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हेलो एवरीवन यह इस सीरीज की आठवीं वीडियो
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है इस वीडियो में हम समझेंगे क्लास 10थ के
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एथ चैप्टर को जिसका नाम है हेरिडिटी तो इस
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चैप्टर का इवोल्यूशन वाला पार्ट आपके
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सिलेबस से रिमूव कर दिया गया है तो आपको
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इस वीडियो में केवल हेरिडिटी वाले पार्ट
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को पढ़ना है तो आज हम इस पूरे चैप्टर को
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काफी शॉर्ट टाइम में एनिमेशन के थ्रू इस
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तरह से समझेंगे कि आपकी बोर्ड एग्जाम में
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काफी हेल्प हो सके तो चलिए स्टार्ट करते
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हैं
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[संगीत]
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पिछले चैप्टर में देखा है कि रिप्रोडक्शन
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की प्रोसेस में नए इंडिविजुअल्स फॉर्म
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होते हैं यह जो इंडिविजुअल्स होते हैं वह
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वैसे सिमिलर होते हैं अपने पेरेंट से और
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कुछ इनमें डिफरेंसेस भी होते हैं तो आपने
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पिछले चैप्टर में ही यह पढ़ा और देखा भी
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होगा कि एसेक्सुअल रिप्रोडक्शन में
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वेरिएशन या जो डिफरेंसेस होते हैं वह कम
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होते हैं वहीं पर सेक्सुअल रिप्रोडक्शन
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में वेरिएशन या डिफरेंस काफी ज्यादा होते
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हैं तो आगे पहले ही टॉपिक में हमें
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वेरिएशन के बारे में स्टडी करनी है हमें
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जानना है कि यह क्या होता है यह कैसे
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अराइज होता है और उसके क्या नुकसान क्या
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फायदे होते हैं तो सबसे पहले हम समझते हैं
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कि वेरिएशन क्या होते हैं तो यह डिफरेंस
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होते हैं कैरेक्टरिस्टिक या ट्रेट्स में
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इंडिविजुअल्स के अंदर जो कि रिप्रोडक्शन
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के दौरान उनमें ट्रांसफर हुए हैं सेक्सुअल
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रिप्रोडक्शन के दौरान हमें ज्यादा वेरिएशन
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देखने को मिलते हैं एसेक्सुअल रिप्रोडक्शन
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के कंपैरिजन में और बात करें इसके पीछे की
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रीजन की तो इसका मेन रीजन यह है कि
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सेक्सुअल रिप्रोडक्शन में दो पैरेंट्स
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इवॉल्व होते हैं जिसकी वजह से कैरेक्टर्स
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के ट्रांसफर में थोड़ी सी कॉम्प्लिकेशंस
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होती है और ज्यादा वेरिएशन अराइज होता है
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फॉर एग्जांपल आप देखिए जैसे जो शुगर केन
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होता है उसमें एसेक्सुअल रिप्रोडक्शन होता
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है तो उसमें कम वेरिएशन होता है और
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मोस्टली सभी शुगर केन सेम दिखते हैं और जो
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डॉग्स होते हैं उनमें सेक्सुअल
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रिप्रोडक्शन होता है तो उनमें वेरिएशन
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ज्यादा होता है क्योंकि उनमें दो पेरेंट्स
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इवॉल्व होते हैं इसीलिए इनमें डिफरेंसेस
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भी ज्यादा होते हैं तो आप देखिए कि जब
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रिप्रोडक्शन होता है तो एक जनरेशन से
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दूसरी जनरेशन में कैरेक्टर्स ट्रांसफर
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होते हैं और इसके साथ कुछ वेरिएशन भी
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अराइज होते हैं और वेरिएशन इसलिए अराइज
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होते हैं क्योंकि डीएनए कॉपिंग की प्रोसेस
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भी 100% एक्यूरेट नहीं होती है और यह जो
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वेरिएशन जो रिप्रोडक्शन के दौरान अराइज
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होते हैं वोह काफी इंपोर्टेंट होते हैं और
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यह वेरिएशंस ऑर्गेनिस्ट की हेल्प करते हैं
