाग मानुष तन
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पावा हाथी का तन क्यों
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नहीं और कोई शरीर क्यों नहीं ब्रह्मा जी
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ने कहा कि देखो ऐसा है तुम लोगों की
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शिकायत तो जायज है पर हम आदमी को भी बुला
00:02:24
लेते है तो हम मनुष्यों की ओर से एक
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प्रतिनिधि गया ब्रह्मा जी के यहां और उधर
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सब पशु पक्षी तो ब्रह्मा जी ने
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कहा के भाई आदमी आ तो गया है इसकी विशेषता
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इसलिए है कि और लोग ट भ चे भ बोलते हैं
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लेकिन आदमी बोलता है तो बोली बड़ी अच्छी
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है स्वर बड़ा अच्छा है कोयल सामने आ गई जब
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कोई आदमी सुर में बोलता है तो कहता है आ
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क्या कोयल की तरह रहा
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है? तो ये विशेषता पशुओं से उधार ली कि
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नहीं बताओ। सुंदर बोले तो कोयल की तरह ये
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बात तुम्हारी नहीं चलेगी। तो मनुष्य बोला
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कि हम कपड़े अच्छे पहनते हैं। तो हिरण ने
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कहा तुम्हारे कपड़ों का रंग उड़ जाता है।
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हमारे कपड़े देखो, शरीर का चर्म
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[प्रशंसा]
00:03:17
देखो। इसको उतार-उत कर तुम अपने कपड़े
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बनाते हो। अच्छा ये भी बात नहीं चलेगी,
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नहीं चलेगी। हम मकान अच्छे बनाते हैं तो
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बया पक्षी बोला कि तुमसे बढ़िया मकान तो
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हम बना लेते
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हैं। तो मनुष्य ने कहा कि हम
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बलवान तो शेर गाड़ मार के सामने आया तो
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हमसे ज्यादा बलवान नहीं हो सकते। मनुष्यों
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में जब कोई बलवान होता है तो कहते क्या
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शेर की तरह चला आ रहा है शेर की तरह कभी
00:03:45
किसी शेर से किसी ने कहा क्या आदमी की तरह
00:03:48
चला आ रहा
00:03:50
है आप सोचो तो ताकत भी शेर की तरह बोली
00:03:56
कोयल की
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तरह अच्छा जितनी विशेषताएं सब पशुओं की
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नाक तोते की
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तरह आंख हिरण की तरह
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सब
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उदार हमें लगता है इस आदमी में आदमी का है
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क्या? तो आदमी परेशान हो गया। कहने लगा
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मैं सबसे ज्यादा चालाक हूं। तो कौवा सामने
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आ गया कि हमसे ज्यादा चालाक नहीं हो सकते।
