जिन लोगों में ये पांच गुण होते हैं उनके घर ठाकुर स्वयं देवी लक्ष्मी के साथ आते हैं | 😘👣#indreshji

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Summary

TLDRयह कथा पुंडलिक नामक भक्त की है, जो अपने माता-पिता के प्रति असंवेदनशील था। जब उसके माता-पिता काशी जाने की इच्छा व्यक्त करते हैं, तो वह उनकी मदद नहीं करता। लेकिन एक रात, जब वह अपने दोस्तों के साथ यात्रा पर होता है, तो उसे तीन सुंदर नारियों का दर्शन होता है, जो गंगा, यमुना और सरस्वती हैं। वे बताती हैं कि वे अपने पवित्रता को बनाए रखने के लिए संतों की चरण रज से अपने पापों को धोती हैं। पुंडलिक को यह समझ में आता है कि उसे अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए। वह तुरंत अपने माता-पिता के पास लौटता है, उनसे क्षमा मांगता है और उन्हें काशी ले जाता है। इस प्रकार, वह अपने माता-पिता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझता है और भगवान विठोबा की कृपा प्राप्त करता है।

Takeaways

  • 🙏 माता-पिता की सेवा का महत्व समझें।
  • 🌊 पवित्रता के लिए संतों की चरण रज का महत्व।
  • 💔 असंवेदनशीलता से बचें।
  • 🌟 भक्ति से भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
  • 🚶‍♂️ अपने कर्तव्यों को समझें और निभाएं।
  • 💖 परिवार के प्रति प्रेम और सम्मान रखें।
  • 🌈 जीवन में संतों का संग महत्वपूर्ण है।
  • 🕊️ क्षमा मांगने से रिश्ते मजबूत होते हैं।
  • 🌼 भक्ति का मार्ग कठिनाइयों से भरा हो सकता है।
  • 🌻 सच्ची भक्ति से जीवन में सुख और शांति मिलती है।

Timeline

  • 00:00:00 - 00:05:00

    कथा की शुरुआत में पुंडलिक नामक भक्त का परिचय दिया गया है, जो अपने माता-पिता के प्रति प्रेम नहीं रखता था। माता-पिता काशी जाने की इच्छा व्यक्त करते हैं, लेकिन पुंडलिक उनकी मदद नहीं करता।

  • 00:05:00 - 00:10:00

    पुंडलिक अपने दोस्तों के साथ काशी जाने का निर्णय लेता है, लेकिन रास्ते में अपने माता-पिता को देखकर मुंह मोड़ लेता है। यह दर्शाता है कि वह अपने माता-पिता से कितना दूर है।

  • 00:10:00 - 00:15:00

    रात को एक आश्रम में पुंडलिक तीन नारियों को झाड़ू लगाते हुए देखता है, जो बाद में गंगा, यमुना और सरस्वती निकलती हैं। वे बताती हैं कि वे भक्तों की सेवा से पवित्र होती हैं।

  • 00:15:00 - 00:20:00

    नदियों से पुंडलिक को यह ज्ञान मिलता है कि माता-पिता की सेवा करने से पाप समाप्त होते हैं। वह तुरंत अपने माता-पिता के पास जाकर उनसे क्षमा मांगता है।

  • 00:20:00 - 00:25:00

    पुंडलिक माता-पिता को काशी ले जाकर दर्शन कराता है और उनके प्रति अपनी भक्ति को स्वीकार करता है। वह अपने जीवन को माता-पिता की सेवा में समर्पित करने का प्रण लेता है।

  • 00:25:00 - 00:30:00

    भगवान द्वारिकाधीश पुंडलिक की भक्ति से प्रसन्न होकर उसके पास आते हैं। पुंडलिक उन्हें पहचान नहीं पाता, लेकिन भगवान उसकी भक्ति को देखकर वहां रुक जाते हैं।

  • 00:30:00 - 00:35:00

    पुंडलिक अपने माता-पिता की सेवा में इतना लीन हो जाता है कि भगवान भी उसकी भक्ति को देखकर प्रभावित होते हैं।

  • 00:35:00 - 00:40:00

    कथा में माता-पिता के प्रति प्रेम और भक्ति का महत्व बताया गया है, और यह भी कि बच्चों को अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए।

  • 00:40:00 - 00:45:00

    कथा में आगे कपिल देव और दे भूति माता के संवाद का उल्लेख किया गया है, जिसमें माता अपने जीवन के प्रश्न पूछती हैं।

  • 00:45:00 - 00:54:48

    कथा का अंत यह संदेश देता है कि मन को सुधारने के लिए संतों का संग करना चाहिए और अपने इंद्रियों पर संयम रखना चाहिए।

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Video Q&A

  • कथा का मुख्य पात्र कौन है?

    कथा का मुख्य पात्र पुंडलिक है।

  • पुंडलिक के माता-पिता किस स्थान पर जाना चाहते थे?

    पुंडलिक के माता-पिता काशी विश्वनाथ दर्शन करने जाना चाहते थे।

  • पुंडलिक ने माता-पिता की मदद क्यों नहीं की?

    पुंडलिक अपने माता-पिता के प्रति असंवेदनशील था और उनकी मदद नहीं करना चाहता था।

  • पुंडलिक को किस प्रकार की नारियों का दर्शन होता है?

    पुंडलिक को गंगा, यमुना और सरस्वती नामक तीन नारियों का दर्शन होता है।

  • पुंडलिक ने अपने माता-पिता से क्षमा क्यों मांगी?

    पुंडलिक ने अपने माता-पिता से क्षमा मांगी क्योंकि उसने उन्हें पहले नजरअंदाज किया था।

  • कथा का अंत क्या है?

    कथा का अंत पुंडलिक के माता-पिता की सेवा और भगवान विठोबा की कृपा प्राप्त करने के साथ होता है।