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सर्वाइवल में बदलती क्लाइमेटिक और
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बिहेवियर कंडीशन के हिसाब से जैसे कि मान
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लो कि दो बैक्टीरिया हैं एक में वेरिएशन
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के कारण हीट सहने की कैपेबिलिटी आ गई है
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और एक में नहीं आई है तो ऐसे केस में जिस
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बैक्टीरिया के अंदर वेरिएशन होगा वह
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सरवाइव कर जाएगा किसी हीट वेम में और जिस
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बैक्टीरिया में वेरिएशन नहीं होगा वह मर
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जाएगा आगे हमें समझना है हेरिडिटी को तो
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हेरिडिटी बेसिकली होता है पेरेंट्स के
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कैरेक्टरिस्टिक का उनके ऑफस्प्रिंग्स में
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ट्रांसफर होना तो हम जानते हैं हमारे अंदर
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मोस्टली कैरेक्टरिस्टिक हमारे पेरेंट से
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ही ट्रांसफर होते हैं यह जो
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कैरेक्टरिस्टिक होते हैं इन्हें साइंटिफिक
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लैंग्वेज में ट्रेट्स भी कहा जाता है तो
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यह ट्रेट्स या कैरेक्टरिस्टिक मेनली दो
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टाइप्स के होते हैं जो कि है इन्हेरिटेंस
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तो जो कैरेक्टरिस्टिक इंडिविजुअल में उनके
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पेरेंट्स से ट्रांसफर होते हैं उन्हें
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इन्हेरिटेंस
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में देखें जैसे कि आई कलर स्किन कलर यह
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दोनों जो कैरेक्टरिस्टिक होते हैं व
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ह्यूमन बीइंग्स में इन्हेरिटेंस
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से आते हैं वहीं पर एक्वा ट्रेट्स वो
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ट्रेट्स होती हैं जो कि इंडिविजुअल डेवलप
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करता है अपने लाइफ टाइम में फॉर एग्जांपल
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स्विमिंग साइकलिंग ईटीसी तो यह थी
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इन्हेरिटेंस और एक्वायर्ड ट्रेड्स आगे
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हमें समझना है रूल्स फॉर द इन्हेरिटेंस ऑफ
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ट्रेड्स मेंडल कंट्रीब्यूशन मतलब कि
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ट्रेट्स के इन्हेरिटेंस के रूल्स तो यह
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रूल्स मेंडल ने दिए थे तो ग्रीग मेंडल ने
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कहा था कि ह्यूमंस में जो ट्रेट्स आते हैं
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वो रिलेटेड होते हैं उस फैक्ट से कि
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जेनेटिक मटेरियल के ट्रांसफर में मदर और
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फादर का इक्वल रोल होता है जेनेटिक
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मटेरियल के ट्रांसफर में तो इसका मतलब हुआ
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कि हर एक ट्रेट या कैरेक्टर जो होता है व
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दोनों पैटरनल और मैटरनल डीएनए यानी कि मदर
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और फादर के डीएनए से इन्फ्लुएंस होता है
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तो इसको सर ग्रेगर मेंडल ने एक्सप्रेस
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किया था उन्हें फादर ऑफ जेनेटिक्स भी कहा
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जाता है यह पहले ऐसे साइंटिस्ट थे
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जिन्होंने मैथ और साइंस की नॉलेज को यूज
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करके लॉ ऑफ इन्हेरिटेंस दिया था मेंडल ने
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खुद से काफी सारे एक्सपेरिमेंट किए थे तब
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जाकर उन्होंने लॉ ऑफ इनहेरिटेंस दिए थे और
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इसमें उन्होंने मेनली तीन तीन लॉज दिए थे
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जिन्हें हम आगे समझेंगे तो मेंडल ने जो भी
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एक्सपेरिमेंट किए थे वह सब उन्होंने पी
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प्लांट्स पर किए थे तो पी प्लांट्स का
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साइंटिफिक नेम होता है पायम सटाई बम मेंडल
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के पी प्लांट्स पर एक्सपेरिमेंट के पीछे
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कुछ इंपोर्टेंट रीजंस थे जैसे कि यह
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प्लांट्स आसानी से ग्रो हो जाते हैं दूसरा