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तो आदमी हैरान हो गया। आदमी ने कहा हम
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सबसे ज्यादा मूर्ख हैं। अब ठीक है। तो गधा
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सामने आ गया कि हमसे ज्यादा मूर्ख नहीं हो
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सकते। जब कोई मूर्ख होता है तो कह दे आदमी
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नहीं गधा है। चालाकी हो तो कह दे आदमी
00:04:37
नहीं कौवा है। सारही तो कह दे आदमी नहीं
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हंस है। बलवान हो तो शेर है। सुंदर बोले
00:04:44
तो कोयल की तरह नाक तोते की तरह नेत्र
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हिरण की
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तरह। ब्रह्मा जी ने कहा इनमें तुम्हारी
00:04:52
पशुओं से कोई जीत
00:04:54
नहीं। फिर ब्रह्मा जी यह क्यों कहा गया
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बड़े भाग मान तन पावा। ब्रह्मा जी ने कहा
00:05:00
इसलिए
00:05:03
क्योंकि इसे जो शरीर मिला है साधन
00:05:07
धाम मोक्ष कर
00:05:10
द्वारा साधन
00:05:12
धाम मोक्ष करारा
00:05:15
[प्रशंसा]
00:05:17
भाई नई
00:05:19
परलोक समावारा
00:05:22
भाई नई
00:05:24
परलोक
00:05:28
समाई परलोक
00:05:32
साधन
00:05:34
धाम मोक्ष कर द्वारा साधन
00:05:39
धाम मोक्ष
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पराई नई
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परलोक संवारा
00:05:49
भाई नई
00:05:51
परलोक
00:05:52
सवारा परलोक संवारा परलोक संवारा
00:05:58
[प्रशंसा]
00:05:59
[संगीत]
00:06:03
यह मनुष्य
00:06:05
शरीर जो इसे मिला है यह इसके सचमुच
00:06:10
सौभाग्य का सूचक है क्योंकि ये साधन का
00:06:14
धाम
00:06:15
है इस शरीर को पाकर साधना की जा सकती है
00:06:19
आराधना की जा सकती है भजन किया जा सकता है
00:06:24
और मोक्ष का दरवाजा है
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अच्छा मोक्ष कर द्वारा का अर्थ आप ऐसे
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सोचे एक सूरदास नेत्रों से उसे बिचारे को
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दिखाई नहीं
00:06:38
देता एक घेरे के बीच में फस
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गया उसमें दरवाजा था सिर्फ एक चारों तरफ
00:06:46
बाउंड सुंदा
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घूमे के दरवाजा मिल जाए चक्कर लगावे तो
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दरवाजे से भी निकल जाए मिले ही से दरवाजा
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एक महात्मा को दया लगी महात्मा ने कहा कि
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भाई दरवाजा तो इसमें है पर तुम्हें दिखता
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ही नहीं है तो क्या हम निकल नहीं सकते कोई
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उपाय नहीं है
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उपाय एक ही उपाय है
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क्या तुम दीवाल पर हाथ लगाना शुरू
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करो ऐसे देखते जाओ दीवाल पर हाथ लगा के
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देखते जाओ जैसे ही दरवाजा आएगा तुम्हारे
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हाथ आप ही बता देंगे कि दरवाजा आ गया पार
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हो
00:07:30
जाना। ये ठीक है। अब महात्मा जी ने अंधे
00:07:33
को दीवार पकड़ा दिए। चलने लगे। महात्मा जी
00:07:36
भी चले गए और शाम को लौट कर आए तो सूरदास
