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बांग्लादेश जो इस टाइम एक बेहद ही मुश्किल
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दौर से गुजर रहा वहां के स्टूडेंट
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गवर्नमेंट के खिलाफ एक मैसिव प्रोटेस्ट
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करते हैं और बांग्लादेश गवर्नमेंट की नीव
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हिला देते हैं बांग्लादेश की फॉर्मर
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प्राइम मिनिस्टर बांग्लादेश से भाग चुकी
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है और इंडिया के सेफ हाउस में है
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बांग्लादेश प्राइम मिनिस्टर शेख हसीना हैज
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लैंडे एट द हिंडन एयरफोर्स बेस इन उत्तर
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प्रदेश इज गाजियाबाद नियर द नेशनल कैपिटल
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दिल्ली इस टाइम बांग्लादेश के प्रोफेसर
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मोहम्मद यूस जिन्हें वहां के लोग बैंकर ऑफ
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पुअस के नाम से जानते हैं वह इस क्रिटिकल
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सिचुएशन में बांग्लादेश गवर्नमेंट को लीड
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कर रहे हैं और इसे बांग्लादेश की दूसरी
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आजादी बता रहे हैं अगेन सेकंड लिबरेशन
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मूवमेंट ऑकेजन सेलिब्रेशन ऑफ ओकेज गोइंग
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ऑन ऑल ओवर द कंट्री जहां एक तरफ
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बांग्लादेश अपनी खुद की एक लड़ाई लड़ रहा
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है जिसे कई अलग-अलग नामों से हाईलाइट करने
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की कोशिश करी जा रही है कोई इस प्रोटेस्ट
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और सरकार के पतन को पॉलिटिकल रेवोल्यूशन
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बता रहा तो वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग इसे
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इस्लामिक रिवोल्यूशन कह रहे हैं मतलब अब
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बांग्लादेश को इस्लामिक रूल एंड रेगुलेशन
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के अकॉर्डिंग चलाया जाएगा आज के इस वीडियो
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में हम बांग्लादेश क्राइसिस के हर एक
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इंपोर्ट पार्ट को समझेंगे और यह भी आपको
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बताएंगे कि आखिर इस्लामिक रिवोल्यूशन होता
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क्या है और जो बांग्लादेश में हुआ वो
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इस्लामिक रिवोल्यूशन है या फिर नहीं
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वीडियो शुरू करूं उससे पहले आपसे एक
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रिक्वेस्ट है कि आप इस वीडियो को लाइक
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जरूर करें और इस्लामिक रेवोल्यूशन पर आप
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क्या सोचते हो वीडियो देखने से पहले कमेंट
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में बताओ ये आपके लिए बिल्कुल फ्री है
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लेकिन इस वीडियो की रीच के लिए बेहद
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इंपॉर्टेंट है अब टॉपिक पर वापस आते हैं
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और सबसे पहले यह जानते हैं आखिर इस्लामिक
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रिवोल्यूशन होता क्या है और जो बांग्लादेश
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में हुआ वो इस्लामिक रिवोल्यूशन है या फिर
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नहीं
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इस्लामिक रिवोल्यूशन बेसिकली एक पॉलिटिकल
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और सोशल ट्रांसफॉर्मेशन का एक कंप्लीट
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प्रोसेस होता है जिसे इस्लाम के प्रिंसिपल
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और उसके बेसिक नियम कानून के हिसाब से
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इंप्लीमेंट किया जाता है गवर्नेंस और सोशल
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स्ट्रक्चर में इस्लाम के हिसाब से बदलाव
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किए जाते हैं जिसका ऑब्जेक्टिव होता है एक
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ऐसी सोसाइटी बनाना जो इस्लामिक टीचिंग और
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इस्लामिक वैल्यूज के आधार पर चलती हो जैसे
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इस्लामिक रिवोल्यूशन में एक बड़ा पॉलिटिकल
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चेंज आता है पुराने पॉलिटिकल स्ट्रक्चर को
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रिप्लेस करके इस्लामिक गवर्नेंस मॉडल को
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इंप्लीमेंट किया जाता है इस्लामिक
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रेवोल्यूशन में सोशल रिफॉर्म्स भी किए
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जाते हैं सोसाइटी के नॉर्म्स और प्रैक्टिस
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को इस्लामिक टीचिंग के आधार पर चेंज कर
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दिया जाता है इस्लामिक रेवोल्यूशन में