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इनका लाइफ स्पैन जनरली काफी शॉर्ट होता है
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जिसकी वजह से हम ज्यादा से ज्यादा जनरेशन
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की स्टडी कर पाते हैं तो आप मान लीजिए कि
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मेंडल पी प्लांट की जगह अगर कोई लॉन्ग
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लाइफ स्पैन वाला प्लांट ले लेते तो वो
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ज्यादा जनरेशन की स्टडी नहीं कर पाते इसके
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साथ पी प्लांट्स बायसेक्सुअल होते हैं
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यानी कि हर एक फ्लवर के अंदर ही मेल और
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फीमेल दोनों रिप्रोडक्टिव पार्ट होते हैं
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जिससे सेल्फ पॉलिनेशन आसानी से हो पाता है
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और क्रॉस पॉलिनेशन भी आसानी से हाथों से
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की जा सकती है और तीसरा रीजन पी प्लांट्स
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को यूज करने का यह था कि इसमें जो
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कंट्रास्टिंग कैरेक्टर्स होते हैं वो
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क्लियर विजिबल होते हैं तो पी प्लांट्स के
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अंदर सेवन पेयर्स में कंट्रास्टिंग
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कैरेक्टर्स होते हैं कंट्रास्टिंग
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कैरेक्टर्स का मतलब ऐसे कैरेक्टर्स जो कि
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हर एक जनरेशन में शो होते हैं जैसे कि सीड
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शेप कि वो राउंड होता है या रिंकल्ड होता
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है सीड कलर सीड कोट ईटीसी तो आप सिंपली बस
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इतना याद रखें कि कंट्रास्टिंग कैरेक्टर्स
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वो कैरेक्टर्स होते हैं जो कि हर एक
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जनरेशन में शो होते हैं और यह
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कंट्रास्टिंग कैरेक्टर्स या ट्रेट्स जो
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होते हैं वो मेनली दो टाइप्स के होते हैं
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जो कि है डोमिनेंट ट्रेट्स और रिसेसिव
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ट्रेट तो डोमिनेंट ट्रेट्स या कैरेक्टर्स
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वो ट्रेट्स होते हैं जो कि अपने आप को
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एक्सप्रेस करते हैं जनरेशन में वहीं पर
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रिसेसिव ट्रेट्स वो रेट्स होते हैं जो
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अपने आप को एक्सप्रेस नहीं कर पाते हैं
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लेकिन प्रेजेंट होते हैं उस जनरेशन में
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फॉर एग्जांपल आप मान लीजिए कि दो पेरेंट्स
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हैं एक की आई का कलर है ब्लैक और दूसरे
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पेरेंट की आई का कलर है ब्राउन तो मोस्टली
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चांसेस है कि इन दोनों पेरेंट्स का जो
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ऑफस्प्रिंग होगा उसकी आई का कलर ब्लैक ही
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होगा क्योंकि ब्लैक डोमिनेंट ट्रेट है तो
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डोमिनेंट ट्रेट और रिसेसिव ट्रेट में
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सिंपली बस आप इतना याद रखें कि जो अपने आप
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को एक्सप्रेस कर पाता है वह होता है
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डोमिनेंट ट्रेट और जो ट्रेट प्रेजेंट होता
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है लेकिन डोमिनेट ट्रेट की वजह से
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एक्सप्रेस नहीं हो पाता वो होता है
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रिसेसिव ट्रेट्स जैसे पी प्लांट्स होते
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हैं उनमें टॉल प्लांट्स डोमिनेट होते हैं
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और शॉर्ट प्लांट्स रिसेसिव होते हैं तो जब
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इन दोनों की क्रॉस होती है तो मोर लाइक
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टॉल प्लांट्स ही फॉर्म होता है क्योंकि वो
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डोमिनेंट ट्रेट होता है इसके बाद हमें
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देखना है कुछ इंपोर्टेंट टर्म्स को
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जिन्हें जानना हमें जरूरी है तो पहली टर्म
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है जीन तो जीन हेरिडिटी की वो यूनिट होती
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है जिससे सभी कैरेक्टर्स जैसे कि जेनेटिक
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इंफॉर्मेशन वगैरह ट्रांसफर होती है