00:07:39
उसी के भीतर निकल ही नहीं
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पाए। बोला अरे महाराज इसमें दरवाजा नहीं
00:07:46
है। महात्मा बोले दरवाजा तो
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है। तो पता नहीं लग रहा हमें तू हमारे
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सामने चल कर दिखा। उसके साथ यह होता कि
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दीवार पर तो हाथ लगा के चलता रहता चलता
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रहता चलता जैसे ही दरवाजा आता उसे बड़ी
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जोर की खुजली
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लगती तो दोनों हाथ से अपने सिर खुजलाने
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लगता चलता भी रहता तब तो दरवाजा निकल जाता
00:08:10
फिर दीवार पे हाथ
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लगाया महात्मा ने कहा कि जब तुम्हें खुजली
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लगती है वही दरवाजा
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है या तो खुजलाना बंद कर दे या चलना बंद
00:08:23
कर दे चलना बंद हो नहीं सकता। खुजलाना बंद
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करके निकल गया। वही एक अजी देखो ये दो
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नीत्र है ज्ञान और ये कहानी ये कहती है और
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इन दोनों नीति में
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मोतियाबिंद ज्ञान की आंख में अहमता का
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मोतियाबिंद और वैराग्य की आंख में ममता का
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मोतियाबिंद मे नियरे हुए सूझत नहीं लानत
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ऐसी जिंद तुलसी या संसार को भयो
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मोतियाबिन अब हमें दिखाई नहीं
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देता। तो महापुरुष कहते हैं कि तुम हाथ
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लगाते जाओ, दरवाजा आएगा तुम्हारे हाथ बता
00:09:05
देंगे। तो ये जितने पशु पक्षियों की
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योनिया है ये सब दीवार है। इनमें तो हम
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हाथ लगाते आते हैं। लेकिन जैसे ही मोक्ष
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का दरवाजा यह मनुष्य शरीर मिलता है। उसके
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मिलते ही बड़े जोर की खुजली मचती है।
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वासना की पूर्ति वासना पूरी हो जाए।
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वासना इस वासना की पूर्ति में ये मोक्ष का
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दरवाजा भी निकल जाता है। फिर दीवार हाथ
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लगती है। या तो खुजलाना बंद कर दे या चलना
00:09:40
बंद कर
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दे। मनुष्य शरीर मोक्ष का दरवाजा है। ये
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सीढ़ी की तरह है। अच्छा देखो आपने नशे
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नहीं सीढ़ी देखी होगी। सीढ़ी अगर दीवार के
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किनारे लगा दो तो आदमी
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ऊपर चढ़ जाता है। सीढ़ी अगर दीवार के किनारे
00:10:00
लगा दो तो आदमी ऊपर पत हो जाता है और सीढ़ी
00:10:05
कुएं में लगा दो तो नीचे उतर जाता है। ये