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सबसे बड़ा बदलाव ये होता है जहां पुराने
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लीगल सिस्टम को बदलकर इस्लामिक लॉ जैसे
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शरिया को लीगल सिस्टम बना दिया जाता है
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मतलब अगर कोई चोरी करेगा तो हाथ काटा
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जाएगा लेकिन इसमें भी कुछ कंडीशन है जैसे
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चोरी में जो चीज चुराई गई हो उसकी कीमत एक
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सर्टेन लिमिट से ज्यादा हुई तो हाथ काट
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दिया जाएगा कोई शादीशुदा इंसान किसी
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एक्सटर्नल रिलेशन में हो तो शरिया लॉ के
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मुताबिक अगर चार गवाहों के साथ उसका जुर्म
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प्रूव होता है तो उसे संसार किया जाएगा
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मतलब पत्थर से मारा जाएगा कि सास यानी टिट
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फॉर टैट जैसा जुर्म वैसा बदला इसमें अगर
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कोई किसी को जान से मार देता है तो
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विक्टिम की फैमिली के पास यह हक होता है
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कि वो भी उसे मारकर बदला ले ले या फिर
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दियत के बदले मतलब कंपनसेशन लेकर माफ भी
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कर सकता है इसी तरह एक कंप्लीट शरिया लॉ
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जो इंसान के डेली लाइफ के हर एक पहलू को
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कवर करता है उसे इस्लामिक रिवोल्यूशन के
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बाद पूरी कंट्री में इंप्लीमेंट किया जाता
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है अब आपको इतना तो समझ आ गया कि आखिर
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इस्लामिक रिवोल्यूशन होता क्या है और किसे
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कहा जाता है इस्लामिक रिवोल्यूशन में किस
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टाइप के बदलाव किए जाते हैं अब आइए आपको
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कुछ एग्जांपल भी बताता हूं फिर आप खुद
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कमेंट में बताना वो क्या है इस्लामिक
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रिवोल्यूशन या फिर पॉलिटिकल रिवोल्यूशन
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ट्यूनीशिया ये एक नॉर्थ अफ्रीकन कंट्री है
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जिसकी टोटल पॉपुलेशन अराउंड 1 करोड़ 20
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लाख है और इसमें मैक्सिमम अराउंड 98 टू 99
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पर पॉपुलेशन मुस्लिम की है आज की डेट में
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ट्यूनीशिया आधिकारिक तौर पर एक सेकुलर
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स्टेट है जिसका अपना खुद का एक संविधान भी
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है लेकिन इससे पहले की कहानी काफी अलग थी
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ट्यूनीशिया में बिन अली का रूल हुआ करता
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था बिन अली ट्यूनीशिया के दूसरे
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प्रेसिडेंट थे जो कि साल 1987 से रूल कर
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रहे थे वो अपनी पोजीशन और अपनी पावर को
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मेंटेन रखने के लिए एक तरह से पॉलिटिकली
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गुंडागर्दी किया करते थे लोगों को उनकी
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सिविल लिबर्टीज नहीं मिलती थी फ्री स्पीच
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की मानो कोई जगह ही नहीं थी जब भी कोई
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आवाज उनके खिलाफ होती तो उसे क्रश कर दिया
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जाता इकोनॉमी भी उनके मोनोपोली में थी
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जिसमें करप्शन था अनइंप्लॉयमेंट थी और
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महंगाई ने तो लोगों की जिंदगी डिफिकल्ट
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बना रखी थी खास करके जो एजुकेटेड यूथ थे
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उनमें निराशा बड़ी तेजी से आगे बढ़ रही थी
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उनके पास कोई जॉब नहीं थी और उन्हें उनका
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फ्यूचर अंधेरे में दिखाई दे रहा था बावजूद
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इसके किसी की भी हिम्मत नहीं होती थी जो
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बिन अली के शासन के खिलाफ बोल सके लेकिन
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एक दिन बदलाव की एक चिंगारी उठती है 17
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दिसंबर 2010 इस दिन नेशिया के एक छोटे शहर
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में एक स्ट्रीट वंडर जिनका नाम मोहम्मद बो
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अजीजी था वो सिस्टम से हारकर बेइज्जत होकर
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अपनी जान दे देता है दरअसल उनकी दुकान को
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पुलिस ने इल्लीगल बताकर सीज कर दिया था और