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    इसी बात पर एक कथा सुनाकर हम फिर कथा में
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    प्रवेश करेंगे महाराष्ट्र में एक भक्त हुए
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    भगवान के पंडरीनाथ भगवान उनका नाम था
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    पुंडलिक क्या नाम था
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    पुंडलिक श्री विट्ठल भगवान जिसके लिए आज
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    तक पंढरपुर में दोनों क कमर पर हाथ रख कर
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    के खड़े
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    हैं यह पुंडलिक जो था यह बिल्कुल अपने
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    माता-पिता से प्रेम नहीं करता था बहुत
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    ध्यान से
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    सुनिए एक दिन माता पिता ने कहा पुंडलिक हम
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    काशी विश्वनाथ दर्शन करने जाना चाहते हैं
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    हमारी व्यवस्था कर
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    दो पुंडलिक बोला भगवान ने तो पैर दिए चलकर
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    चले
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    जाओ माता पिता बोले बेटा यहां से बहुत दूर
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    है देख लो लाला आने वाले हैं
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    आज बोलो नंद के लाला की जय ये आप सबके पित
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    प्रसन्न होकर के अश्रु धार बहा रहे कि आज
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    हमारे परिवार में देखो कितना सुंदर उत्सव
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    होने वाला है नंद घर आनंद होने वाला है
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    उसी के प्रेमाश्रय जा रहे
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    हैं कथा के मध्य में प्रारंभ में अंत में
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    वर्षा होने का मतलब यह है कि आपके द्वारा
  • 00:01:11
    की गई कथा और आपके द्वारा किया गया आयोजन
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    उसमें देवताओं ने हाजरी दे दी है और उसको
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    स्वीकार कर
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    लिया और वैसे दूसरी बात में कहूं तो
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    इंद्रेश कथा कर रहे हैं तो इंद्र बरसे
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    नहीं ऐसा हो नहीं सकता आज हमको बरम केला
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    वाले अपने आपके यहां बरमकेला में भी कथा
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    हुई थी वहां पर भी खूब बारिश हुई थी वहां
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    से पधारे हैं हमारे
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    भैया अब कथा सुनो सब लोग ध्यान से तो
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    पुंडलिक जो था वह माता-पिता का बिल्कुल
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    प्रेमी नहीं
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    था एक दिन उसके माता-पिता ने कहा कि हमको
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    काशी जाना है तो पुंडलिक ने कह दिया कि
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    पैर दिए भगवान ने चलकर चले जाओ मैं कोई
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    व्यवस्था नहीं कराऊंगा
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    माता-पिता बेचारे सीधे पैदल पैदल जाने
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    लगे लेकिन कुंडलिक अपने सखा के साथ
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    मित्रों के साथ बहुत ऐश आराम करता था तो
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    एक दिन उसके सारे मित्र बोले अरे चलो भाई
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    मैं नया रथ खरीद के लाया हूं इससे तुमको
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    घुमाने ले चलता हूं पुंडलिक बोला कहां
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    चलेंगे बोले हम लोग काशी चलते हैं थोड़ी
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    लंबी ड्राइव पर चलते हैं पुंडलिक बोला ठीक
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    है अब तो माता पिता को मना कर दिया था
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    उसने लेकिन अपने मित्रों से हां बोलक उनके
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    संग जाने
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    लगा बीच रास्ते में पुंडलिक को दिखाई दिया
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    कि मेरे माता-पिता जा रहे हैं तो पुंडलिक
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    ने अपना मुंह भी फेर लिया कहीं इन्होंने
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    मुझे देख लिया तो बोल देंगे कि हमको भी
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    बैठा लो
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    ऐसा माता-पिता हों से बैर करता था
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    पुंडलिक रात्रि का समय हो गया तो एक आश्रम
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    में जाकर के सब सखा हों ने अपना रथ
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    रोका और सब रात्रि भोजन करके वहां सोने
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    लगे अर्धरात्रि का समय हुआ पुंडलिक को पता
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    नहीं भूख प्यास कुछ लगी होगी पुंडलिक उठकर
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    के अपने कमरे से जैसे ही बाहर आया तो उसने
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    क्या देखा उस आश्रम के आंगन में परम
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    सुंदरी तीन
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    नारियां परम कुरूपी तीन नारियां झाड़ू लगा
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    रही
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    हैं कुरूपी मतलब उनका रूप देखने लायक नहीं
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    था उनको देख कर के ना देखने की इच्छा हो
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    रही थी और वो झाड़ू लगा रही हैं पुंडलिक
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    थोड़ी देर देखता रहा बोले कर क्या रहे हैं
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    तभी उसने देखा कि ज्यों ज्यों वो झाड़ू
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    लगाती जा रही है त्यों त्यों उनका रंग साफ
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    होता जा रहा है नेत्र सुंदर होते जा रहे
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    हैं नासिका सुंदर होती जा रही है उनका अंग
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    प्रत्यंग सुंदर होता जा रहा है और अंत में
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    पुंडलिक ने देखा कि जैसे उनकी सेवा पूर्ण
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    हुई व परम सुंदरी नारिया अत्यंत तेजवान
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    अत्यंत सुंदरी बनकर के उसके सामने खड़ी
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    है पुंडलिक ने हाथ जोड़ कर के कहा माताओं
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    आप कौन हो और यह क्या हुआ मैं जब आया था
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    यहां पर तब आपका रूप इतना सुंदर नहीं था
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    और अब आप परम सुंदर लग रही हो यह क्या हुआ
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    चमत्कार मुझे इसके बारे में
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    बताओ उन तीनों ने अपना परिचय दिया बोले कि
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    हम तीन कोई और नहीं है तीनों नदियां हैं
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    गंगा यमुना और सरस्वती
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    अच्छा तो आपका ये ये ये अभी क्या हुआ था
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    यहां पर बोले
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    पुंडलिक दिन भर ना जाने असंख्य लोग हम में
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    स्नान करके अपने पापों को धो कर के जाते
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    हैं अपने पापों को हम हम में युक्त करके
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    जाते
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    हैं हम परम पवित्रा हैं लेकिन इतने संख्या
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    में लोग स्नान करते हैं कि उन सबके पाप
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    हमको कुरूप बना देते हैं तब रात्रि में हम
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    विविध विविध आश्रमों में जाते हैं और उन
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    आश्रमों में विचरण करने वाले वैष्णव भक्त
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    जन
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    संत जन उनकी जो चरण रज पड़ी होती है उसको
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    अपनी झाड़ू से उसका मार्जन करते हैं तो जब
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    मार्जन करते हैं तो उड़कर के हमारे अंग पर