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मनुष्य शरीर ऐसी ही सीढ़ी
00:10:14
है। पाई न परलोक सवारा।
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इसको पाकर जिसने अपना परलोक नहीं बनाया सो
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परत्र दुख
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पाव सिर
00:10:32
धुन
00:10:34
धुन
00:10:40
पछताई कालहि करम
00:10:46
ईश्वरहि मिथ्या दोष
00:10:50
[प्रशंसा]
00:10:52
लगा ये भाई फिर दोष लगाएंगे काल को कर्म
00:10:56
को ईश्वर
00:10:58
को क्या बताएं हमारा तो प्रारब्ध ही ऐसा
00:11:03
था समय इतना
00:11:06
खराब और ईश्वर ने भी कोई सहायता नहीं
00:11:10
की काल ही कर्म ईश्वर मिथ्या दोष लगाए ये
00:11:16
तब लगाते हैं दोष जब भजन नहीं करते हरी
00:11:19
हरि भजले, हरि भजले, हरि भजने का मौका है।
00:11:24
अभी भजले, अभी भजले, अभी भजने का मौका
00:11:29
है। भगवान आगे बड़ी सुंदर बात कहते हैं। ये
00:11:34
जीव माया के द्वारा प्रेरित है।
00:11:41
त
00:11:42
सदा माया कर
00:11:47
फरा काल एक आदमी अपने रास्ते से चला जा
00:11:51
रहा था बगल में बगीचा था आम के बड़े सुंदर
00:11:54
वृक्ष लगे थे फल लगे
00:11:56
थे अब देखना उस आदमी ने फल
00:11:59
देखे मन हुआ कोई है नहीं चुपचाप फल तोड़
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कर खा ले तो फल देखा किसने आंख ने अच्छा
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आंख वृक्ष के पास चल चल कर जा नहीं सकते
00:12:12
तो वृक्ष के पास चल कर गया कौन पाव अच्छा
00:12:16
पाव फल तोड़ नहीं
00:12:18
सकते तो तोड़ा किसने हाथ ने अच्छा हाथ फल
00:12:24
तोड़ ले तो उसे स्वाद मिल नहीं सकता कि फल
00:12:27
खट्टा है की
00:12:28
मीठा चखा रसना ने और अद्भुत बात जिसने
00:12:33
देखा वो गया नहीं जो गया उसने फल तोड़ा
00:12:36
नहीं जिसने फल तोड़ा उसने चखा नहीं और
00:12:39
जिसने चखा रखा आश्चर्य उसने रखा
00:12:42
नहीं फल देखा आंख ने गए पांव फल तोड़ा हाथ
00:12:46
ने चखा रसना ने और रखा पेट
00:12:49
ने इतने में बगीचे का माली आया और उसने
00:12:53
चोरी से फल खाते हुए देखा पांव धीरे धीरे
00:12:57
आया और डंडा लिए हुए था और उसने दो चार
00:13:01
डंडे पीठ में जमा
00:13:03
दिए अब आप सोचो पीठ बिचारी पीठ ना लेने
00:13:07
में ना देने में आंख ने देखा पांव गए हाथ
00:13:10
ने तोड़ा रसना ने चखा पेट ने रखा पिटे पीट
00:13:15
और करे अपराध तो और पाव फल भोग अति
00:13:18
विचित्र भगवंत गति को जग जाने जो एक आदमी
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कह रहा था राम स्वरूप ने चोरी की अखबार
00:13:24
में खबर राम स्वरूप ने चोरी की फल स्वरूप
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पकड़े गए तो दूसरा आदमी अखबार की भाषा ना
00:13:30
समझकर बोला कि ये लोग भी कैसे विचित्र है
00:13:32
जब राम स्वरूप ने चोरी की तो फल स्वरूप को
00:13:34
क्यों पकड़ा | वो फल स्वरूप नाम समझ रहा
00:13:38
था किसी
00:13:40
तो इसी तरह कर्म की भाषा जब हमें समझ में
00:13:43
नहीं आती तो हम सोचते हैं कि ये इसे सजा
00:13:47
क्यों लेकिन एक महात्मा से जब किसी ने यह
00:13:50
प्रश्न किया महात्मा ने कहा तुम्हारे
00:13:52
प्रश्न में ही इसका उत्तर है पीठ में डंडे
00:13:55
की चोट लगी दर्द हुआ तो आदमी रोया आंसू
00:14:00
कहां से निकले आंख से और सबसे पहले फल
00:14:03
देखा किसने था आंख ने ही तो चाहे जितने
00:14:07
चक्कर से मिले फल उसी को मिलेगा जिसने
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कर्म किया है। जो जस करे सो तस फल चाखा।
00:14:17
तो कर्म का प्रभाव जीव पर समय का काल का
00:14:21
प्रभाव जीव
00:14:23
पर जब स्वभाव देखो दो तरह से दोष आते हैं
00:14:28
जीवन में संघ
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दोष और स्वभावज दोष गीता में कहा जित संघ