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जब उन्होंने उसकी शिकायत करी तो उन्हें
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बेइज्जती करके निकाल दिया गया और उसने
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अपनी जान दे दी इस इंसीडेंट के बाद लोगों
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के अंदर बिन अली के खिलाफ पहले से जो
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गुस्सा था जो डिस सेटिस्फेक्शन भरा हुआ था
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वो बाहर आ गया और बड़ी तेज से पूरे नेशिया
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में फैलता चला गया प्रोटेस्ट के लिए लोग
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सड़कों पर आने लगते हैं हालांकि शुरुआत
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में यह प्रोटेस्ट इकोनॉमिक प्रॉब्लम को
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लेकर शुरू हुआ था लेकिन जल्दी ही पॉलिटिकल
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डिमांड भी इसमें शामिल हो जाती है लोग बिन
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अली के रिजाइन की बात करने लगते हैं
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करप्शन की बात करने लगते हैं यहां तक कि
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पॉलिटिकल फ्रीडम की डिमांड होने लगती है
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प्रोटेस्ट तेजी से आगे बढ़ता है और पूरे
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ट्यूनीशिया में फैल जाता है बिनली इस
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प्रोटेस्ट को रोकने के लिए ब्रूटल तरीका
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इस्तेमाल करते हैं लेकिन लोग पीछे हटने को
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तैयार ही नहीं होते और फाइनली 14 दिसंबर
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2011 को बिन अली ट्यूनीशिया छोड़कर सऊदी
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अरेबिया भाग जाते हैं जिसके बाद
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ट्यूनीशिया में एक इंटिम गवर्नमेंट बनती
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है और ट्यूनीशिया एक डेमोक्रेटिक स्टेट की
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तरफ आगे बढ़ जाता है साल 2014 में
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ट्यूनीशिया ने अपना संविधान अडॉप्ट किया
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और उसे एक डेमोक्रेटिक रिपब्लिक बनाया गया
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इलेक्शन हुए और उसमें अहाता पार्टी ने जीत
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हासिल करी यह पूरा प्रोटेस्ट लोगों की
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अपनी कॉमन प्रॉब्लम को लेकर शुरू हुआ था
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और वहां की तानाशाही को उखाड़ सकता है अब
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चूंकि कोई कोई यह कहे कि ट्यूनीशिया एक
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मुस्लिम मेजॉरिटी कंट्री है इसलिए यह एक
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इस्लामिक रिवोल्यूशन है तो आपको क्या लगता
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है वो सही कहेगा कि यह ट्यूनीशियन
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रिवोल्यूशन एक इस्लामिक रिवोल्यूशन है ये
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आप कमेंट में खुद बता सकते
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हो इजिप्ट ये भी एक अफ्रीकन कंट्री है
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लेकिन इसका एक छोटा सा हिस्सा एशिया में
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भी आता है इजिप्ट की टोटल पॉपुलेशन अराउंड
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11 करोड़ 10 लाख है जिसमें 90 पर पॉपुलेशन
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इस्लाम को फॉलो करती है मतलब इजिप्ट भी
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ट्यूनीशिया की ही तरह एक मुस्लिम मेजॉरिटी
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कंट्री है जो कि ऑफिशियल तो डेमोक्रेटिक
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और सेकुलर कंट्री है लेकिन अभी भी इजिप्ट
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को पूरी तरह से डेमोक्रेटिक नहीं कहा जा
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सकता है हालांकि इससे पहले वाली हालात
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इससे भी बदतर थी इजिप्ट में हुसनी मुबारक
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का रोल हुआ करता था जो कि 1981 से इजिप्ट
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पर राज कर रहे थे ट्यूनीशिया की ही तरह
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यहां भी वही सिमिलर कंडीशन थी मुबारक अपनी
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पावर बनाए रखने के लिए तानाशाही रवैया
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अपनाते थे फ्रीडम ऑफ स्पीच प्रेस फ्रीडम
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और पॉलिटिकल पार्टिसिपेशन को काफी हद तक
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कंट्रोल ल किया जाता था बेरोजगारी महंगाई
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करप्शन जैसे मुद्दे भी हावी हुआ करते थे
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मुबारक की सत्ता को लेकर लोगों के अंदर
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काफी गुस्सा भरा होता है और इसी पीरियड
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में ट्यूनीशिया रिवोल्यूशन इजिप्ट यन
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पब्लिक को इंस्पायर करता है और इजिप्ट में