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    लगती है और हमारे जितने भी पाप जितने भी
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    मेल हमें लगे हैं वह सब धुल जाते हैं और
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    हम पुन पवित्र हो जाते
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    हैं पुंडलिक ने बोला इतनी सामर्थ होती है
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    संत जनों के चरण रज में तो बोले हा
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    पुंडलिक बोला मेरे यहां संत महात्मा तो है
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    नहीं मुझे यदि यह करना हो कि मैं रोज अपने
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    पापों को नष्ट करूं तो मैं क्या करूं
  • 00:05:00
    तब गंगा यमुना सरस्वती ने बताया बोले संत
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    जनों के चरण रज मिल जाए तो अच्छा है नहीं
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    तो घर में विराजमान संत स्वरूप जो
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    माता-पिता है यदि कोई बालक नित्य उनको
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    प्रणाम करे नित्य उनके चरण रज को अपने
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    माथे से लगाए उसके पाप नित्य नष्ट होते
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    हैं जैसे ही पुंडलिक ने यह बात सुनी नेत्र
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    सजल हो गए पुंडलिक के बोले कि मेरे घर में
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    माता-पिता बैठे हैं और मैं बाहर जाकर के
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    संत जनों के चरण धू रहा हूं
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    उसी समय तक्षण रात्रि मेंही पुंडलिक निकल
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    गया रथ लेकर के अर्धरात्रि में बीच रास्ते
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    में कहीं माता-पिता सोए थे जाकर के चरणों
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    में गिर के बहुत रोया कान पकड़ के क्षमा
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    मांगने लगा मुझे क्षमा कर दो मैं आपको
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    पहचान ना सका आपकी कभी सेवा नहीं की मैंने
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    मैंने बहुत बड़ा अपराध किया माता-पिता
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    दोनों को काशी विश्वनाथ दर्शन करा कर के
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    वापस लेकर आया और उसी दिन उसने प्रण ले
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    लिया मेरा कर्म मेरा कर्तव्य मेरा जीवन
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    मेरा सब कुछ मेरे माता-पिता के चरणारविंद
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    है
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    कोई उसको बोलता पुंडलिक मंदिर जाया करो
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    तीर्थ या जाया करो कहीं जाया करो तो हर
  • 00:06:05
    चीज में अपने माता-पिता को प्रणाम करता था
  • 00:06:07
    बोले यही तीर्थ है मेरे लिए इतनी सेवा
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    माता-पिता की करता था कि द्वारिकाधीश उसकी
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    सेवा से प्रसन्न हो
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    गए और एक दिन द्वारिकाधीश से रहा नहीं गया
  • 00:06:19
    द्वारिका से निकल पड़े रुक्मिणी जी ने
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    पूछा कहां जा रहे हो बोले अपने एक भक्त को
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    दर्शन देने जा रहा हूं और पुंडलिक के यहां
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    पंढरपुर में पुंडलिक सेवा कर रहा था अपने
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    माता-पिता की तभी सुंदर चंदन की सुगंधी
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    आने लगी तभी दिव्य तेज एक एक प्रकाश मानो
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    जैसे गेट पैसे अंदर भीतर आने लगा नूपुर की
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    ध्वनि ठाकुर जी के आभूषणों की मचल की
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    ध्वनि पुंडलिक के कानों में जाने लगी
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    पुंडलिक बोला यह सुगंधी कहां से आ रही है
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    यह नूपुर की आवाज य इतना प्रकाश कौन दे
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    रहा
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    है द्वार पर खड़े हुए ठाकुर जी और ठाकुर
  • 00:06:55
    जी के संग में खड़ी लक्ष्मी बोली
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    कुंडलिक अरे तुम सौभाग्य शली हो देखो
  • 00:07:01
    तुम्हारे द्वार पर साक्षात द्वारिकाधीश
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    आकर के खड़े हुए हैं आ जाओ प्रणाम
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    करो कुंडलिक बोला कौन द्वारिकाधीश बोले
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    अरे नारायण नारायण के अवतार कृष्ण वो
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    तुम्हारे आए हैं क्यों आए हैं बोले
  • 00:07:17
    तुम्हारी माता-पिता के चरणों में जो भक्ति
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    है उससे प्रसन्न होकर आए हैं कुंडलिक बोला
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    मैंने तो बुलाया नहीं इनको मैंने मैंने तो
  • 00:07:24
    इनको आमंत्रण भेजा नहीं मैं माता-पिता की
  • 00:07:27
    सेवा इनकी प्राप्ति के लिए तो कर नहीं रहा
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    हूं मैं तो केवल ऐसे ही मेरे माता पिता है
  • 00:07:31
    इसलिए सेवा कर रहा हूं तो फिर यह क्यों आए
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    हैं भगवान को तो कुछ नहीं लेकिन लक्ष्मी
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    जी को गुस्सा आ गया बोले कि 45 मिनट से
  • 00:07:40
    खड़े हैं और यह बारी नहीं आ रहा है ठाकुर
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    जी बोले चलो यहां से यह तो आदर सम्मान भी
  • 00:07:45
    नहीं कर रहा आपका ऐसे भक्त से क्यों मिलना
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    ठाकुर जी बोले तुमको जाना है तो जाओ मैं
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    तो अब पुंडलिक के दर्शन करके ही जाऊंगा
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    ऐसे माता-पिता के चरण कमलों में प्रेम
  • 00:07:55
    करने वाले पुंडलिक को बिना देखे मैं यहां
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    से नहीं जाऊंगा लक्ष्मी जी ने कहा देखो ये
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    तो खड़े हैं हट कर के तुम जब तक नहीं
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    मिलोगे तब तक यहीं खड़े रहेंगे पुंडलिक के
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    पास में एक ईटा रखा था उसने वो ईटा सरका
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    दिया बोले लो इस पर खड़े हो जाओ और खड़े
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    रहो जीवन भर लेकिन मैं अपने माता-पिता के
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    चरण छोड़ के नहीं
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    आऊंगा जैसे ही पुंडलिक ने यह बात कही
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    लक्ष्मी जी रोकती रही लेकिन ठाकुर जी नहीं
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    माने और उस ईंट के ऊपर जाकर के प्रतीक्षा
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    की मुद्रा में जैसे कोई प्रतीक्षा करता है
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    किसी की ऐसे प्रतीक्षा की मुद्रा में
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    भगवान द्वारिकाधीश
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    विठ्ठल बनकर के वहां पर विराजमान हो गए
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    पुंडलिक वद श्री हरि
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    विठ्ठल श्री पंढरीनाथ महाराज की
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    जय माता-पिता के चरण में प्रेम करने वाले
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    पुंडलिक के लिए ठाकुर जी वहां पर विट्ठल
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    बन कर के खड़े
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    हैं तो बंधुओं आजकल के बच्चों से बस यही
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    है
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    भाव माता पिता को ही सर्वस्व मानो चलो
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    हमारी उम्र के बच्चे तो फिर भी समझ जाएंगे
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    लेकिन आने वाली जो जनरेशन है वो तो बहुत
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    खतरनाक होने वाली है कभी-कभी हमको लगता है
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    कि आप लोगों का बुढ़ापा तो ठीक निकल जाएगा
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    हमारा बुढ़ापा बहुत भयंकर जाने वाला
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    है हां आजकल के माताएं लोग बच्चों की सेवा
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    तो करती नहीं है वोह रख लेती है आया उसकी
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    सेवा करने वाली भी एक कोई और ही रहती है
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    वही बच्चे को उठाती है वही बच्चे को
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    सुलाती है वही बच्चे और फिर बुढ़ापे में