00:14:36
दोष संघ के दोष से
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बचें अच्छा संघ का दोष सत्संग से दूर हो
00:14:43
जाएगा पर स्वभाव से जो दोष आया है मिट ना
00:14:47
मलिन स्वभाव
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अभंग इसीलिए शंकर जी ने कभी रावण को नहीं
00:14:54
समझाया सबने समझाया पर गुरु जी ने नहीं
00:14:58
समझाया जानते थे इसके स्वभाव में ये दोष
00:15:00
है ये सत्संग से नहीं सुधरेगा तो ऐसे लोग
00:15:04
सुधर कैसे सकते हैं कबीरा यह मन मलिन है
00:15:07
धोए ना छूटे रंग के छूटे हरि नाम से के
00:15:11
संतन के
00:15:13
संग राम एक ताप्ती तारी नाम कोटि खल कुमति
00:15:19
सुधारी भगवन नाम से ही मिट सकता है और कोई
00:15:22
उपाय नहीं स्वभाव भगवन नाम के बिना नहीं
00:15:26
बदल सकता और रावण कभी नाम लेता नहीं शंकर
00:15:30
जी कहते इसने तो दीक्षा बेकार कर
00:15:33
[संगीत]
00:15:34
दी राम जी का नाम लेने की बात भी आए तो
00:15:37
कहे लुह तापत कर विलासा कहो तब के बात
00:15:40
बहोरी तपसियों का क्या हाल है छोटे तपस्वी
00:15:44
का क्या हाल है अंगद जी से कहता था तो
00:15:46
प्रभु नारी बिर बल हीना तुम्हारे स्वामी
00:15:48
तो वैसे ही बल ही है पर राम नाम नहीं लिया
00:15:52
इसने कभी नहीं लिया कई बार लोग कहते हैं
00:15:55
हम तो अपने स्वभाव से बहुत परेशान है और
00:15:57
स्वभाव के साथ गुण और ये गुण तीन है
00:16:01
सतोगुण रजोगुण
00:16:03
तमोगुण ये गुण है तो बहुत बढ़िया लेकिन सही
00:16:07
समय पे नहीं
00:16:10
आते मंदिर में गए अब दुकान याद आ गई कि वो
00:16:14
ग्राहक
00:16:16
जल्दी जल्दी चले यहां मन रजोगुण से भर गया
00:16:20
और दुकान में पहुंचे तो सतोगुण आ गया सब
00:16:24
ऐसे ही है एक दिन सब पड़ा रह जाएगा ले जाओ
00:16:26
भैया जिस भाव में जाना हो
00:16:29
[संगीत]
00:16:31
जैसे और कथा में आए तो भगवान की कृपा है
00:16:35
जागते रहे तो ठीक नहीं तो तमोगुण आ गया
00:16:37
हां करके अपना सो
00:16:40
गए तो ये गुण समय से नहीं आते मंदिर में
00:16:44
सतोगुण आना चाहिए तो रजोगुण आ जाता है।
00:16:46
दुकान में रजोगुण आना चाहिए तो सतोगुण आ
00:16:48
जाता है। कथा में सतोगुण आना चाहिए तमोगुण
00:16:51
आ जाता
00:16:52
है। अच्छा उन गुणों से हम सब परेशान है कि
00:16:56
नहीं? काल कर्म स्वभाव गुण घेरा। अच्छा
00:17:00
मजे की बात तो ये है कि कथा में कोई सो
00:17:03
जाए तो पाप नहीं है। प्रकृति अब आ गई नींद
00:17:07
तो आ गई क्या करे? लेकिन विडमना ये है कि
00:17:10
कोई आदमी ये स्वीकार नहीं करता कि हम सो
00:17:12
रहे हैं। एक बार एक सत्संग में एक सज्जन
00:17:15
सामने बैठे हो बार-बार ऐसे खड़े हैं तो
00:17:17
महात्मा जी ने कहा क्यों बोले नहीं सो रहे
00:17:20
हो? तो आप इतना
00:17:22
ही फिर आंख बंद करो सो रहे हो नहीं। तो
00:17:25
आंख बंद काहे करते हो? हम बड़े ध्यान से
00:17:28
सुन रहे
00:17:30
हैं। और लोग ध्यान से सुन ही नहीं रहे।
00:17:32
यही ध्यान से सुन रहे हैं। पर चौथी बार
00:17:35
जैसे ही उनकी आंख बंद हुई तो महात्मा जी
00:17:37
ने कहा कि भगत जी सो रहे हो
00:17:39
ना। जैसे ही आंख बंद की तो महात्मा जी
00:17:43
बोले क्यों भगत जी जिंदा हो? तो क्यों?
00:17:44
बोले नहीं। तो ये नहीं सिद्ध कर दिया सो
00:17:47
तो रहे हैं। देखो
00:17:50
आदमी कितना ही कोशिश करे लेकिन पूरी तरह
00:17:54
स्वतंत्र नहीं। माया उसे नचाती है काल
00:17:58
कर्म स्वभाव गुणों के द्वारा।
00:18:02
जगत में किन्हें तारते राम अधमों ने ही रख
00:18:06
दिया अधम उधारण
00:18:08
नाम अपने भगवान से सुंदरता देखि तो भगवान
00:18:14
की बातचीत
00:18:16
झगड़ा भगवान से और मैं तो कहता हूं लोभ से
00:18:22
भी एक सज्जन
00:18:24
थे बड़े लोभी
00:18:29
महाराज इतने लोभी
00:18:33
कि कभी कुछ खर्च ना हो जाए।
00:18:40
लेकिन
00:18:44
उन्होंने तो उन्होंने एक संत से कहा