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भी लोग हुसनी मुबारक के खिलाफ खड़े हो
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जाते हैं 25 जनवरी 2011 इस दिन कार्यं के
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तहरीर स्क्वायर में एक बड़ा प्रोटेस्ट
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शुरू होता है जो धीरे-धीरे पूरे देश में
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फैल जाता है जो कि मुबारक की सत्ता को
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डायरेक्ट चैलेंज करता है मुबारक को रिजाइन
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करने के लिए मजबूर किया जाता है लेकिन
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हमेशा की तरह एक तानाशाह प्रोटेस्ट को
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कुचलने के लिए जो कोशिश करता है मुबारक ने
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भी वही किया पुलिस और मिलिट्री के जरिए
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प्रोटेस्ट को दबाने की कोशिश करी गई लेकिन
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लोग पीछे हटने को तैयार ही नहीं थे बल्कि
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प्रोटेस्ट और भी बढ़ता चला गया डिमांड वही
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मुबारक रिजाइन करें करप्शन का खात्मा हो
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और पॉलिटिकल फ्रीडम एस्टेब्लिश करी जाए
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मुबारक ने देखा कि कुछ भी काम नहीं आ रहा
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तो उन्होंने अपना गोल पोस्ट ही बदल दिया
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उन्होंने प्रोटेस्टर से वादा किया कि पूरी
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कैबिनेट को रि सफल किया जाएगा और कुछ
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इकोनॉमिक रिफॉर्म्स भी लाए जाएंगे लेकिन
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अभी भी लोग मुबारक के रिजाइन पर ही अड़े
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होते हैं और फाइनली 18 दिन बाद 11 फरवरी
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2011 को मुबारक ने रिजाइन किया इजिप्ट को
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मिलिट्री ने अपने कंट्रोल में ले लिया और
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मुबारक के खिलाफ लीगल एक्शन शुरू किए जाते
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हैं साल 2012 में इजिप्ट में पहली बार
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डेमोक्रेटिक इलेक्शन ऑर्गेनाइज करी गई और
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मोहम्मद मोर्सी जो कि मुस्लिम ब्रदरहुड के
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कैंडिडेट थे वो प्रेसिडेंट बन जाते हैं
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मुस्लिम ब्रदरहुड इसकी अपनी एक अलग
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इंटरेस्टिंग स्टोरी है जहां हमास इसी
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ब्रदरहुड का एक पार्ट है यह फिर कभी आपको
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बताएंगे चूंकि मोहम्मद मोरसी के
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प्रेसिडेंट बनने के बाद इजिप्ट में फिर भी
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कोई बड़ा बदलाव नहीं आता और मुर्सी को भी
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जुलाई 2013 में इजिप्ट यन मिलिट्री पावर
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से हटा देती है अब नए प्रेसिडेंट बनते हैं
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अब्दुल फतेह अलसीसी जो साल 2013 से अब तक
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इजिप्ट के प्रेसिडेंट बने हुए हैं
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ट्यूनीशिया के बाद इजिप्ट में भी
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प्रोटेस्ट हुए और सत्ता को उखाड़ फेंका
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गया मुद्दा था सश लिशु बेरोजगारी महंगाई
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फ्रीडम चूंकि इजिप्ट एक मुस्लिम मेजॉरिटी
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कंट्री है तो इस बिहाव पे इजिप्ट
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रेवोल्यूशन को इस्लामिक रेवोल्यूशन कहा जा
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सकता है आपको क्या लगता है यह भी आप कमेंट
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में
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बताओ लीबिया यह भी एक अफ्रीकन कंट्री है
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जिसकी टोटल पॉपुलेशन करीब 70 लाख है
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जिसमें 97 टू 99 पर लोग इस्लाम को फॉलो
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करते हैं मतलब लीबिया भी एक मुस्लिम
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मेजॉरिटी कंट्री है यहां भी लोग नेशिया और
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इजिप्ट के तख्ता पलट से इंस्पायर होते हैं
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और उसी तरह प्रोटेस्ट करना शुरू करते हैं
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लीबिया में कर्नल गद्दाफी होते हैं जो कि
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साल 1969 से लीबिया पर राज कर रहे होते
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हैं 15 फरवरी 2011 यानी इजिप्ट प्रेसिडेंट
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मुबारक के हटने के सिर्फ 4 दिन बाद लीबिया
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में भी एंटी गद्दाफी प्रोटेस्ट शुरू होता
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है डिमांड सेम वही जो ट्यूनीशिया में थी