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पेरेंट्स से उनके ऑफस्प्रिंग में नेक्स्ट
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है एलील तो सेम जीन के ही अलग-अलग फॉर्म
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को या वेरिएंट को ही एलील कहा जाता है
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जैसे कि आप मान लो कि कोई जीन है आई कलर
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के लिए तो उसके एलील हो जाएंगे ब्लैक कलर
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और ब्राउन कलर तो एलील बेसिकली डिफरेंट
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फॉर्म होते हैं सेम जीन के फॉर एग्जांपल
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हम प्लांट्स में बात करें हाइट वाले जीन
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की तो उसमें कैपिटल टी एलील
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को कहा जाता है जो कि हमें
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ऑब्जर्वेशंस वाले कैरेक्टर्स को और वे
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कैरेक्टर्स को जिन्हें हम देख सकते हैं
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उन्हें फेनोटाइप कहा जाता है फॉर एग्जांपल
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टालनेस डवा फिज्म राउंडनेस ईटीसी फेनोटाइप
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के बाद हमें समझना है जीनोटाइप को तो जो
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जींस रिस्पांसिबल होते हैं ऑर्गेनिस्ट के
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अंदर कैरेक्टर्स के लिए उन्हें जीनोटाइप
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कहा जाता है फॉर एग्जांपल कैपिटल t कैपिटल
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t एंड कैपिटल t स्मल t ईटीसी इसके बारे
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में जब हम आगे पढ़ेंगे तो आप और अच्छे से
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समझ जाएंगे इसके बाद हमें समझना है
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ऑर्गेनिस्ट की दो कंडीशंस को जो कि है
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होमोजाईगयस
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तो होमोजाईगयस
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होते हैं जिनके अंदर दोनों जीनस सेम टाइप
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के प्रेजेंट होते हैं तो हम जानते हैं कि
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जींस जो हैं वो पेयर में प्रेजेंट होते
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हैं तो होमोजाईगयस में सेम जीन प्रेजेंट
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होते हैं फॉर एग्जांपल अगर किसी
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ऑर्गेनिस्ट में दोनों टॉलनेसुल्फोनिक
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के जीन एक्सप्रेस हुए हैं तो उसको स्मल t
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स्लटी लिखा जाता है वहीं पर हेट्रो जाइगर
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ऑर्गेनिस्ट की वो कंडीशन होती है जिसमें
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उसके दोनों जीनस डिफरेंट टाइप्स के होते
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हैं फॉर एग्जांपल कोई ऑर्गेनिस्ट में जीन
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है कैपिटल t और स्मल t तो इसमें कैपिटल t
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है टॉलनेसुल्कंवाईएल
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है तो जब हम मेंडल के एक्सपेरिमेंट्स को
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समझेंगे तो यह सब आपकी अच्छे से समझ में आ
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जाएगा तो अब हम देखते हैं मेंडल के
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एक्सपेरिमेंट्स को तो मेंडल ने अपनी
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एक्सपेरिमेंट में दो क्रॉस की थी जो कि है
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मोनोहाइब्रिड क्रॉस और डाई हाइब्रिड क्रॉस
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तो अब हमें इन दोनों क्रॉसेस को अच्छे से
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समझना है तो पहले है मोनोहाइब्रिड क्रॉस
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तो मोनोहाइब्रिड क्रॉस क्रॉस होती है दो
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पी प्लांट्स के बीच में एक पेयर
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कंट्रास्टिंग कैरेक्टर्स के साथ तो इसमें
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मेंडल ने एक प्योर टॉल प्लांट कैपिटल t
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कैपिटल जीनोटाइप का लिया और एक प्योर
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ड्वाइट का लिया और इन दोनों प्लांट्स की
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क्रॉस पोलिनेशन कराई तो आप देखिए जब यह
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क्रॉस हुई तो पहली जनरेशन में यानी कि f1
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जनरेशन में चारों प्लांट्स टॉल हुए आप देख
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सकते हैं कि इनमें रिसेसिव ट्रेट स्मल टी
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भी है लेकिन वो एक्सप्रेस नहीं हो पा रही
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है डोमिनेंट रेट की वजह से तो जब यह f1