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    वो माता एक्सपेक्ट करती है कि बच्चा मेरी
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    सेवा करे तुमने की बचपन में
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    अरे बच्चों को बचपन में माता का लाड़
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    प्यार करना एक प्रकार से वो भी ठाकुर जी
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    की सेवा के समान है क्योंकि बालक श्री
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    कृष्ण के समान है छोटे बच्चे को देखो
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    उसमें से कभी दुर्गंध नहीं आती उसको भले
  • 00:09:41
    ही चार दिन लाओ मत वो ब्रश करता नहीं है
  • 00:09:43
    वो कुछ ऐसे ही रहता है सामान्य लेकिन
  • 00:09:45
    उसमें से कोई दुर्गंध नहीं आती क्यों
  • 00:09:47
    क्योंकि वह अंदर से निष्कपट
  • 00:09:50
    है घर का शत्रु आकर के यदि बालक को गोद
  • 00:09:53
    में ले ले तो बालक चिल्लाएगा नहीं उसकी
  • 00:09:54
    गोद में जाकर भी हंसता है क्योंकि वो
  • 00:09:56
    जानता नहीं कि मुझे किससे बेर करना है
  • 00:09:58
    किससे प्रेम करना है किससे मित्रता करनी
  • 00:10:00
    है किससे छल करना सबके प्रति सम रहता
  • 00:10:03
    है इसलिए उसमें से दुर्गंध नहीं आती वह
  • 00:10:06
    कृष्ण स्वरूप है तुम उसकी सेवा करो
  • 00:10:09
    बाल्यकाल में बुढ़ापे में वह भी
  • 00:10:11
    करेगा तो इसलिए भैया इन सब विषयों को
  • 00:10:14
    समझते हुए आज के प्रश्नों को यही विराम
  • 00:10:17
    देते हैं और कथाक्रम में हम लोग प्रवेश
  • 00:10:18
    करते
  • 00:10:20
    हैं कथाक्रम कल कहां तक पहुंचा था कपिल दे
  • 00:10:24
    भूति
  • 00:10:26
    संवाद बहुत ध्यान से सुनिए
  • 00:10:30
    बहुत सुंदर प्रसंग है कपिल दे भूति संवाद
  • 00:10:33
    का दे भूति माता के यहां नौ कन्याओं ने
  • 00:10:36
    जन्म लिया और दसव पुत्र के रूप में भगवान
  • 00:10:40
    कपिल
  • 00:10:42
    पधारे आपसे एक बात
  • 00:10:45
    कहूं श्रीमद् भागवत की फिलोसोफी है यह
  • 00:10:49
    इसको दर्शन शास्त्र कहते हैं कपिल देवती
  • 00:10:51
    संवाद को बड़े-बड़े लोग इस बात पर इस
  • 00:10:55
    चर्चा पर पीएचडी करते हैं हमारे पूज्य
  • 00:10:57
    पिताजी महाराज ने एम है इसी विषय पर कपिल
  • 00:11:01
    दे भूति संवाद ये साधारण नहीं
  • 00:11:04
    है समय की कम कटौती है इसलिए मैं थोड़ा ही
  • 00:11:07
    कहूंगा लेकिन बहुत ध्यान से
  • 00:11:09
    सुनिए भयंकर गण चर्चा है श्रीमद् भागवत
  • 00:11:13
    की देव भूति माता को पता है कि मेरे पुत्र
  • 00:11:17
    कोई और नहीं है साक्षात भगवान
  • 00:11:19
    है एक दिन समय जान कर के उन्होंने वृक्ष
  • 00:11:22
    के नीचे आसन बिछा के अपने पुत्र को बैठा
  • 00:11:25
    दिया और उनका तिलक करके माला पहना के आरती
  • 00:11:28
    करके प्रणाम करके दे भूति माता ने कहा मैं
  • 00:11:30
    जानती हूं कि आप ईश्वर हो लेकिन मेरे
  • 00:11:32
    पुत्र बनक आए हो यह मेरा सौभाग्य है मैं
  • 00:11:35
    आपसे कुछ प्रश्न करना चाहती हूं अपने जीवन
  • 00:11:38
    से संबंधित कृपा करके आप उत्तर दीजिएगा
  • 00:11:41
    भगवान बोली जो आज्ञा मा विराजो और सामने
  • 00:11:45
    बैठी है दे भूति माता और भगवान कपिल उनके
  • 00:11:48
    प्रश्नों का उत्तर दे रहे हैं माता दे
  • 00:11:51
    भूति ने पहला प्रश्न क्या पूछा ध्यान से
  • 00:11:55
    सुनना निर्व
  • 00:12:00
    नित राम
  • 00:12:02
    भूमन असद
  • 00:12:05
    [संगीत]
  • 00:12:07
    णा येन संभाव्य
  • 00:12:12
    माने
  • 00:12:15
    प्रपन्ना तम
  • 00:12:17
    [संगीत]
  • 00:12:20
    प्रभु दे भूति माता का पहला प्रश्न क्या
  • 00:12:25
    है हे नाथ
  • 00:12:29
    निर्व नितम भूमन असद इंद्रिय
  • 00:12:34
    तर्ष मैं अपनी असद इंद्रियों की इच्छाएं
  • 00:12:37
    पूरी करते करते करते करते हार चुकी हूं
  • 00:12:41
    लेकिन मेरी इच्छाएं पूर्णता पर नहीं पहुंच
  • 00:12:43
    पा रही है नाथ कृपा करके मुझे यह बताइए
  • 00:12:47
    ऐसा क्या करूं कि मेरी इच्छाएं पूर्ण हो
  • 00:12:50
    जाए और फिर कभी दोबारा ना
  • 00:12:52
    उठे प्रश्न समझ में आया नहीं आया ध्यान से
  • 00:12:57
    सुनो अच्छा यह बताओ हमारे शरीर में
  • 00:12:59
    इंद्रियां कितनी होती हैं कितनी इंद्रियां
  • 00:13:03
    होती हैं नहीं 10 पांच नहीं 10 इंद्रियां
  • 00:13:06
    होती
  • 00:13:08
    हैं पांच ज्ञान इंद्रिय और पांच कर्म
  • 00:13:13
    इंद्रिय पांच ज्ञान इंद्रिय कौन-कौन सी है
  • 00:13:16
    जिनसे हमको कुछ पता चलता है जिनसे हमको
  • 00:13:18
    कोई ज्ञान होता है वह पांच ज्ञानेंद्रिय
  • 00:13:20
    हैं राहुल केला के लोग आज बड़े सुंदर लग
  • 00:13:23
    रहे हैं कैसे पता चलता है पहली
  • 00:13:27
    ज्ञानेंद्रिय संगीत बहुत सुमधुर बज रहा है
  • 00:13:30
    कानों से दूसरी
  • 00:13:32
    ज्ञानेंद्र पुष्प की सुगंधी बड़ी मधुर है
  • 00:13:35
    तीसरी ज्ञानेंद्रिय नाक प्रसाद बहुत
  • 00:13:38
    बढ़िया बना है चौथी ज्ञानेंद्रिय
  • 00:13:40
    जीव आज मौसम में थोड़ी नमी है त्वचा पांच
  • 00:13:45
    ज्ञानेंद्रिय यह पांच हो गई ज्ञानेंद्रिय
  • 00:13:47
    पांच होती है कर्म इंद्रिय हाथ पैर मुख और
  • 00:13:53
    दो गुप्त
  • 00:13:55
    इंद्रिय यह होती है 10 इंद्रिया
  • 00:13:59
    अब यहां प्रश्न दे भूति माता कर रही है कि
  • 00:14:01
    हे नाथ मैं अपनी दसों इंद्रियों की
  • 00:14:03
    इच्छाएं पूरी करते-करते हार चुकी हूं आप
  • 00:14:05
    लोग खुद विचार करो सुबह उठने से लेकर के
  • 00:14:08
    रात्रि तक आप क्या करते हो गुलामी करते
  • 00:14:10
    हैं हम किनकी गुलामी अपनी इंद्रियों की
  • 00:14:12
    गुलामी आंख कहती है मुझे ऐसा दर्श दिखाओ
  • 00:14:15
    उसको दिखाने के लिए भागते हैं कान कहते
  • 00:14:17
    हैं मुझे अरिजीत सिंह के गाने सुनाओ तुरंत
  • 00:14:19
    सुनाने लग जाते
  • 00:14:21
    हैं नाक कहती है मुझे बढ़िया वाला परफ्यूम
  • 00:14:24
    सूंघना है तो वो लेने चले जाते हैं जीव
  • 00:14:26
    कहती है मुझे तो व वो खाना है छेना पड़ा
  • 00:14:31
    तुरंत लेकर आते हैं दुकान
  • 00:14:33
    से त्वचा कहती है बहुत गर्मी हो गई ऐसी
  • 00:14:36
    लगाओ कथा से आए हैं पूरे चिपचिपाहट हो रही
  • 00:14:39
    है पैर कहते हैं ऐसी चप्पल पहनाओ हाथ कहते
  • 00:14:42
    हैं ऐसा स्पर्श कराओ आप पूरे दिन करते
  • 00:14:45
    क्या है वो इन दसों इंद्रियों की
  • 00:14:47
    गुलामी इन्हीं की इच्छा हम पूरे जीवन भर
  • 00:14:50
    पूरी करते रहते हैं लेकिन एक फुल स्टॉप
  • 00:14:54
    कभी नहीं आता कि हमारी इंद्रियां कहती हो
  • 00:14:56
    कि बस अब हमें कुछ नहीं चाहिए ऐसा कभी
  • 00:14:58
    नहीं होता
  • 00:15:01
    कितने घरों में देखा गया अब घरों की छोड़ो
  • 00:15:04
    मेरी खुद की आदत ऐसी है अगर घर में भिंडी
  • 00:15:07
    बनी तो मैं भोजन करता ही नहीं दूसरी बनाओ
  • 00:15:10
    हम जीव के कितने आदि जीव कहती है मुझे यह
  • 00:15:13
    नहीं खाना वही खाना है तो वही बनवाते हैं
  • 00:15:15
    हम
  • 00:15:16
    लोग लेकिन बंधुओ आप कभी विचार करो सं पूरा
  • 00:15:20
    जीवन निकल जाता है इन इंद्रियों की इच्छा
  • 00:15:22
    पूरी करते करते कभी इन पर लगाम लगती है कि
  • 00:15:25
    नहीं दे भूति माता यही पूछ रही है नाथ मैं
  • 00:15:28
    हार गई इच्छा पूरी करते करते आंखों ने जो
  • 00:15:31
    मांगा कानों ने जो मांगा जीव ने जो मांगा
  • 00:15:33
    हाथों ने पैरों ने गुप्त इंद्रियों ने जो
  • 00:15:35
    मांगा सब दिया लेकिन कब तक दूं
  • 00:15:38
    मैं ऐसा कोई उपाय बताओ कि मेरी इच्छाएं
  • 00:15:41
    समाप्त हो जाए फिर जीवन में कभी कोई इच्छा
  • 00:15:44
    ना आवे ऐसा कोई मार्ग
  • 00:15:46
    बताओ हमारे पूज्य पिता जी महाराज कथा में
  • 00:15:49
    गाते
  • 00:15:52
    हैं देखना इंद्रियों के ना घोड़े
  • 00:15:56
    भग उनमें हरदम जो संयम के कोड़े पड़े अपने
  • 00:16:02
    रथ को सुमार्ग लगाते
  • 00:16:06
    चलो कृष्ण गोविंद गोपाल गाते
  • 00:16:11
    चलो सुख में फूलो मति दुख में भूलो मति
  • 00:16:16
    प्राण जाए मगर नाम भूलो मति काम की वासना
  • 00:16:22
    को मिटाते
  • 00:16:25
    चलो कृष्ण गोविंद गोपाल ते
  • 00:16:31
    चलो देख ना इंद्रियों के ना घोड़े भग
  • 00:16:34
    इनमें हरदम य संयम के कोड़े पड़े ये संयम
  • 00:16:39
    हमारे भीतर बिल्कुल नहीं
  • 00:16:44
    है संयम जीवन में कैसे आएगा आगे अष्टांग
  • 00:16:47
    योग के बारे में यहां बताया जाएगा उसमें
  • 00:16:49
    मैं बताऊंगा लेकिन अभी प्रश्न पर चले मेरी
  • 00:16:51
    इंद्रियों की इच्छाएं पूरी नहीं हो रही
  • 00:16:53
    कैसे पूर्ण करूं इनको मुझे
  • 00:16:57
    बताओ भगवान प्रति उत्तर देते हुए कहते हैं
  • 00:17:01
    मां चेत लवस
  • 00:17:05
    बंध
  • 00:17:07
    मुक्त चत
  • 00:17:10
    मनोम गुण सु सतम
  • 00:17:14
    बंध
  • 00:17:16
    रतम
  • 00:17:20
    मुक्त चेत लवस बंध मां आपको मैं एक निवेदन
  • 00:17:26
    करके बात कहूं मां बोली बोलो आप इंद्रियों
  • 00:17:29
    को दोष मत
  • 00:17:31
    दो आंख नाक कान आदि य सब इंद्रियों की कोई
  • 00:17:35
    गलती नहीं है इनको तो मैंने बनाया आंखों
  • 00:17:38
    को मैंने बनाया नाक आदि सब मैंने बनाई है
  • 00:17:41
    विचार करो आंख नहीं होती तो मेरा दर्शन
  • 00:17:44
    कभी होता कान नहीं होते तो मेरी कथा कभी
  • 00:17:46
    सुन पाती पैर नहीं होते तो मेरी
  • 00:17:49
    प्रदक्षिणा कैसे करती यह इंद्रिया है तो
  • 00:17:52
    मेरी भक्ति हो पाती है इंद्रिया नहीं होती
  • 00:17:54
    तो फिर आप कुछ कर ही नहीं
  • 00:17:56
    पाती इसलिए मां जो इंद्रियां मेरी
  • 00:17:59
    प्राप्ति कराती हैं वो इंद्रियां असद कैसे
  • 00:18:01
    हो सकती
  • 00:18:02
    हैं इंद्रियों को दोष मत दो मां बोली तो
  • 00:18:07
    फिर किसको दोष दूं बोले यह इंद्रियां तो
  • 00:18:10
    है आपकी एक प्रकार से ऐसा समझो भगवान कह
  • 00:18:13
    रहे हैं यह 10 इंद्रियां हमारी 10
  • 00:18:15
    पत्नियां
  • 00:18:16
    हैं यह दसों इंद्रिया हमारी 10 पत्नियां
  • 00:18:19
    है पत्नी कौन जो अपनी इच्छा पूरी करवावे
  • 00:18:21
    पति से और पति कौन जो अपनी इच्छा पूरी
  • 00:18:23
    करवावे पत्नी से तो ये दसों हमारी पति