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और इजिप्ट में थी बाकी लोगों की तरह
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गद्दाफी ने भी वही किया प्रोटेस्ट को खत्म
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करने के लिए ताकत का इस्तेमाल किया लेकिन
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कुछ भी नहीं हुआ प्रोटेस्ट और भी तेजी से
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आगे बढ़ता चला गया आखिर में गद्दाफी ने
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ब्रूटल तरीका इस्तेमाल किया जवाब में
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प्रोटेस्टर्स भी रिबेलियस फॉर्म में आ गए
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और लीबिया में सिविल वॉर छिड़ गई जो आज भी
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चल रही है हालांकि गद्दाफी के केस में
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नोटो इवॉल्व होती है और अक्टूबर 2011 में
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गद्दाफी और उनकी पूरी फैमिली को मार दिया
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जाता है नट क्यों इवॉल्व हुई वजह क्या थी
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उसकी एक अलग कहानी है लेकिन पॉइंट ये है
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कि लीबिया में भी सत्ता के खिलाफ
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प्रोटेस्ट हुए और बड़े स्केल पर हुए
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मुद्दा वही फ्रीडम ऑफ स्पीच अनइंप्लॉयमेंट
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जैसा चूंकि लीबिया एक मुस्लिम मेजॉरिटी
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कंट्री है ऐसे में लीबियन रिवोल्यूशन को
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क्या इस्लामिक रिवोल्यूशन कहा जा सकता है
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यह फैसला भी आप खुद ही करो अब आते हैं इस
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वीडियो की दूसरी साइड पर जो बांग्लादेश
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रेवोल्यूशन को और अच्छे से समझने में आपकी
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हेल्प
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करेगा ईरान जो कि एक एशियन कंट्री है
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जिसकी टोटल पॉपुलेशन करीब 9 करोड़ है
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जिसमें 99 पर पॉपुलेशन मुस्लिम है और
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उसमें भी 90 टू 95 पर शिया मुस्लिम है
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जबकि 5 टू 10 पर सुन्नी मुस्लिम है मतलब
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ईरान एक मुस्लिम मेजॉरिटी कंट्री है अब
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अगर इसकी हिस्ट्री देखी जाए तो साल 1970
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के टाइम पर ईरान में शाह मोहम्मद रजा
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पैरवी का रूल हुआ करता था इस पीरियड में
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ईरान एक सेकुलर स्टेट हुआ करता था जिसमें
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शाह पहलवी की एक मॉडर्न सोर्स थी उनका
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रिलेशन ज्यादातर वेस्टर्न कंट्री से हुआ
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करता था यहां तक कि इजराइल जो इस पीरियड
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तक कई वॉर लड़ चुका होता है फिलिस्तीन का
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गाज स्ट्रीप इजराइल के कंट्रोल में आ चुका
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था नकबा जैसी घटनाएं भी हो चुकी होती हैं
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बावजूद इसके इजराइल शाह पहलवी के टाइम पर
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ईरान का एक अच्छा अलाई होता है है यह पहली
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वजह होती है जहां ईरान की आम पब्लिक शाह
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के इस सोच को लेकर गुस्सा होती है दूसरी
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वजह शाह पहलवी की सोच मॉडर्न थी और वो
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ईरान को मॉडर्नाइज करने के लिए कुछ नई
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पॉलिसीज भी इंप्लीमेंट करते हैं जिसमें
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ट्रेडिशनल और रिलीजियस वैल्यूज को पूरी
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तरह से साइडलाइन कर दिया जाता है और इस
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वजह से रिलीजियस लीडर और ईरानियन पब्लिक
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में शाह के खिलाफ उनके गुस्से को और भड़का
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देता है ईरान में एक रिलीजियस लीडर थे
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आयतुल्लाह रूहुल्लाह खुमैनी ये शाह के
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खिलाफ खड़े हो जाते हैं जहां उनका प्राइम
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एजेंडा इस्लामिक वैल्यूज और इस्लामिक
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प्रिंसिपल पर बेस्ड होता है जनवरी 1978
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में खुमैनी के सपोर्ट और उनकी डिमांड के
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साथ एक बड़े प्रोटेस्ट की शुरुआत होती है
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और वह पूरे ईरान में बड़ी तेजी से फैल
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जाता है साल 1979 में प्रोटेस्ट इस हद तक