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जनरेशन का जो रिजल्ट है जो कि चारों का है
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कैपिटल t स्ल t तो मेंडल ने फर्द इनकी आपस
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में क्रॉस पोलिनेशन कराई तो जब इनकी आपस
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में क्रॉस नेशन होती है तो f2 जनरेशन में
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हमें यह रिजल्ट देखने को मिलते हैं जो कि
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है कैपिटल t कैपिटल t कैपिटल t स्ल t और
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स्मल t स्ल t तो आप देख सकते हैं कि f2
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जनरेशन में
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फिनोटैक्स
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ट्रेट है जो कि एक्सप्रेस नहीं हो पा रहे
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हैं वहीं पर एक शॉर्ट प्लांट है जिसमें
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दोनों एलिल्स में रिसेसिव ट्रेट्स हैं तो
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यह थी मोनोहाइब्रिड क्रॉस और यह थे इनके
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नोटप और
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फिनोटैक्स
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कैरेक्टर्स होते हैं तो आप देखिए डाई
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हाइब्रिड क्रॉस में दो पेयर कैरेक्टर्स
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इवॉल्व होते हैं जबकि मोनोहाइब्रिड क्रॉस
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में एक पेयर कंट्रास्टिंग कैरेक्टर्स ही
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इवॉल्व होते हैं तो मेंडल ने क्रॉस ब्रीड
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कराई पी प्लांट्स की जो कि राउंड येलो सीड
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थी मतलब कि पी प्लांट्स की शेप राउंड और
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कलर येलो थी इनकी ब्रीड मेंडल ने कराई ऐसे
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पी प्लांट से जो कि रिंकल्ड ग्रीन थे मतलब
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कि उनका शेप रिंकल्ड था और कलर ग्रीन था
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तो आप देखिए जब यह क्रॉस ब्रीड हुई तो f1
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जनरेशन में सभी प्लांट्स राउंड येलो आए
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लेकिन ए1 जनरेशन में रिसेसिव ट्रेट्स भी
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थी जो कि डोमिनेंट ट्रेट की वजह से
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एक्सप्रेस नहीं हो पाई तो फिर जब मेंडल ने
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फर्द आगे f1 जनरेशन की प्लांट्स के बीच
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में जब क्रॉस ब्रीड कराई तो जब यह क्रॉस
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हुई तो ये रिजल्ट आया तो आप इस टेबल में
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देखिए ये रिजल्ट है f2 जनरेशन की क्रॉस
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ब्रीडिंग का तो आप देख सकते हैं कि f2
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जनरेशन में नौ प्लांट्स राउंड एंड येलो
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हैं तीन राउंड एंड ग्रीन हैं तीन रिंकल्ड
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एंड येलो हैं और एक प्लांट रिंकल्ड एंड
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ग्रीन है तो आप देख सकते हैं कि डाई
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हाइब्रिड क्रॉस में f2 जनरेशन का
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फिनोटैक्स रेशियो आपकी क्लास में नहीं
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पूछा जाता है तो मेंडल ने अपने
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एक्सपेरिमेंट और रिसर्च के बेसिस पर तीन
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लॉज दिए थे जो कि है लॉ ऑफ डोमिनेंस लॉ ऑफ
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सेग और लॉ ऑफ इंडिपेंडेंट असोर्ट मेंट तो
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चलिए समझते हैं इन्हें तो पहले है लॉ ऑफ
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डोमिनेंस जो कि कहता है व्हेन पेरेंट्स
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विद कंट्रास्टिंग ट्रेट्स वर क्रॉसड ओनली
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वन ट्रेट विल अपीयर इन नेक्स्ट जनरेशन
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यानी कि जब दो पेरेंट्स जिनमें
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कंट्रास्टिंग ट्रेट्स होते हैं यानी कि
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अलग-अलग कैरेक्टर्स होते हैं तो अगली
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जनरेशन में केवल एक ही ट्रेट एक्सप्रेस
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होती है जो ट्रेट या कैरेक्टर अपीयर होता
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है वह होता है डोमिनेंट ट्रेट और जो ट्रेट
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या कैरेक्टर एक्सप्रेस नहीं हो पाता है वो
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होती है रिसेसिव ट्रेट्स दूसरा लॉ है लॉ