  • 00:18:26
    पत्नियां हैं ये अपनी इच्छाएं पूरी करवाते
  • 00:18:28
  • 00:18:29
    लेकिन इनका ब्याह तो हमारे साथ हुआ लेकिन
  • 00:18:31
    यह प्रेम किसी और से करती
  • 00:18:33
    हैं मां बोली मैं समझी नहीं बोले मां देखो
  • 00:18:36
    आंख नाक कान जीव हाथ पैर त्वचा आदि य
  • 00:18:39
    समस्त इंद्रिया है तो आपकी लेकिन यह कहना
  • 00:18:43
    किसका मानती है मन का चित्त का बंधन का
  • 00:18:47
    कारण इंद्रिया नहीं है मां बंधन का कारण
  • 00:18:50
    आपका मन है आपका चित्त
  • 00:18:52
    है हाथ थोड़ी कभी कहते हैं कि मुझे ऐसा
  • 00:18:55
    स्पर्श कराओ मन कहता है आंख थोड़ी कहती है
  • 00:18:58
    कि मुझे ऐसा दृश्य दिखाओ मन कहता है पैर
  • 00:19:01
    थोड़ी कहते हैं कि मुझे ऐसी चप्पल पहनाओ
  • 00:19:03
    मन कहता है अगर पैर कहते कि हमको ऐसी
  • 00:19:07
    ब्रांड वाली चप्पल ही पहननी है तो कितने
  • 00:19:09
    लोग तो वो कौन सी चप्पल होती है ब्लू
  • 00:19:11
    वाली हवाई चप्पल कई लोग तो उसमें भी
  • 00:19:14
    प्रसन्न रहते हैं और कई लोग तो चप्पल
  • 00:19:16
    पहनते भी नहीं है पैर इच्छा नहीं मन सबके
  • 00:19:19
    अलग-अलग है और सबके मन की इच्छाएं अलग-अलग
  • 00:19:21
    है इसलिए मैया बंधन के कारण इंद्रिया नहीं
  • 00:19:24
    है बंधन का कारण मन
  • 00:19:26
    है आप इंद्रियों को दोष मत
  • 00:19:31
    मां बोली मैं आपकी बात समझ गई मन बंधन का
  • 00:19:34
    कारण है तो अब यह बताओ मन कैसे
  • 00:19:37
    सुधरेगा बोले मां यदि मन को सुधारना है तो
  • 00:19:41
    मन के एनवायरमेंट को सुधारो एनवायरमेंट को
  • 00:19:45
    सुधारने का मतलब मन जिन जिन वस्तुओं का
  • 00:19:47
    संग करता है उन संग को सुधारो और दूसरा मन
  • 00:19:51
    पर थोड़ा संयम करो संग सुधरने से सब सुधर
  • 00:19:55
    जाएगा मन का संग सुधारो
  • 00:19:59
    मन का संग किससे करवाना है बोले कि यह
  • 00:20:02
    पांच गुण जिस व्यक्ति में हो ऐसे
  • 00:20:05
    व्यक्तियों का संग करना प्रारंभ कर दो मन
  • 00:20:07
    अपने आप सुधर जाएगा और यह पांच गुण
  • 00:20:10
    कौन-कौन से हैं बहुत ध्यान से सुनना
  • 00:20:13
    तिव कारु
  • 00:20:16
    का शहिद सर्व
  • 00:20:19
    देना अजात
  • 00:20:22
    सत्र
  • 00:20:24
    शांता साधव साधु भूषण
  • 00:20:29
    यह पांच गुण जिसमें हो मां आप उसका संग
  • 00:20:33
    करना शुरू कर दो मन सुधर
  • 00:20:36
    जाएगा पांच गुण कौन-कौन से हैं पहला ति शव
  • 00:20:42
    पेशेंस जिस व्यक्ति के अंदर पेशेंस हो जिस
  • 00:20:46
    व्यक्ति के अंदर धैर्य
  • 00:20:49
    हो और धैर्य को एक और भाषा एक और शब्द दे
  • 00:20:52
    दूं तो सहन शक्ति हो ऐसे व्यक्ति का संग
  • 00:20:56
    करो
  • 00:20:59
    जिनके अंदर सहन शक्ति नहीं है जिनके अंदर
  • 00:21:01
    धैर्य नहीं है ऐसे लोगों का संग करना बंद
  • 00:21:03
    कर दो और ऐसा व्यक्ति घर का ही क्यों ना
  • 00:21:06
    हो उसके पास कम उठा बैठा करो नहीं तो उसके
  • 00:21:09
    संग संग आप भी बिना बड़ी जोर की ताली
  • 00:21:13
    बजी दो चारों नेही बजाई जो भुगत भोगी
  • 00:21:16
    होंगे उनने बजाई
  • 00:21:17
    है पेशेंस जिसके अंदर हो उसका संग
  • 00:21:21
    करो धैर्य वंतमूरी
  • 00:21:28
    संग करोगे जिसके अंदर धैर्य नहीं है उसका
  • 00:21:32
    संग
  • 00:21:33
    छोड़ो तो पहला गुण
  • 00:21:37
    तिव दूसरा गुण मां जिसका हम संग करें उसके
  • 00:21:41
    अंदर होना चाहिए कारु का कारु का मतलब
  • 00:21:44
    करुणा करुणा मतलब
  • 00:21:47
    दया सब पर दया
  • 00:21:50
    करे किसी के प्रति भी निर्दयता का भाव ना
  • 00:21:53
    रखे सबके प्रति जिसके अंदर दया का भाव है
  • 00:21:56
    ऐसे व्यक्ति का संग हमको करना है तो पहला
  • 00:21:59
    गुण सहनशीलता दूसरा गुण दया और तीसरा गुण
  • 00:22:03
    शोहिद सर्व देहि
  • 00:22:06
    नाम समस्त देह धारियों के प्रति जो शोहिद
  • 00:22:11
    है शोहिद मतलब अच्छा चाहने वाला वेल विशर
  • 00:22:16
    सबका केवल मानवों का ही अच्छा चावे अपने
  • 00:22:19
    परिवार का ही अच्छा चावे अपना ही अच्छा
  • 00:22:21
    चावे ऐसा नहीं जो सबका भला चाहता हो ऐसे
  • 00:22:25
    व्यक्ति का संग करना है
  • 00:22:29
    रवींद्रनाथ
  • 00:22:31
    टैगोर उनको एक बार नेशनल अवार्ड
  • 00:22:34
    मिला तो उनको जब नेशनल अवार्ड मिला तो
  • 00:22:37
    उनको सब लोगों ने आकर के बधाइयां
  • 00:22:40
    दी लेकिन उनके घर के ठीक सामने रहने वाला
  • 00:22:44
    पड़ोसी नहीं
  • 00:22:46
    आया तीन पा जीवन में ऐसे आते हैं जो कि
  • 00:22:49
    बहुत मुश्किल से खुश होते हैं पहले
  • 00:22:53
    पड़ोसी दूसरे पत्रिक भाई बंधु मतलब चाचा
  • 00:22:57
    ताऊ के बच्चे
  • 00:22:59
    और तीसरे पत्नी य तीन जल्दी खुश नहीं होते
  • 00:23:04
    बाकी मेरा अनुभव कम है तीसरे वाले में आप
  • 00:23:06
    लोगों का ज्यादा
  • 00:23:08
    है अच्छा एक और पा जोड़ लो पति वो भी पा
  • 00:23:12
    है लेकिन पति जल्दी राजी हो जाते हैं
  • 00:23:15
    पत्नियां नहीं
  • 00:23:16
    होती तो यह तीन प बहुत जल्दी खुश नहीं
  • 00:23:19
    होते पड़ोसी पत्रिक भाई बंधु और
  • 00:23:24
    पत्नी तो रवींद्रनाथ टैगोर जी का पड़ोसी
  • 00:23:28
    नहीं आए
  • 00:23:29
    वो टेढ़ी नजर से अपनी खिड़की में से दिखता
  • 00:23:30
    था भीड़ लगी है रविंद्रनाथ टैगोर जी के घर
  • 00:23:32
    के बाहर वो पूरे दिन ऐसे ही बस नाक मुंह
  • 00:23:35
    मोड़ता रहता था लेकिन एक दिन टैगोर जी ने
  • 00:23:39
    सोचा कि सब लोग मुझे आए बधाई देने लेकिन
  • 00:23:42
    मेरा पड़ोसी नहीं आया उन्होंने अपना
  • 00:23:45
    अवार्ड उठाया और वह खुद गए पड़ोसी के यहां
  • 00:23:48
    और पड़ोसी के यहां जाकर गेट खटखटाया जैसे
  • 00:23:51
    ही उसने गेट खोला तो रवींद्रनाथ टैगोर जी
  • 00:23:53
    ने उल्टा उसको बधाई थी बोले आपको
  • 00:23:55
    बहुत-बहुत बधाई
  • 00:23:56
    हो बोला अरे आप आप यहां क्यों आए अरे आप
  • 00:24:00
    मैं मैं आने ही वाला था मैं सोच ही रहा था
  • 00:24:02
    कि समय मिलते ही आपको बधाई देने आऊंगा
  • 00:24:04
    लेकिन आप आ गए आपने क्यों कष्ट उठाया
  • 00:24:07
    सामने मुंह पर तो सब ऐसे ही हो जाते हैं
  • 00:24:09
    ना टैगोर जी ने उनको प्रणाम कहते हुए कहा
  • 00:24:12
    कि मैं आपको धन्यवाद कहने आया हूं क्यों
  • 00:24:15
    क्योंकि आप मेरे पड़ोसी हैं मैं नित्य
  • 00:24:17
    उठकर के जब अपनी बालकनी में आता हूं तब आप
  • 00:24:19
    अपने घर में मुझे कुछ करते हुए दिखते हैं
  • 00:24:22
    मतलब मेरे दिन की शुरुआत आपको देख कर के
  • 00:24:24
    होती है इसीलिए मेरा दिन इतना शुभ जाता है
  • 00:24:26
    तो मेरे को आज जो भी उप मिली उसम अधिकार
  • 00:24:30
    उसमें कृपा आपकी है इसलिए मैं आपको
  • 00:24:32
    धन्यवाद देने आया हूं ऐसे ऐसा पिघला
  • 00:24:35
    पड़ोसी महाराज जीवन भर मुरीद बनक रहा
  • 00:24:38
    उनका तो यह किसके लक्षण
  • 00:24:41
    है शोहिद सर्व देही नाम हम लोग हमेशा ईगो
  • 00:24:45
    में रहते मैं क्यों जाऊ मैं क्यों बोलू
  • 00:24:46
    मैं क्यों करू व वो क्यों नहीं करता है वह
  • 00:24:49
    आवे वह बोले वह करे अरे झुक जाओ नमंति फनो
  • 00:24:54
    वृक्षा नमंति गुणन जना स्कूल में पढ़ा था
  • 00:24:57
    कि नहीं शुष्क काष्ठा नि मूर्खा सच नान
  • 00:25:00
    मंती कदाचन पेड़ वही झुकता है जिसमें फल
  • 00:25:04
    होते हैं लेकिन शुष्क काष्ट सूखा जो लकड़ा
  • 00:25:08
    होता है वो कभी झुकता नहीं क्योंकि उस परे
  • 00:25:10
    फल नहीं होते और जब आंधी आती है तो झुके
  • 00:25:12
    हुए वृक्ष खड़े रहते हैं और जो तने खड़े
  • 00:25:14
    रहते हैं सीधे-सीधे आंधी आते ही गिर जाते
  • 00:25:16
    हैं टूट के नीचे इसलिए भैया सदैव झुके रहो
  • 00:25:20
    और खुद को झुकना नहीं आता तो फिर जो झुक
  • 00:25:23
    कर के चलते हैं उनका संग करो उनके साथ
  • 00:25:26
    रहो तो पहला गुण
  • 00:25:29
    सहनशीलता दूसरा गुण दया करुणा तीसरा गुण
  • 00:25:33
    सबका हित स सबका वेल विशर ऐसे व्यक्तियों
  • 00:25:36
    का संग करो चौथा गुण क्या है अजात
  • 00:25:41
    सत्र चौथा गुण है जिसका कोई शत्रु ना
  • 00:25:47
    हो जिसकी किसी से शत्रुता ना हो लोग भले
  • 00:25:51
    उसको शत्रु मानते हो लेकिन वह किसी को
  • 00:25:53
    अपना शत्रु ना मानता
  • 00:25:55
    हो जिसके अंदर किसी के प्रति यह भाव नहीं
  • 00:25:57
    कि य छोटा य ऐसा य वैसा ऐसी कोई भावना ना
  • 00:26:01
    हो अजात सत्र यह चार गुण हो गए और अंतिम
  • 00:26:06
    और सबसे विशेष गुण
  • 00:26:09
    शांता जो बहुत कम बोलता हो बहुत शांत रहता
  • 00:26:13
    हो ऐसे पांच गुण वाले लोगों का संग करना
  • 00:26:18
    चाहिए आपने यदि य पांच गुण वाले लोगों का
  • 00:26:21
    संग किया या यह पांच गुण आपने अपने भीतर
  • 00:26:23
    ले आए तो आपका मन सुधर जाएगा और मन सुधरती
  • 00:26:26
    इंद्रिया सुधर जाएंगी
  • 00:26:28
    भगवान ने कितनी सहजता से बता दिया अच्छा
  • 00:26:31
    ये पांच गुणों में सबसे कठिन कौन सा है
  • 00:26:32
    बताओ जो अभी हमने बताए तिव कारु का शहिद
  • 00:26:37
    सर्व देही नाम अजात सत्र शांता साधव साधु
  • 00:26:41
    भूषण इन पांचों में सबसे कठिन कौन सा
  • 00:26:43
    है
  • 00:26:46
    शांता मौन रहने वाला आजकल लोग मौन नहीं
  • 00:26:51
    रहते हां एक चीज हो गई है खुद कम बोलते
  • 00:26:54
    हैं अंगूठे ज्यादा बोलते खुद कम बोलते हैं
  • 00:26:57
    अंगूठे ज्यादा बोलते हैं
  • 00:26:59
    बहन भाई में लड़ाई हो जाए एक दूसरे
  • 00:27:01
    अलग-अलग कमरे में जाकर एक दूसरे को
  • 00:27:02
    गालियां लिख केर भेज देते हैं उल्टी सीधी
  • 00:27:04
    बातें लिख केर भेज देते हैं मुंह से नहीं
  • 00:27:06
    बोलेंगे लेकिन मैसेज कर देते
  • 00:27:08
    हैं
  • 00:27:10
    शांत शांत
  • 00:27:13
    रहो या फिर ऐसा कहूं तो जब बोलो तब हरि
  • 00:27:18
    कथा बोलो जब बोलो तब अच्छा
  • 00:27:21
    बोलो मौन एक आभूषण है
  • 00:27:25
    बंधुओं जितना मौन रहोगे जितना कम बोलोगे
  • 00:27:29
    उतने शब्दों में भारीपन
  • 00:27:31
    आएगा उतना तुम्हारी बातों का प्रभाव होगा
  • 00:27:35
    और जितना ज्यादा बोलोगे जितना चब चपड़
  • 00:27:38
    मुंह चलाते रहोगे उतनी बात की गरिमा नष्ट
  • 00:27:40
    होती चली जाती
  • 00:27:41
    है इसलिए मौन रहना
  • 00:27:44