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बड़ा हो जाता है जिससे शाह की सारी
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कोशिशें फेल हो जाती हैं और जनवरी 1979
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में शाह ईरान छोड़कर बाहर भाग जाते हैं
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जिसके बाद खुमैनी ईरान में इस्लामिक
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रिपब्लिक एस्टेब्लिश करने की अनाउंसमेंट
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करते हैं और अप्रैल 1979 में एक नेशनल रे
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डम के बाद ईरान को ऑफिशियल इस्लामिक
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रिपब्लिक डिक्लेयर कर दिया जाता है इस
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रेवोल्यूशन के बाद ईरान का पॉलिटिकल और
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सोशल लैंडस्केप पूरी तरह से बदल गया
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इस्लामिक शरिया को ईरान का लीगल सिस्टम
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बना दिया गया ईरानियन सोसाइटी के कल्चरल
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और सोशल नॉर्म्स को इस्लामिक टीचिंग के
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अकॉर्डिंग चेंज कर दिया गया सेकुलर सिस्टम
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पूरी तरह से खत्म हो गया यहां तक कि
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गवर्नमेंट स्ट्रक्चर को भी इस्लामिक
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प्रिंसिपल के हिसाब से रीडिजाइन किया गया
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मतलब ईरानियन रिवोल्यूशन का कोर
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ऑब्जेक्टिव इस्लामिक रूल एस्टेब्लिश करना
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था पॉलिटिकल लीगल और सोशल सिस्टम को
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इस्लाम के अकॉर्डिंग ट्रांसफॉर्म करना था
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और यही किया गया ऊपर तीन एग्जांपल आपको
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बताया ट्यूनीशिया इजिप्ट और लीबिया इन
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तीनों जगह प्रोटेस्ट के दम पर सत्ता तो
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बदली गई लेकिन इनका ऑब्जेक्टिव इस्लाम
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नहीं था बल्कि सोशल इश्यूज थे जबकि ईरान
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के केस में उनका कोर ऑब्जेक्टिव इस्लामिक
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प्रिंसिपल था ऐसे में ट्यूनीशिया इजिप्ट
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और लिबिया में जो हुआ वो एक पॉलिटिकल
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रेवोल्यूशन था जबकि ईरान में जो हुआ वो एक
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इस्लामिक रेवोल्यूशन था अब अगर सेम
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पैरामीटर पर बांग्लादेश क्राइसिस को देखा
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जाए तो बांग्लादेश की टोटल पॉपुलेशन करीब
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17 करोड़ है जिसमें अराउंड 90 पर से
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ज्यादा पॉपुलेशन मुस्लिम है मतलब
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बांग्लादेश भी एक मुस्लिम मेजॉरिटी कंट्री
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है बांग्लादेश में शेख हसीना की पार्टी
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अवामी लीग एक लंबे पीरियड से रूल कर रही
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थी प्रॉब्लम सेम वही अनइंप्लॉयमेंट फ्रीडम
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ऑफ स्पीच प्रेस फ्रीडम जैसी इसके अलावा
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बांग्लादेश के केस में दो चीज और थी पहली
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शेख हसीना पर इलेक्शन प्रोसेस को
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मैनिपुलेट करने जैसी एलिगेशन लगाई गई उन
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पर इलेक्टोरल फ्रॉड के आ आरोप लगे जहां
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अपोजिशन इलेक्टोरल प्रोसेस से सहमत ही
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नहीं था दूसरी रिजर्वेशन और यही मेन वजह
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बनती है जिसने शेख हसीना की सत्ता को
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उखाड़ कर फेंक दिया दरअसल बांग्लादेश में
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एक रिजर्वेशन सिस्टम काम करता है जिसमें
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वो लोग जिन्होंने बांग्लादेश की आजादी के
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लिए लड़ाई लड़ी उनकी फैमिली को 30 पर
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रिजर्वेशन दी जाती है और इसी के खिलाफ
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बांग्लादेश के स्टूडेंट आवाज उठाते हैं
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जहां उनकी डिमांड होती है इस रिजर्वेशन
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सिस्टम को खत्म करके मेरिट बेस सिस्टम
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लाया जाए ताकि जिसके पास जितना टैलेंट हो
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उसे उसके टैलेंट के बेसिस पर अपॉर्चुनिटी
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मिल सके इश्यूज तो और भी होते हैं लेकिन
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यही प्राइम डिमांड होती है और इसी डिमांड
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को लेकर बांग्लादेश में प्रोटेस्ट शुरू