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ऑफ सेगी गन जो कि कहता है ड्यूरिंग गेमेट
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फॉर्मेशन ईच गेमेट रिसीव ओनली वन ऑफ द टू
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जीन कॉपीज प्रेजेंट इन एन ऑर्गेनिस्ट मतलब
00:12:48
कि गेमडाउनलोडिग
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दूसरे के अंदर जीन है स्मल टी स्लटी तो
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गेमेट फॉर्मेशन के टाइम पर एक पेरेंट के
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जीनस का एक ही एलील और दूसरे पेरेंट्स के
00:13:06
जीन का भी एक ही एलील इवॉल्व होता है इसके
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बाद है मेंडल का तीसरा लॉ जो कि है लॉ ऑफ
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इंडिपेंडेंट असोर्ट मेंट तो यह कहता है
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एलिल्स फ्रॉम डिफरेंट जीनस आर सॉर्टेड इन
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टू गेमेट्स इंडिपेंडेंटली ऑफ ईच अदर मतलब
00:13:19
कि डिफरेंट डिफरेंट जीन से जो अलग-अलग
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एलिल्स गेमेट फॉर्म करते हैं वो एक दूसरे
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से इंडिपेंडेंट होते हैं इसके बाद हमें
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देखना है हाउ डू दीज ट्रेट्स एक्सप्रेस
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मतलब कि यह जो ट्रेट्स या कैरेक्टरिस्टिक
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होते हैं ये कैसे एक्सप्रेस होते हैं
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ऑर्गेनिस्ट के अंदर तो हमारे जो सेल्स
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होते हैं उनके अंदर जो प्रोटीन होता है
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उसी की वजह से हमारी बॉडी में ट्रेट्स या
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कैरेक्टर्स होते हैं तो सेल के प्रोटीन को
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बनाने का इंफॉर्मेशन सोर्स होता है डीएनए
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और डीएनए के अंदर जो सेक्शन होता है जो कि
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इंफॉर्मेशन प्रोवाइड करती है प्रोटीन के
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लिए उसे जीन कहा जाता है फॉर एग्जांपल
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प्लांट्स की जो हाइट होती है वो प्लांट्स
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के हार्मोन पर डिपेंड करती है और प्लांट्स
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के जो हार्मोन होते हैं वो एफिशिएंसी पर
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डिपेंड होते हैं जैसे अगर प्लांट हार्मोंस
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अगर सही से रिलीज होते हैं तो प्लांट की
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हाइट सही से बढ़ती है और अगर वहीं पर
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प्लांट हार्मोन सही से रिलीज नहीं होते
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हैं तो प्लांट्स की हाइट सही से नहीं
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बढ़ती है तो आप देखिए कि होता क्या है सेल
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के अंदर डीएनए में प्रोटीन सिंथेसिस होता
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है जो कि ट्रेट्स या कैरेक्टरिस्टिक के
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लिए रिस्पांसिबल होते हैं डीएनए के अंदर
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जीन होता है जो कि उस मेन प्रोटीन को कैरी
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करता है तो अगर वो जीन या एंजाइम
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एफिशिएंटली काम करता है तो सही से हार्मोन
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वगैरह प्रेजेंट होते हैं और
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से ग्रो होता है तो हम कह सकते हैं कि
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जीनस ही ट्रेट्स या कैरेक्टरिस्टिक को
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कंट्रोल करते हैं एक जनरेशन से दूसरी
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जनरेशन में इसके बाद हमें समझना इस चैप्टर
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के आखिरी टॉपिक को जो कि है सेक्स
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डिटरमिनेशन तो सेक्स डिटरमिनेशन बेसिकली
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होता है ऑफस्प्रिंग्स का जेंडर डिटरमिनेशन
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तो जो सेक्स डिटरमिनेशन होता है वह दो
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फैक्टर्स पर डिपेंड करता है जिसमें कि
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पहला है एनवायरमेंटल फैक्टर तो कुछ
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एनिमल्स होते हैं जिनमें यह टेंपरेचर पर
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डिपेंड करता है कि उनके एक्स का जेंडर
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क्या होगा फॉर एग्जांपल टर्टल्स तो जो
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टर्टल्स होते हैं उनके एक्स का जेंडर
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स्पेसिफिक टेंपरेचर पर डिपेंड करता है
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इसके बाद दूसरा फैक्टर है जेनेटिक फैक्टर