    सीखो रात्रि में सोते समय तो सब मौन रहते
  • 00:27:47
    हैं लेकिन दिन में जागते हुए भी जो मौन
  • 00:27:49
    रहे उसके अंदर ही अंदर चिंतन चलता रहे ऐसा
  • 00:27:52
    व्यक्ति जब मुंह खोलेगा ना तो सामने वाले
  • 00:27:54
    को लगेगा मानो जैसे पुष्प वरसा दिए हो
  • 00:27:56
    इसने
  • 00:27:59
    ज्यादा बोलने वाला व्यक्ति भगवान को प्रिय
  • 00:28:01
    नहीं एक बच्चा मुझसे कथा सुन रहा था तो
  • 00:28:04
    बोला महाराज जी तो तो आप तो बिल्कुल प्रिय
  • 00:28:06
    नहीं होंगे भगवान के क्यों चार घंटा नॉन
  • 00:28:09
    स्टॉप बोलते ही रहते हो मैंने कहा नहीं
  • 00:28:11
    भाई संसारी चर्चा ना करे बोले तब हरि कथा
  • 00:28:15
    तो बंधुओ इन बातों को जीवन में उतारो यह
  • 00:28:18
    पांच गुण या तो अपने भीतर लाओ या फिर इन
  • 00:28:20
    पांच गुणों से युक्त व्यक्ति का संग करने
  • 00:28:23
    लग जाओ मन अपने आप शांत हो जाएगा
  • 00:28:29
    किसी दिन यदि आपकी जो है डोसा खाने की
  • 00:28:32
    इच्छा हो रही है लेकिन घर में बनी करेले
  • 00:28:35
    की सब्जी क्या करें तो तुरंत गाड़ी उठा कर
  • 00:28:38
    के जो डोसा खाने चले जाते हैं ऐसे लोगों
  • 00:28:40
    की ही इंद्रियां उनको बर्बाद करती हैं
  • 00:28:42
    क्या करना है जीव की इच्छा हो रही है डोसा
  • 00:28:45
    खाना है लेकिन आप तो सीधे जाओ रसोई घर में
  • 00:28:48
    उठाई रोटी उसमें करेला लगाया रोल बनाया खा
  • 00:28:50
    गए इस प्रकार जबरदस्ती अपनी इंद्रियों को
  • 00:28:54
    हट पूर्वक उनकी इच्छाओं को पूरा ना करने
  • 00:28:57
    पर प्र कर दो एक दिन ऐसा आएगा इंद्रियों
  • 00:29:00
    की इच्छा समाप्त हो जाएंगी फ तुम जो दोगे
  • 00:29:02
    जैसा रखोगे जैसे रखो इंद्रिया वैसे
  • 00:29:05
    रहेंगी मन की तरंग मार लो बस हो गया भजन
  • 00:29:13
    हो मन की तरंग
  • 00:29:18
    मारलो बस हो गया भजन बस यही भजन है मन में
  • 00:29:23
    जितनी इच्छाएं प्रकट होती है ठाकुर जी के
  • 00:29:26
    अलावा
  • 00:29:28
    संसार से मिलने वाली जितनी भी इच्छाएं
  • 00:29:31
    प्रकट होती है मन में उन सब पर संयम कर लो
  • 00:29:35
    उन सबको दबा लो उन सबको पूरा मत करो बस
  • 00:29:38
    इतना मात्र करना ही आपका भजन हो जाएगा हो
  • 00:29:42
    मन की तरंग मार लो बस हो गया भजन हो मन की
  • 00:29:51
    तरंग मार दो बस हो गया भजन
  • 00:29:58
    आदत बुरी सुधार लो आदत बुरी सुधार लो आदत
  • 00:30:07
    बुरी सुधार
  • 00:30:10
    लो आदत बुरी सुधार लो बस हो गया
  • 00:30:18
    भजन मन की तरंग मार लो बस हो गया भजन हो
  • 00:30:28
    की तरंग मार लो बस हो गया
  • 00:30:35
    भजन करताल थोड़ी बजा लो बस हो गया
  • 00:30:42
    भजन आदत बुरी सुधार लो बस हो गया श्री
  • 00:30:50
    राधा रमण लाल की जय हो
  • 00:30:54
    [संगीत]
  • 00:31:03
    [संगीत]
  • 00:31:09
    [संगीत]
  • 00:31:17
    [संगीत]
  • 00:31:24
    श्री जगन्नाथ महाप्रभु की जय हो
  • 00:31:28
    [संगीत]
  • 00:31:41
    आए हो तुम कहां से और जा रहे
  • 00:31:49
    कहां आए हो तुम कहां से और जा रहे कहां
  • 00:31:58
    आए हो तुम कहां से और जा रहे
  • 00:32:05
    कहां आए हो तुम कहां से और जा रहे
  • 00:32:13
    कहां मन से सही विचार लो मन से सही विचार
  • 00:32:21
    लो हां मन से सही
  • 00:32:25
    विचार लो मन से सही विचार हां भैया बस हो
  • 00:32:31
    गया भजन हो मन से सही विचार लो मस हो गया
  • 00:32:40
    भजन ओ मन की तरंग मार लो बस हो गया
  • 00:32:49
    भजन तरंग
  • 00:32:52
    मारलो बस हो गया
  • 00:32:56
    भजन आदत बुरी सुधार लो आदत बुरी सुधार लो
  • 00:33:04
    आदत बुरी सुधार दो आदत बुरी सुधार दो बस
  • 00:33:12
    हो गया
  • 00:33:14
    भन मन की तरंग मार लो बस हो गया
  • 00:33:21
    भजन भन की तरंग मार दो बस हो गया
  • 00:33:27
    [संगीत]
  • 00:33:29
    देखो आज इन सबको कृष्ण जन्मोत्सव की मस्ती
  • 00:33:32
    चढ़ रही है अभी से हां देखो अभी से ही
  • 00:33:35
    कितना मशीन बढ़िया गर्म करके आए हैं
  • 00:33:38
    बढ़िया है अच्छी बात है बैठे हुए जो लोग
  • 00:33:40
    हैं व भी करताल बजा के गाओ भाव से श्री
  • 00:33:43
    जगन्नाथ महाप्रभु की
  • 00:33:46
    [संगीत]
  • 00:34:12
    कोई तुम्हें बुरा
  • 00:34:15
    कहे सुनकर करो
  • 00:34:19
    क्षमा कोई तुम्हें बुरा कहे सुनकर करो
  • 00:34:25
    क्षमा
  • 00:34:27
    नृत्य करो करताल बजाओ लेकिन शब्द भी सुनो
  • 00:34:30
    क्या है कोई तुम्हें बुरा
  • 00:34:34
    कहे सुनकर करो
  • 00:34:38
    क्षमा कोई तुम्हें बुरा कहे सुनकर करो
  • 00:34:45
    क्षमा अपनी वाणी का स्वर संभाल लो अपनी
  • 00:34:50
    वाणी का स्वर संभाल लो हो अपनी वाणी का
  • 00:34:55
    स्वर संभाल लो अपनी वाणी का स्वर संभाल लो
  • 00:35:01
    बस हो गया भजन हो वाणी का स्वर संभाल लो
  • 00:35:09
    बस हो गया
  • 00:35:11
    भजन मन की तरंग मार लो बस हो गया भजन हो
  • 00:35:20
    की तरंग मार दो बस हो गया भजन
  • 00:35:27
    बरी सुधार लो आदत बुरी सुधार लो आदत बुरी
  • 00:35:35
    सुधार लो आदत बरी सुधार लो बस हो गया
  • 00:35:43
    भजन मन की तरंग मार लो बस हो गया भजन हो
  • 00:35:50
    मन की तरंग पार दोस हो गया
  • 00:35:56
    भजन गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो गोविंद
  • 00:36:01
    बोलो हरि गोपाल बोलो गोविंद बोलो हरि
  • 00:36:06
    गोपाल बोलो गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो
  • 00:36:10
    श्री राधा रमण हरि गोविंद बोलो राधा रमण
  • 00:36:15
    हरि गोविंद बोलो श्री राधा रमण हरि गोविंद
  • 00:36:20
    बोलो राधा रमण हरि गोविंद बोलो हे गोविंद
  • 00:36:25
    बोलो हरि गोपाल बोलो
  • 00:36:28
    गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो गोविंद बोलो
  • 00:36:32
    हरि गोपाल बोलो गोविंद बोलो हरि गोपाल
  • 00:36:37
    बोलो श्री राधा रमण हरि गोविंद बोलो राधा
  • 00:36:41
    रमण हरि गोविंद श्री राधा रमण हरि गोविंद
  • 00:36:46
    बोलो राधा रमण हरि गोविंद बोलो हे गोविंद
  • 00:36:51
    बोलो गोपाल बोलो गोविंद बोलो गोपाल बोलो
  • 00:36:57
    गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो गोविंद बोलो
  • 00:37:01
    हरि गोपाल बोलो श्री राधा रमण हरि गोविंद
  • 00:37:06
    बोलो राधा रमण हरि गोविंद बोलो श्री राधा
  • 00:37:10
    रमण हरि गोविंद बोलो राधा रमण हरि गोविंद
  • 00:37:15
    बोलो राधा रमण हरि गोविंद बोलो राधा रमण
  • 00:37:20
    हरि
  • 00:37:21
    [संगीत]
  • 00:37:23
    गोविंद मन की तरंग मार
  • 00:37:28
    बस हो गया
  • 00:37:30
    [संगीत]
  • 00:37:32
    भजन भगवान कपिल ने बताया
  • 00:37:35
    मां मन को सुधारना है और मन सुधरेगा संग
  • 00:37:39
    सुधरने
  • 00:37:40
    से बंधुओ एक बात सदा याद
  • 00:37:44
    रखना नर्क जाने वालों में एक नाम उनका भी
  • 00:37:47
    है जो दूषित लोगों का संग करते
  • 00:37:52
    हैं नर्क कौन जाता है लिख
  • 00:37:56
    लीजिएगा ये गुण जिनम वो नर्क जाने
  • 00:38:00
    वाले कौन-कौन से गुण
  • 00:38:09
    है कौन-कौन से गुण है अत्यंत कोप कटु काच
  • 00:38:13
    वाणी दरिद्र ताम च स्वजन शु वैरम नीच
  • 00:38:18
    प्रसंग कुल हीन सेवा चिन्हा नि देहे नरकम
  • 00:38:22
    गता नाम नरक जाने वालों में यह लक्षण होते
  • 00:38:25
    हैं पहला
  • 00:38:28
    अत्यंत कोप भयंकर
  • 00:38:30
    गुस्सा दूसरा कटुका च
  • 00:38:33
    वाणी जिनकी वाणी बड़ी कड़वी है जब बोलते
  • 00:38:38
    हैं तो सामने वाला बेचारा कानों से खून
  • 00:38:40
    निकालने वाला ही होता है ऐसी वाणी जो
  • 00:38:42
    बोलते हैं और एक और बात कहूं कई लोगों को
  • 00:38:44
    मैंने देखा बात बात पर जो है गाली दे कर
  • 00:38:47
    के बोलते हैं फ उनसे बोलो भैया ऐसे मत
  • 00:38:49
    बोलो अरे क्या कर आदत हो गई है हमारी यह
  • 00:38:51
    ये कटुका च
  • 00:38:53
    वाणी तो पहले लोग जो नरक जाते हैं उनमें
  • 00:38:56
    गुण है भयंकर गुस्सा
  • 00:38:58
    दूसरा कटुका च वाणी तीसरा दरिद्र ताम च
  • 00:39:03
    दरिद्र किसको कहते हैं दरिद्र कहते हैं जो
  • 00:39:06
    असंतोष है जो सेटिस्फाइड नहीं रहता कभी भी
  • 00:39:09
    हमेशा खुद को असंतोष समझता है कितना भी दे
  • 00:39:12
    दो कितना भी पैसा कमा ले कितना भी घर बना
  • 00:39:14
    ले कितना भी कुछ कर ले फिर भी उसको यह
  • 00:39:17
    लगता है अरे यह पड़ोसी पर ज्यादा है उस पर
  • 00:39:19
    ज्यादा है ठीक है आगे बढ़ने की इच्छा होनी
  • 00:39:23
    चाहिए लेकिन समय पर जो है उसमें संतोष करे
  • 00:39:27
    जो दरिद्र है जो असंतोष है उसको भी नरक
  • 00:39:30
    जाना पड़ता है तो अत्यंत कोप कटुका चवानी
  • 00:39:35
    दरिद्रता स्वज सुर चौथा गुण क्या है जो
  • 00:39:40
    अपने ही स्वजनों से बैर करता है वह नरक
  • 00:39:45
    जाएगा स्वजन वैरम और पांचवा गुण नीच
  • 00:39:50
    प्रसंग उनका नाम तो लिया ही नहीं गया जो
  • 00:39:52
    खाते पीते उल्टा सीधा उनका तो नाम ही नहीं
  • 00:39:56
    है य पर यहां कह र नीच प्रसंग उनकी वो तो
  • 00:40:00
    बहुत अब्बल कोटि वाले पापी हैं लेकिन जो
  • 00:40:03
    व्यक्ति खाता नहीं है गलत पीता नहीं है
  • 00:40:05
    गलत लेकिन हां वह जिनके संग उठता बैठता है
  • 00:40:07
    वह सब खाते पीते हैं तो वह तो नरक जाने
  • 00:40:10
    वाले हैं लेकिन उनका जो संग करेगा हम तो
  • 00:40:14
    डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे वह तो
  • 00:40:17
    जाएंगे ही जाएंगे नरक में लेकिन जब आप
  • 00:40:19
    पहुंचो ग नरक में आप कहोगे मैंने तो कुछ
  • 00:40:21
    भी गलत नहीं किया था हे यमराज जी मुझे
  • 00:40:23
    क्यों नरक में बुलाया आपने तो यमराज
  • 00:40:25
    कहेंगे तूने इसका संग क्यों किया इसके साथ
  • 00:40:28
    क्यों बैठा तू आप कहोगे भाई उसकी रुचि है
  • 00:40:31
    वह स्वतंत्र है कुछ भी खाए पिए मुझे उससे
  • 00:40:33
    क्या मैंने केवल उसका संग किया यमराज जी
  • 00:40:36
    कहते नहीं दूषित लोगों का संग नहीं करना
  • 00:40:39
    है यदि संग रहोगे तो उनको सुधारो और नहीं
  • 00:40:42
    सुधार सकते तो संग भी
  • 00:40:44
    छोड़ो एक जगन्नाथ जी के भक्त थे उनकी कथा
  • 00:40:47
    याद आ गई उनका नाम था अंगद जी क्या नाम था
  • 00:40:52
    एक तो जब से सामने जगन्नाथ जी लग गए हैं
  • 00:40:54
    मेरे तब से मेरे को मन होता है कि मैं
  • 00:40:56