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होता है जिसे विपक्ष का भी सपोर्ट मिलता
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है शेख हसीना प्रोटेस्ट को दबाने के लिए
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अपनी फुल पावर का इस्तेमाल करती हैं पुलिस
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मिलिट्री सब स्टूडेंट के सामने उतार दी
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जाती हैं लेकिन प्रोटेस्ट का स्केल इतना
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हैवी होता है कि उसे कंट्रोल ही नहीं किया
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जा सका इसी बीच शेख हसीना प्रोटेस्टर्स को
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रजाकार भी कह देती हैं जहां शेख हसीना का
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ये स्टेटमेंट जबरदस्त बैकफायर करता है
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दरअसल रजाकार एक उर्दू वर्ड होता है जिसका
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मतलब होता है कोलैबोरेटर बांग्लादेश के
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केस में रजाकार वो लोग थे जिन्होंने साल
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1971 में बांग्लादेश की आजादी के टाइम पर
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पाकिस्तान के साइड से पाकिस्तान के फेवर
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में काम कर रहे थे साल 1971 में
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बांग्लादेश ने पाकिस्तान से अपनी आजादी की
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लड़ाई लड़ी जिसमें कुछ बंगाली लोगों ने
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पाकिस्तानी मिलिट्री का सपोर्ट किया इस
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पीरियड में जो बंगाली अपने ही देश के
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फ्रीडम फाइटर के खिलाफ थे और पाकिस्तानी
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आर्मी के सपोर्ट में थे उन्हें रजाकार कहा
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गया ऐसे में शेख हसीना का प्रोटेस्टर्स को
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रजाकार कहना मतलब उन्हें पाकिस्तानी कहने
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जैसा था और यह स्टेटमेंट उनके लिए काफी
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भारी पड़ गया जहां उन्हें पीएम पोस्ट से
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रिजाइन भी करना पड़ा और भागकर इंडिया भी
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आना पड़ा इस बीच कई ऐसे इंसिडेंट हुए जो
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कि एक कंट्री के लिए बिल्कुल ठीक नहीं था
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प्रोटेस्ट के नाम पर शेख हसीना के अंडा
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गारमेंट्स तक हवा में उछाले गए यह भी
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एक्सेप्टेबल नहीं था कई जगह पर माइनॉरिटी
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के साथ मिसबिहेव के इंसीडेंट सामने आए
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जिसमें मैक्सिमम तो फेक क्लेम के साथ
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वायरल किया जा रहा था लेकिन ऐसा भी नहीं
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है कि बांग्लादेश में माइनॉरिटी पर अटैक
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ही नहीं हुए हैं बट ओवरऑल अगर देखा जाए तो
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बांग्लादेश प्रोटेस्ट में कहीं भी
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इस्लामिक वैल्यूज इस्लामिक प्रिंसिपल की
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डिमांड लेकर प्रोटेस्ट नहीं हुए हैं और ना
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ही इस्लामिक रूल के लिए सत्ता को उखाड़ कर
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फेंका गया है बल्कि बांग्लादेश का पूरा
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प्रोटेस्ट सोशल इश्यूज पर था जिसमें
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अनइंप्लॉयमेंट और रिजर्वेशन प्राइम डिमांड
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होती है ऐसे में बांग्लादेश क्राइसिस को
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इस्लामिक रेवोल्यूशन कहना बिल्कुल भी सही
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नहीं है यह पूरी तरह से पॉलिटिकल चेंज है
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जहां एक अथॉरिटेरियन गव कमेंट को रिप्लेस
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किया गया है ऐसे में अब जो भी इसे
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इस्लामिक रेवोल्यूशन क है आप इस वीडियो को
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उसे शेयर जरूर कर दें उम्मीद करते हैं यह
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बात आपको समझ आई होगी इस्लामिक रिवोल्यूशन
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क्या होता है और बांग्लादेश में जो हुआ वो
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इस्लामिक रिवोल्यूशन है या फिर नहीं ये आप
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खुद ही समझ गए होंगे आज के वीडियो में
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इतना ही और इस वीडियो से आपको कुछ ना कुछ
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वैल्यू जरूर मिली होगी अगर हां तो लाइक
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करें शेयर करें और अपने विचार कमेंट में
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जरूर लिखें मिलते हैं नेक्स्ट वीडियो में
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