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तो कुछ एनिमल्स में या कहे ज्यादातर हाईयर
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एनिमल्स में इंडिविजुअल्स का जो जेंडर
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होता है वो क्रोमोजोम के पेयर से डिसाइड
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होता है फॉर एग्जांपल ह्यूमन बीइंग्स
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डॉग्स ईटीसी तो जिन क्रोमोजोम से एनिमल्स
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का या ह्यूमंस का जेंडर डिसाइड होता है
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उन्हें सेक्स क्रोमोजोम कहा जाता है इसके
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बाद बिल्कुल लास्ट में हमें देखना है कि
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ह्यूमंस में कैसे सेक्स डिटरमाइंड होता है
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तो ह्यूमन बीइंग्स में टोटल 46
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क्रोमोजोम्स होते हैं यह क्रोमोजोम्स
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पेयर्स में प्रेजेंट होते हैं तो ह्यूमन
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बीइंग्स में 23 पेयर्स क्रोमोजोम प्रेजेंट
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होते हैं जिनमें से जो 22 पेयर
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क्रोमोजोम्स होते हैं वो सेम होते हैं
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मेल्स और फीमेल्स के अंदर जिन्हें ऑटोसोम
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कहा जाता है सिर्फ एक पेयर क्रोमोजोम का
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जो होता है वह अलग-अलग होता है मेल्स और
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फीमेल्स के अंदर उस पेयर को सेक्स
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क्रोमोजोम कहा जाता है तो अब आप देखिए कि
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कैसे इन क्रोमोजोम से जेंडर डिटरमाइंड
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होता है तो मेल के सेक्स क्रोमोजोम दो
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टाइप्स के होते हैं जो कि है x एंड y वहीं
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पर जो फीमेल के अंदर क्रोमोजोम होते हैं
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वह सेम होते हैं जो कि है एक्स एंड एक् तो
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जो एक्स क्रोमोजोम होता है वह फीमेल्स के
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लिए रिस्पांसिबल होता है और जो बाय
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क्रोमोजोम होता है वह मेल्स के लिए
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रिस्पांसिबल होता है तो हम जानते हैं कि
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जब गेमेट फॉर्म होता है तो दोनों पैरेंट्स
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का एक-एक क्रोमोजोम कंबाइन होता है
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ऑर्गेनिस्ट के फॉर्मेशन के लिए तो अगर
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फीमेल्स का एक् वाला क्रोमोजोम मेल के
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एक्स वाले क्रोमोजोम के साथ कंबाइन होता
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है तो जो ऑफस्प्रिंग होता है व फीमेल यानी
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कि लड़की होती है और वहीं पर जब यह फीमेल
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का एक्स क्रोमोजोम अगर मेल के बाय
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क्रोमोजोम से फ्यूज हो जाता है तब जो
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ऑफस्प्रिंग होती है वह मेल होता है यानी
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कि लड़का होता है तो ह्यूमंस में जेंडर या
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सेक्स डिटरमिनेशन जो है वो मेल्स पर ही
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डिपेंड होता है क्योंकि मेल्स के अंदर ही
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एक्स और y क्रोमोजोम प्रेजेंट होते हैं जो
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एक्स क्रोमोजोम होता है वो फीमेल्स के लिए
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रिस्पांसिबल होता है और जो बाय क्रोमोजोम
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होता है वह मेल्स के लिए रिस्पांसिबल होता
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है तो आपने शायद यह बात नोटिस नहीं की
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होगी लेकिन अभी भी आप अगर देखेंगे तो गांव
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वगैरह में आज भी जब लड़की पैदा होती है तो
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उसके लिए फीमेल को ही ब्लेम किया जाता है
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लेकिन अगर हम एक्चुअल रियलिटी में देखें
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तो ह्यूमन बीइंग्स के अंदर जो सेक्स
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डिटरमिनेशन होता है वह मेल पैरेंट पर
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डिपेंड करता है क्योंकि उसके अंदर ही एक्स
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और y क्रोमोजोम प्रेजेंट होते हैं तो आज
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