    इनके भक्तो की खूब कथा सुनाऊ और उनके ठीक
  • 00:40:59
    बगल में हमारे गिरधर लाल जी भी बैठे उनका
  • 00:41:02
    स्वरूप भी इतना सुंदर यह बहुत अच्छा काम
  • 00:41:05
    किया आपने सामने दोनों लगवा दिए कभी-कभी
  • 00:41:07
    आप लोग बातचीत करने लगते हो तो मैं उन्हीं
  • 00:41:09
    को देख लेता हूं चलो वो तो देखो कितनी
  • 00:41:11
    तत्परता से कथा सुनते कभी देखा बलभद्र
  • 00:41:13
    सुभद्रा आपस में बात कर रहे हो इधर ही
  • 00:41:15
    देखते हैं तो एक जगन्नाथ जी के भक्त थे
  • 00:41:19
    उनका नाम था
  • 00:41:21
    अंगद अंगद जी राजस्थान के एक राजा के
  • 00:41:26
    महामंत्री थे
  • 00:41:29
    भक्ति से संतों से कथाओं से तो
  • 00:41:32
    वह दूरी बनाकर रखते थे कभी नहीं जाते थे
  • 00:41:37
    लेकिन उन अंगज जी का विवाह जिस कन्या से
  • 00:41:40
    हुआ था वह परम सुंदरी थी लेकिन उसके अंदर
  • 00:41:44
    गुण यह था कि वह बहुत भक्ति करती थी खूब
  • 00:41:46
    सत्संग करती थी कथाओं में जाती थी ठाकुर
  • 00:41:48
    जी की सेवा करती
  • 00:41:54
    थी अंगद जी के जीवन में यही सफलता थी यही
  • 00:41:58
    उनके जीवन में बहुत बड़ी उपलब्धि थी कि
  • 00:41:59
    उनकी पत्नी भक्त थी और वह बिल्कुल विपरीत
  • 00:42:03
    थे कथा आदि सत्संग आदि कहीं हो भी रहा
  • 00:42:06
    होता था तो चार गालियां बाहर से देक जाते
  • 00:42:08
    थे ऐसे थे अंगज
  • 00:42:09
    जी लेकिन अपनी पत्नी से इतना प्रेम करते
  • 00:42:12
    थे कि कभी-कभी पत्नी की खुशी के लिए मंदिर
  • 00:42:15
    आदि चले जाते थे पत्नी के प्रति उनका बड़ा
  • 00:42:19
    रुझान था बड़ा झुकाव था तो एक
  • 00:42:23
    दिन अंगद जी अपने सेनापति थे जी के तो
  • 00:42:27
    अपने काम में व्यस्त थे उनके पत्नी के
  • 00:42:30
    गुरु जी अपने संत मंडली के साथ में एक दिन
  • 00:42:33
    उनके घर आ गए पत्नी ने सुंदर आसन बिछाया
  • 00:42:36
    बढ़िया व्यवस्था करके भोजन प्रसाद पवाया
  • 00:42:38
    भोजन प्रसाद पाने के बाद उनके जो गुरुजी
  • 00:42:41
    थे उन्होंने कथाएं सुनाना प्रारंभ किया
  • 00:42:43
    बीच-बीच में कीर्तन होता इतना बढ़िया आनंद
  • 00:42:46
    से उनकी पत्नी आनंद ले रही थी सत्संग का
  • 00:42:48
    इतने में ही अंगद जी का घर पर आना हो गया
  • 00:42:51
    जैसे ही अंगद जी घर पर आए तो आते ही
  • 00:42:53
    उन्होंने जैसे ही देखा तम वर्ण हो गया लाल
  • 00:42:55
    लाल आंखें पड़ गई बोले ये संत जन बाबा जी
  • 00:42:59
    सब लोग मेरी बिना आज्ञा के मेरे घर में
  • 00:43:01
    घुस कर के और यह कथा बथा करने लग रहे
  • 00:43:04
    हैं जाकर के कलश लश रखे थे सब फेंक दि
  • 00:43:07
    अंगत जी ने किसने अनुमति दी आपको अंदर आने
  • 00:43:09
    की और यह मेरा घर है मेरी आज्ञा के बिना
  • 00:43:12
    आप यहां पर कथा कैसे कर रहे हो चिल्लाने
  • 00:43:15
    लगा पत्नी बार-बार कहे संकोच के कारण हम
  • 00:43:18
    बाद में बात करते हैं ना मेरे गुरुजी आए
  • 00:43:20
    हैं मत कहो तुम शांत रहो आज तक तुम्हारी
  • 00:43:22
    हर बात मानी मैंने लेकिन यह सब बर्दाश्त
  • 00:43:24
    नहीं है घर में कथा हो रही है संत जन आ गए
  • 00:43:26
    हैं य सब बाबाजी जी लोग आ गए भगाओ इनको
  • 00:43:28
    यहां
  • 00:43:30
    से आओ नहीं आदर नहीं नहीं नैनन प्रेम
  • 00:43:34
    तुलसी तहा ना जाइए तुलसीदास जी कहते हैं
  • 00:43:37
    वहां नहीं जाना चाहिए संत जन बोले देवी हम
  • 00:43:40
    फिर कभी आ जाएंगे अभी जाते हैं और अंगत जी
  • 00:43:43
    की पत्नी रुदन करती रही और सब संत जन वहां
  • 00:43:46
    से चले गए बाद में अंगत जी का गुस्सा
  • 00:43:49
    थोड़ा शांत हुआ पत्नी के पास गए बोले सुनो
  • 00:43:51
    तो सही बोले कि मुख मत दिखाना अपना
  • 00:43:54
    मुझे और तुम क्या मुख नहीं दिखाओ उसी दिन
  • 00:43:57
    घूंघट कर लिया बोले मैं आज मैं शपथ लेती
  • 00:44:00
    हूं जो संतों का बैरी है जो हरि जनों का
  • 00:44:04
    बैरी है जो श्रीनाथ जी के जगन्नाथ जी के
  • 00:44:07
    भक्तों से बैर करता है मेरा दुर्भाग्य की
  • 00:44:09
    ऐसा पति मुझे मिला लेकिन मुझे लगता था कि
  • 00:44:12
    तुम सुधर जाओगे तुम्हारे जीवन में भक्ति आ
  • 00:44:14
    जाएगी ठीक है तुम नहीं करते मुझे उससे कोई
  • 00:44:16
    रुचि नहीं है तुम नहीं करो लेकिन मैं करती
  • 00:44:18
    हूं मुझे तो करने दो लेकिन आज तुमने उसमें
  • 00:44:20
    भी विक्षेप किया मेरे गुरुदेव को मेरे
  • 00:44:22
    सामने तुमने षक
  • 00:44:24
    किया मैं आज वचन देती हूं और शपथ ले
  • 00:44:28
    जब तक जीवित रहूंगी तुमको मुख नहीं
  • 00:44:30
    दिखाऊंगी अपना और दूसरी प्रतिज्ञा लेती
  • 00:44:33
    हूं ऐसे संत जन और हरिजनों का अपराध करने
  • 00:44:36
    वाले अपमान करने वाले का अन्न भी नहीं
  • 00:44:39
    खाऊंगी बाहर से भिक्षा याटू लेकिन
  • 00:44:42
    तुम्हारे घर का भोजन नहीं
  • 00:44:45
    करूंगी और ऐसा कह कर के अंगत जी की पत्नी
  • 00:44:47
    ने यह दो प शपथ ले ली अपने जीवन
  • 00:44:51
    में और ऐसा कह कर के वो जैसे ही घर में
  • 00:44:54
    रहती है बोले मैं अपना पाति व्रत निभाऊंगी
  • 00:44:56
    तु रे लिए भोजन बनाऊंगी बच्चों के लिए सब
  • 00:44:58
    कर दूंगी लेकिन मैं नहीं
  • 00:45:00
    पाऊंगी शरीर का पतिव्रत धर्म वो नि भेगा
  • 00:45:04
    लेकिन मेरे मानसिक भक्ति भाव को तुमने ठेस
  • 00:45:07
    पहुंचाई इसलिए मन से मैं तुम्हारी नहीं
  • 00:45:08
    हूं आज
  • 00:45:10
    से यह शपथ लेकर के वह अपना निर्वहन करने
  • 00:45:13
    लगी अब तो अंगत जी इतने उदास हो गए क्या
  • 00:45:16
    करू तो पत्नी के विरह में अपनी पत्नी के
  • 00:45:20
    वियोग में जब कभी उनको संत दिख जाते कहीं
  • 00:45:23
    मंदिर में संकीर्तन होता दिख जाता या कहीं
  • 00:45:26
    पर
  • 00:45:27
    चलती हुई दिख जाती तो जाकर के अंगद जी
  • 00:45:29
    वहां बैठ
  • 00:45:30
    जाते लेकिन शास्त्र आज्ञा भाव को भाव अनख
  • 00:45:35
    आलस नाम जपत मंगल दिस
  • 00:45:39
    दस भाव से जपो या कु भाव से जपो ठाकुर जी
  • 00:45:42
    को जिस पर कृपा करनी होती है वो करही देते
  • 00:45:45
    हैं अंगत जी पर ऐसी ऐसी कृपा हुई संत जनों
  • 00:45:48
    के सत्संग की वो करते थे अपनी पत्नी को
  • 00:45:51
    रिझाने के लिए लेकिन धीरे-धीरे सत्संग में
  • 00:45:53
    जाते जाते वो देह उनका शांत हो गया कि
  • 00:45:55
    मुझे पत्नी को रिझाना है उसम उनको सुख
  • 00:45:57
    मिलने लगा उसमें उनको आनंद होने लगा और
  • 00:46:00
    धीरे-धीरे वो ऐसे परम भक्त हो गए श्री
  • 00:46:02
    जगन्नाथ जी के अब तो सुबह उठते हैं और
  • 00:46:05
    उठकर के रात्रि सेन तक पूरा दिन जगन्नाथ
  • 00:46:08
    जी का स्मरण करते हैं कोई अच्छी चीज बनती
  • 00:46:11
    है तो लेकर के घर आते हैं अपने ठाकुर जी
  • 00:46:13
    का भोग लगाते हैं कहीं कोई अच्छा वस्त्र
  • 00:46:15
    दिखता है तो लेकर के आते हैं अपने ठाकुर
  • 00:46:17
    जी की चद्दर बना देते हैं कहीं इत्र मिलता
  • 00:46:19
    है इत्र लाते यह सब चीज उनकी पत्नी दिखती
  • 00:46:21
    थी और धीरे-धीरे जब उन्होंने देखा पहले तो
  • 00:46:24
    परखने की कोशिश की कहीं मुझे र जाने को तो
  • 00:46:26
    नहीं कर रहे लेकिन बाद में जब लगा कि
  • 00:46:28
    रात्रि स्वप्ने में कृष्ण नाम ध्वनि हो
  • 00:46:30
    रही है रात्रि स्वप्ने में जगन्नाथ जी का
  • 00:46:32
    स्मरण हो रहा है पत्नी समझ गई कि मेरे पति
  • 00:46:35
    परम भक्त हो गए तब उन्होंने अपने दोनों
  • 00:46:37
    शपथ को तोड़ दिया और अंगत जी के साथ रहने
  • 00:46:40
    लगे एक दिन अंगत
  • 00:46:43
    जी अपने राजा की आज्ञा मान कर के दूसरे
  • 00:46:46
    देश में किसी राजा के ऊपर चढ़ाई करने के
  • 00:46:49
    लिए गए सेना को लेकर के और उस राजा राजा
  • 00:46:52
    को हरा करके उसके तिजोरी और तैने से सारा
  • 00:46:55
    माल लूट कर के ला रहे थे ये नियम होता था
  • 00:46:58
    पहले जो राजा दूसरे राजा को हराता था तो
  • 00:47:00
    उसकी सारी संपत्ति लेकर आ जाता था संपत्ति
  • 00:47:03
    सारी बटोर रहे थे तो वहीं पर उन्होंने एक
  • 00:47:05
    मुकुट देखा उस मुकुट में दिव्य दिव्य
  • 00:47:08
    मनिया दिव्य दिव्य रत्न लगे थे लेकिन उस
  • 00:47:10
    मुकुट के मध्य में एक अद्भुत हीरा था
  • 00:47:15
    जिसका मोल कहने सुनने की बात ही नहीं है
  • 00:47:18
    अद्भुत था
  • 00:47:19
    वो उस हीरे को देखकर के अंगत जी ने मन में
  • 00:47:22
    विचार किया कि सब राजा के पास चला जाए
  • 00:47:25
    लेकिन यह हीरा तो मेरे जग जी को मिलना
  • 00:47:27
    चाहिए यह तो मेरे ठाकुर जी के लिए उपयोग
  • 00:47:30
    में आना राजा के पास बहुत हीरे हैं लेकिन
  • 00:47:32
    यह अनमोल
  • 00:47:33
    है मेरी ऐसी इच्छा है कि जगन्नाथ जी की
  • 00:47:36
    सेवा में जाना चाहिए और उन्होंने क्या
  • 00:47:38
    किया कि सारी मनिया मुकुट से निकाल कर के
  • 00:47:41
    एक जगह बांधी और वह हीरा लेकर के अपनी
  • 00:47:43
    पगड़ी के अंदर उसको दबा लिया यह मेरे
  • 00:47:48
    ठाकुर जी का
  • 00:47:50
    है अब कैसे ना कैसे करके यह बात
  • 00:47:55
    [संगीत]
  • 00:47:57
    उस राजा को पता चल
  • 00:47:59
    गई कि अंगज जी ने अपनी पगड़ी में एक हीरा
  • 00:48:02
    छिपा करके रखा है उसको यह थोड़ी पता था कि
  • 00:48:05
    ठाकुर जी के लिए रखा
  • 00:48:07
    है लेकिन वह अंगत जी जो थे व राजा के
  • 00:48:10
    रिश्ते में कुछ लगते थे चाचा या ताऊ इसलिए
  • 00:48:14
    राजा ने सोचा कि मैं सीधे बोलूंगा तो नहीं
  • 00:48:16
    स्वीकार करेंगे मैं दूसरे तरीके अपनाता
  • 00:48:19
    हूं सारे तरीके अपनाए लेकिन कहीं से भी
  • 00:48:20
    हीरा नहीं
  • 00:48:22
    मिला तो अंगद जी जो थे वह नित्य राजा की
  • 00:48:25
    बे राजा की ब बन जो थी उसके घर प्रसाद
  • 00:48:28
    पाने जाते
  • 00:48:29
    थे और बहन की जो बेटी थी उसके प्रति इतनी
  • 00:48:33
    इतनी रुचि थी कि पहले थोड़ा कवल उसको
  • 00:48:35
    खिलाते थे फिर स्वयं पाते थे राजा ने एक
  • 00:48:38
    दिन सही समय जान के अपनी अपनी बहन को बहुत
  • 00:48:41
    सारा धन दे दिया और कहा अंगत जी तुम्हारे
  • 00:48:43
    यहां रोज भोजन करने आते हैं ना बोले हां
  • 00:48:44
    उनकी पगड़ी में हीरा रखा है वो देते नहीं
  • 00:48:46
    है किसी को हमने बहुत प्रयास कर लिया निकल
  • 00:48:48
    भी नहीं पा रहा है अब एक ही उपाय है वो
  • 00:48:50
    तुम्हारे यहां भोजन करने आएंगे तुम उनको
  • 00:48:52
    भोजन में जहर मिलाकर दे दो उनकी मृत्यु हो
  • 00:48:55
    जाएगी तो वो हीरा हमें मिल
  • 00:48:58
    जाएगा बहन ने बहुत धन देख कर के अपने भाई
  • 00:49:02
    की बात मान
  • 00:49:04
    ली और जैसे ही श्री अंगद जी महाराज प्रसाद
  • 00:49:08
    पाने आए तो व प्रसाद पाने से पहले एक कवल
  • 00:49:11
    तोड़ कर के उस बहन की बेटी को खिलाते थे
  • 00:49:15
    आज उसने अपनी बेटी छुपा रखी थी कि बोले कि
  • 00:49:17
    कहीं खिला ना दे क्योंकि उसमें तो जहर
  • 00:49:19
    है अंगत जी से बोला चाचा जी आप पाओ ना
  • 00:49:23
    लेकिन आज तो मेरी बेटी कहीं गई हुई है वो
  • 00:49:26
    नहीं है आप
  • 00:49:27
    अंगद जी बोले नहीं मेरा तो नियम है मैं तो
  • 00:49:29
    उसको पहला उसको खिलाता हूं मां स्वरूप मान
  • 00:49:31
    कर के उसको देता हूं उसको मैं सुभद्रा जी
  • 00:49:33
    का रूप मानता हूं जब तक वो भोग नहीं लगाई
  • 00:49:35
    कि मैं खाऊंगा ही
  • 00:49:36
    नहीं बोले आप हट क्यों कर रहे हो आप पाइए
  • 00:49:39
    ना बोले नहीं लाली आज क्षमा कर मुझको मेरा
  • 00:49:42
    मेरा तेरी बेटी के प्रति कोई वैसा भाव
  • 00:49:45
    नहीं है कि वह मेरी लाली है या बेटी मैं
  • 00:49:46
    तो उसको सुभद्रा मानता हूं मैं पहला कवल
  • 00:49:49
    उसको खिलाता हूं मेरे को लगता है कि मेरा
  • 00:49:50
    भोग लग गया तब मैं पाता हूं बिना भोग के
  • 00:49:52
    कैसे पाऊ आज भूखा ही
  • 00:49:54
    रहूंगा तो उस कन्या के मन में भाव आया
  • 00:49:57
    मेरी बेटी के लिए इतने इतने भाव से यह
  • 00:50:00
    बैठे हैं और बीच में यह भी हुआ कि उसने वो
  • 00:50:03
    थाली उठा कर के अपने मंदिर में रख दी और
  • 00:50:06
    कहा देखो मैं आपके सामने ठाकुर जी का भोग
  • 00:50:07
    लगा के ला रही हूं अब तो पालो बोले कि
  • 00:50:09
    नहीं ठाकुर जी का भोग लग गया मतलब जगन्नाथ
  • 00:50:11
    बलभद्र ने तो लगा दिया लेकिन सुभद्रा उसके
  • 00:50:14
    बिना नहीं पाऊंगा सुभद्रा को बुलाओ पहले
  • 00:50:16
    और सुभद्रा तेरी बेटी है तो यह बात देख कर
  • 00:50:19
    के उसने सोचा कि चाचा जी के हृदय में इतना
  • 00:50:21
    प्रेम मेरी बेटी के लिए और मैं इनको जहर
  • 00:50:23
    दे रही हूं उसने सत्य बोल दिया बोले कि यह
  • 00:50:27
    आपके लिए है भी नहीं क्यों क्योंकि इसमें
  • 00:50:30
    विष मिला है मुझे भैया ने बहुत धन दिया
  • 00:50:33
    आपको देने के लिए ताकि आपकी पगड़ी में
  • 00:50:35
    छुपा जो हीरा है व उसको ले सके
  • 00:50:39
    आपसे अंगद जी तो अब लेकर के बैठे थाली
  • 00:50:42
    बोले अब तो मैं इसको पाऊंगा बोले नहीं
  • 00:50:45
    चाचा जी आपके योग्य नहीं है बोले बेटा
  • 00:50:48
    मेरे योग्य नहीं है और तूने इसका भोग लगा
  • 00:50:50
    दिया ठाकुर जी को ठाकुर जी के सामने विष
  • 00:50:53
    युक्त भोजन रख दिया और तु मुझसे कहती है
  • 00:50:54
    मेरे योग्य नहीं है मेरे नाथ ने विष खाया
  • 00:50:57
    है मैं भी
  • 00:50:59
    खाऊंगा तेरी बेटी त उसको दूर रख लेकिन मैं
  • 00:51:02
    तो खाऊंगा और हट पूर्वक अंगत जी ने जैसे
  • 00:51:04
    ही भोजन करना प्रारंभ किया राजा ने सैनिक
  • 00:51:07
    भेजे हुए थे देखना जैसे मृत्यु हो मुझे
  • 00:51:09
    खबर देना सैनिक सब देख रहे थे देखते देखते
  • 00:51:11
    अचंबा यह हुआ कि जैसे ही वह प्रसाद पाने
  • 00:51:13
    लगे ज्यों ज्यों प्रसाद पा रहे हैं त्यों
  • 00:51:16
    त्यों अंगद जी के अंग की कांति और
  • 00:51:18
    ऊर्जावान होती जा रही
  • 00:51:20
    है उनको देख कर के उतनी ही नद मस्तक उनके
  • 00:51:24
    प्रति हो रही है
  • 00:51:28
    यह दृश्य देख कर के भी राजा को अनुभव नहीं
  • 00:51:30
    हुआ कि मेरे सेनापति बहुत बड़े भक्त हैं
  • 00:51:34
    एक दिन राजा ने सोचा कि आज चाचा जी को
  • 00:51:38
    कैसे भी मरवाना है इनका वह हीरा जो है वह
  • 00:51:41
    मुझे लाना अंगद जी को रात्रि में यह बात
  • 00:51:44
    पता चल गई सैनिकों के द्वारा कि सुबह होते
  • 00:51:46
    ही मेरा वध हो जाएगा तो रात्रि में ही घर
  • 00:51:49
    से निकल गए बोले कि हे जगन्नाथ मैं आपकी
  • 00:51:51
    वस्तु आप तक पहुंचा दूं क्योंकि मेरे जीवन
  • 00:51:53
    का कुछ पता नहीं
  • 00:51:55
    है जै ही निकल कर के जाने लगे राजा ने
  • 00:51:59
    अपने सैनिकों को पीछे छोड़ दिया बोले जहां
  • 00:52:01
    मिल जाए वहीं वध कर देना और उनसे वो मणि
  • 00:52:03
    लेकर के वो हीरा लेकर के आ
  • 00:52:05
    जाना बीच रास्ते में सैनिकों ने अंगत जी
  • 00:52:08
    को पकड़ लिया और कहा कि महाराज हमको आज्ञा
  • 00:52:10
    है जहां देखें आपको मार दें और आपसे वो
  • 00:52:12
    हीरा ले ले आपकी कोई अंतिम इच्छा हो तो आप
  • 00:52:15
    पूरी कर लो बाकी फिर हम अपना कार्य शुरू
  • 00:52:18
    करेंगे अंगत जी मुस्कुराने लगे बोले अब
  • 00:52:20
    क्या करूं तुम लोग मुझे जीवित तो छोड़ोगे
  • 00:52:22
    नहीं सामने एक सरोवर था सरोवर देख कर के
  • 00:52:25
    अंगत जी बोले मैं अंतिम इच्छा य है कि मैं
  • 00:52:28
    सरोवर में स्नान कर लूं उसके बाद हीरा
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    तुमको दे दूंगा कहा ठीक है अंगद जी ने
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    जैसे ही नेत्र बंद किए सरोवर के पास जाकर
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    के बैठे जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी भवतु
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    में हे
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    जगन्नाथ यह आपकी वस्तु है यह आपके लिए
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    मैंने संभाल करके रखी है यदि आप तक नहीं
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    पहुंचेगी तो सिंह के शिकार को यदि गीदड़
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    ले जाएगा तो इसमें सिंह का बल क्षीण माना
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    जाता हे नाथ ये ये हीरा आपका है नाथ आपके
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    लिए मैं प्रस्तुत लेकर के आया हूं इसको
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    स्वीकार करो मैं आपके पास नहीं आ सकता
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    लेकिन आप तो जगत नाथ हो आप मेरे पास आ
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    सकते हो आप आकर के यह ले जाओ और देखते
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    देखते समस्त सैनिकों के सामने वह हीरा
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    निकाल कर के श्री अंगद जी ने नदी में
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    स्नान करते हुए उस नदी में सबके सामने
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    छोड़ दिया देखते ही सैनिक सब कूद पड़े नदी
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    के अंदर उस सरोवर के अंदर सब खोज लिया
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    महाराज लेकिन वो हीरा नहीं मिला अंगद जी
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    को बंधी बना लिया राजा को पता चला कि हीरा
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    यहीं डाल दिया हमारे सामने डाला अंगद जी
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    ने राजा ने अपना बल लगा कर के पूरे सरोवर
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    को सुखा दिया लेकिन हीरा नहीं
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    मिला राजा आया कोड़ा लेकर के अंगत जी से
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    बोला मैं आपसे अंतिम बार पूछ रहा हूं हीरा
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    कहां है बोले जिसका था उसके पास है बो
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    किसका था बोले वो जगन्नाथ प्रभु के लिए
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    मैं लाया था और मैंने उन्हीं को दे दिया
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    बो आपने तो सरोवर में डाला था तो बोले
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    क्या सरोवर में जगन्नाथ नहीं है जगन्नाथ
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    तो यत्र तत्र सर्वत्र है देखने के लिए
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    दृष्टि चाहिए वो तो सब जगह है मैंने वहीं
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    दे दिया और मेरे ऊपर बड़ी कृपा मुझे सुनक
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    बड़ा अच्छा लगा कि सरोवर सूख गया हीरा
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    नहीं मिला मतलब नाथ ने स्वीकार कर लिया
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    सुनो राजन तुम्हारी भी संशा का समाधान हो
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    जाएगा और मैं भी प्रसन्न हो जाऊंगा जरा
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    जगन्नाथ पुरी चलकर देखें तो सही हीरा
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    स्वीकार हुआ कि नहीं राजा अंगद जी को बंधी
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    स्वरूप में ही और सेना के साथ में जगन्नाथ
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    पुरी पहुंचा जैसे ही जगन्नाथ जी का दर्शन
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    किया श्री जगन्नाथ भगवान के हृदय पटल पर
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    वो हीरा विराजा हुआ था और आज तक श्री
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    जगन्नाथ जी के श्रृंगार में अंगज जी के
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    द्वारा प्रदान किया गया कोसों दूर से वह
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    हीरा आज भी जगन्नाथ जी अपने कंठ में धारण
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    करते हैं आज भी पहनते
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    हैं ऐसे भक्त वत्सल हैं करुणा वत्सल हैं
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    श्री जगन्नाथ जी
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